शरणार्थियों की नजर भारत पर

हमारे देश में शरण देने की प्रथा आदि काल से चली आ रही है । राजा महाराजा इस बात के गवाह रहें है कि इस देश में यह प्रथा सनातन काल से चली आ रही है। जहां तक शास्त्र की बात करें तो खुद भगवान श्रीराम ने विभीषण व सुग्रीव को शरण दिया था। इसके बाद कालान्तर में भगवान श्रीकृष्ण ने कई राजाओं को शरण दी और कुछ साल पहले मुगलों को, फिर अंग्रेजों को शरण दी गयी। जो बाद में इस देश के शासक भी बने किन्तु इतने व्यापक पैमाने पर कभी शरण हमने किसी भी युग में नहीं दी । आज जो लोग, देश में बाहर से आये हुए लोगों को शरण दे रहे हैं या उनकी मुखालफ कर रहें है। वह वो लोग है जो कभी इस देश को प्रति सचेत नहीं रहे ,उसे अपनी जागीर समझ कर उलजलूल निर्णय थोपते रहे। उनके अपने घर साजो सामान से भरे पडे है किन्तु दूसरों के घर फाका है इस बात को जानते हुए उन्हें भुखमरी की गर्त में ढकेल रहे हैं। वह यह भूल जाते है कि पूर्वर्ती काल में भी भारतीय शासकों ने इस परम्परा का निर्वाह किया था किन्तु हुआ क्या ? वह शरण लेकर यही अपना धंधा किये ,पैसा कमाये और फिर हमें गुलाम बनाकर यही पर शासन किया ,उनकी दांस्ता व मानसिकता से हम आज तक नहीं निकल पाये ।

आज एक बार फिर ऐसा ही समय आने वाला है। हम निरंतर गुलामी की ओर  बढ़ते जा रहे है, जिस पर चर्चा करनी होगी और इससे देश को बचाना होगा । देश के लोग बेधर, भूखे व नंगे है और हमारे हूकुमरान दूसरे देश से आये शरणार्थियों की जी हूजूरी में लगे है। वह आज हमारे नपंुसक तंत्र का फायदा उठाकर न सिर्फ इनकी मदद कर रहें हैं बल्कि उनकी ही वजह से, यह यहां के नागरिक बनकर आज सारा लाभ उठा रहें है। इतना ही नहीं अब वह निर्वाचन सूची में अपना नाम डलवाकर मतदान कर हमें ही अपने देश से बाहर करने के फिराक में है। एक बार गौर करे और देखें कि देश के मुख्यालय व एक प्रदेश पर तिब्बत से आये लोगों का कब्जा है और चीन की तरफ से इन तिब्बियों को लेकर हमेशा घुसपैठ होती रहती है । दलाईलामा सहित लाखों लोगों को हमने शरण दे रखी है किन्तु इन शरणाथियों की संख्या अब देश की जनसंख्या की दस प्रतिशत से ज्यादा हो गयी है जो स्थायी तौर पर अब शरणार्थी नहीं, यहां के निवासी बन गये हैं । वह यहां के नेताओं के चलते देश की राजनीति में नहीं बल्कि यहां के नागरिकों के अधिकारों पर भी काबिज हो रहे हैं। यही हाल बांग्लादेश का है।

बांग्लादेश से आये मुसलमानों की बात करें तो वह  अब अपनी नस्ल के रूप में पूरे पश्चिम बंगाल पर काबिज हो रहें हैं । कश्मीर पहले से ही मुस्लिम शरणार्थियों के कब्जे में है। यह यहां आये इनको शरण मिली ,दुख इस बात का नहीं है दुख इस बात का है कि इन लोगों ने वहां के लोगों को बेघर कर भगा दिया और आज अपने ही देश में कश्मीरी पड़ित दर दर की ठोकरें खा रहा है । यही हाल अमूनन सारे देश के सभी जगहों पर है। जहां इस तरह के लोग रहे, इनके लिये कोई अलग से पहचान पत्र नहीं है मात्र चंद रूपये देकर यह यहां के वाशिदें बन गये। पश्चिम बंगाल के मालदा व मुर्शिदाबाद जिले में इन बाग्लादेशी मुसलमान लोगों ने हद ही कर दी। वहां आये दिन एक बंगाली लडकी के साथ बलात्कार होता है और वह जबरन मुसलमान बना दी जाती है । ऐसा वहां के लोग बताते है । लोगों का जीना मुहाल है। पूर्व रेलमंत्री सी के जाफरशरीफ के समय से यह कार्य होता चला आ रहा है और आज भी बदस्तूर जारी है। लोग तो यहां तक कहते हैं कि मालदा जिले के जो लोग जाफरशरीफ के समय में दिल्ली गये, वह दिल्ली के बड़े बड़े बंगलों व सरकारी संस्थानों में माली के पद पर रख दिये गये ताकि दिल्ली कैसे चल रही, वह वहां रहें या न रहें उन्हें यह पता चलता रहे। यही हाल अब भी है ताजा सांसद की भी मौन सहमति इस कार्य के प्रति हमेशा से रही है। कश्मीर में किस तरह से पंडितों की लड़कियों को जबरन मुसलमान बनाया गया। यह किसी से छिपा नहीं है ,दिल्ली में ही तिब्बियों के लड़के लड़कियां अपने वजूद को बढ़ाने के लिये गैर तिब्बतीयों का सहारा लेकर विवाह कर रहें है। सभी की नजर हिन्दू पर ही है। ऐसा लगता है कि आने वाले समय में देश की यही नीति रही और कार्यपालिका ऐसे ही कार्य करती रही तो अपने ही देश में हिन्दू को इनके यहां शरणार्र्थी बनकर शरण लेनी पड़ेगी। यह गलत है किन्तु यह आज भी चलन में है और आये दिन लाखों लोग इस तरह से भारतीय नागरिक बन नौकरी ले रहे है।भारत में बेरोजगारी बढ़ा रही है।

सबसे खास बात यह है कि पिछले कुछ वर्षो सें देश को तोड़ने की जो साजिशें हुई उसको अंजाम तक पहुंचाने वाले,इन्हीं के बीच रहे । इतना ही नहीं बार बार इस बात की जानकारी सीबीआई ने अपने आलाकमान को दी किन्तु राजनेताओं की चाटुकारिता के चलते इन अधिकारियों ने कभी कारवाई नहीं की । वरना दाउद न तो इस तरह से अपने गुर्गो के साथ बाहर जाता और न ही कसाब जैसा अपराधी इस तरह मौज करता। सारी देन राजनेताओं की ही है। आखिर क्यों हम यह भूल जाते है जिनकी मदद हम कर रहे हैं वह दूसरे देश से आये हुए लोग है। खैर इस बात से किसी को क्या फर्क पड़ता है । जब हमारे अपने देश के लोग हमारे अपने नहीं हो सके और आये दिन शीर्ष पदों पर बैठ कर देश केा तोड़ने का निरंतर प्रयास कर रहें है । तो वह हमारे कैसे हो सकते है जो शरणार्थी बनकर आये हैं। यह बात बखूबी हमें समझनी चाहिये । इस पर अब हमारे आका बात करें उनकी इस कोशिश पर, हमें अब बढकर पूर्ण विराम लगाना चाहिये। यह अब अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारने वाली बात होगी, नहीं तो वह दिन दूर नहीं, जब देश को बेंचकर यह कांग्रेसी तो चले जायेंगें और हमारे हिस्से गुलामी छोड़ जायेंगें ।

 

ऐसा नही है कि हम कुछ भी करते रहे और देश पर उसका प्रभाव नही पडेगा।जैसे लोगों का कृत्य प्रभाव डालता है हमारा भी डालेगा क्यूंकि हम यह सोचकर की कि कुछ फर्क नही पडता कुछ करने से बचे रहे है और दूसरा हमारे जमीन पर अपना मकान बना ले रहा है और हम कुछ नही कर पा रहें है वास्तव में कोई किसी के लिये कुछ नही करता उसे खुद ही करना पडता है। तब स्थायित्व मिलता है नही तो बेआबरू होकर तेरे कुचे से हम निकले वाली बात हो जाती है।

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