इंसान के पशुवत होने पर रोक लगना जरूरी

देश हिंसक हो गया है और ऐसा इसलिये है कि लोग साग सब्जी से ज्यादा मांस व मदिरा का सेवन करने लगे है । इस मांस के सेवन से इंसान को बाहर लाना होगा। लोगों को भारत की पहचान के अनुरूप सात्विक बनाना होगा। जो योगी आदित्यनाथ ने सत्ता में आते ही उ.प्र में किया वह बिल्कुल ही सही था,अन्य राज्यों को भी इसे करना चाहिये। आज भी प्रयाग का अपना धार्मिक महत्व है और गंगा बहती है लेकिन वहां बूचडखाना था जिसमें मवेशी काटे जा रहे थे और यह काम सरकारी संरक्षण  में हो रहा था। जिसे बंद किया गया , यही सरकार का काम है और सरकारों को जीयो और जीने दो के सिद्धान्त पर काम करना चाहिये। यही आरएसएस करता है और करने का प्रयास करता है जिसके कारण उसे किसी से आंका नही जा सकता।

सही मायने में देखा जाय तो जानवर हमारे परिवार का एक हिस्सा है और उनके लिये हमें प्रयास करना चाहिये कि जब वह हमें इतना कुछ देते है तो हम भी उनके लिये बेहतर कर सके। लेकिन होता कहां है, जो बकरी , गाय व भैस हमें दूध देती है उसे दूघ न देने के कारण हम अपने से दूर कर देते है बेचकर दूसरी ले आते है और कभी यह नही सोचते कि इस जानवर का दूध हम पीकर इतने बड़े हुए उसका हाल क्या है । कभी उसकी तरफ नही देखते कि किस हाल में है। वह जिन्दा है या मर गयी ।उसे जिंदा कटने के लिये बेच तो नही दिया गया। दूसरी आयी और दूध दे रही है, हमारा काम चल गया और नही देगी तो दूसरी ले लेगें यही सिद्धान्त चल रहा है। जिससे पता चलता है कि देश पशुवत संस्कृति पर चल रहा है। इंसान की इंसानियत कांग्रेसी हो चली है।

इस तथ्य का असर हम अपनी जिन्दगी पर देखें तो साफ नजर आयेगा कि जैसे अपने पशु के साथ किया था वैसा ही हमारे साथ हो रहा है। जब तक हम अपने बच्चों को कुछ दे रहें है तब तक वह अपना हमें समझ कर साथ रख रहें है, नही तो वृद्धा आश्रम की ओर छोड़ आते है देखने भी नही आते की जिन्दा है या मर गया। रिश्तों में इस मानसिकता का इतना गहरा प्रभाव पड़ता  है कि पति पत्नी के बारे में यही सोचता है , बेटा पिता के बारे में यही सोचता है और बेटी मां के बारे में यही सोचती है और आगे यही वंशानुगत चलता है। हम इसे चाहकर भी बदल नही सकते। इसी तरह अगर आप घर में बलि देकर किसी चीज के मांस को प्रसाद बताकर खाते है तो आपके बच्चे भी वही काम करते है उनके सामने बलि होती है और तडपता हुआ पशु देखते है तो उनके अंदर की इंसानियत मर जाती है और तडप की छाया ही उनको अच्छी लगती है। यह अपराध की पहली सीढी है जो परिवार से मिलती है और हम लगातार आगे बढते जाते है।

एक अन्य बात जो सबसे ज्यादा चिंता का विषय है , मांस का सेवन जो लोग नही करते व सहिष्णु है वह लगातार उत्पीडन  का शिकार हो रहे है।सामाजिक माहौल बदल रहा है हर आदमी उन्हें अपने जैसा मांसाहारी बनाने पर लगा है। तर्क भी ऐसा देते है कि मानों दुनिया में सभी मांसाहारी हो,मां का दूध मांसाहारी बताते है, सिंधाडा पानी में होता है वह खा सकते हो तो मछली क्यों नही? दोनों में जीव दिखता है और दोनों पानी में बढते है। सब्जी भी तो बढती है, जानवर भी, तो उसे खा सकते हो मांस क्यों नही ? इन बातों से समाज पकने लगा है।अब हालात यह है कि मछली सब्जी की दुकान पर मिलती है तो अंडा पूरे रास्ते पर बिकती है उसके खूशबू से आप बच नही सकते और मांस बेचने वालों ने तो हद ही कर दी है चौराहों पर दूकान खोल रखी है और खुलेआम लटका कर लोगों को हिंसक बना रहें है । समाज को बीमार बना रहें है।

उप्र के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ बधाई के पात्र है जिन्होने अवैध बूचडखाना बंद कराया , और सभी को बंद कराने का निर्देश जारी किया। इसका अनुपालन देश के हर भाजपा शासित राज्यों को करना चाहिये। यह हमारी नैतिक जिम्मेदारी भी है कि हम बुजुगों के सिद्धान्त पर काम करें कि जीओ और जीने दो।अगर भाजपा अपने राज्यों में यह काम बंद कर देगी तो अन्य राज्यों के बीच एक अच्छा संदेश जायेगा कि मांस पर काम नही होना चाहिये और वहां भी एक लामबंदी इसे लेकर होगी। अभी हम विश्व का पेट अपने मवेशी को औने पौने दाम पर बेच कर भर रहें है. जरूरत है कि उन्हें न बेचकर उनके द्वारा मिलने वाले दूध , मूत्र व गोबर से बनने वाले आयुवेदों के उत्पादों को बेचकर पैसे कमाये और उन्हें भी एक संदेश दें कि यह खाने की नही, पालने की चीज है जो हमें जीवन प्र्यन्त कुछ न कुछ जरूर प्रदान करती है वैसे ही जैसे हमारे माता पिता देते रहते है कभी कुछ अपेक्षा नही करते ।

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