क्या राजनीति में देश जरूरी नही ??

आजकल एक प्रथा सी चल गयी है राजनीति में देश जरूरी नही ऐसा कुछ दल इशारा कर रहें हैं । चाहे वह केरल हो ,कश्मीर हो ,नागालैड हो या फिर अब बंगाल सभी जगह देश हित से जरूरी देशद्रोह है और उसी को प्राथमिकता दी जा रही है।मुसलमानों की बात हो या फिर ईसाईयों की ,सभी हिन्दूओं से बनाया जा रहा है और उन्ही के खिलाफ उनको इस्तेमाल किया जा रहा है जैसा कि अंग्रेज अपने समय में करते थे।

बात कश्मीर से शुरू करते है ,यहां से शुरू करने का एक कारण यह भी है कि स्वर्ग पर कैसे नरक का सपना साकार हुआ। बंटवारे के बाद मुसलमानों ने वहां रहना शुरू किया और जो हिन्दू पाकिस्तान से शरणार्थियों के रूप में आये हुए थे ,उन्हें वहां टिकने नही दिया गया और जो वहां के नागरिक थे उनको भगा दिया गया। जो शरणार्थियों के रूप में आये थे वह राज कर रहे थे और जो राज करना चाहिये थे वह दर दर की ठोकरे खा रहे है।इसी तरह केरल में हुआ जो हिन्दू थे उन्हें या तो ईसाई बना लिया और या फिर मुसलमान , किसी भी सरकार ने इस पर ध्यान नही दिया और केरल भारत का हिस्सा है इस बात पर भी संदेह के बादल मडरा रहें हैं। हिन्दू वहां लगातार खत्म हो रहे है और परिवर्तित कर अन्य पंथ अपनाये लोगों को बोलबाला है।सरकार सारी सुविधाए ऐसे ही लोगों को दे रही है।

अब बात करते है नागालैंड व पूर्वोत्तर राज्यों की , वहां भारतीयता और हिन्दूत्व प्रमुख नही है वहां सरकार जो अब तक रही वह मानसिंह वाला काम था। उन्होंने हिन्दूओं को विस्थापित करने व धर्म परिवर्तन कराने पर बल दिया और उसमें वह कुछ हद तक कामयाब भी रहे। असम किसी तरह से निकला लेकिन सिक्कम ,अरूणाचल प्रदेश आदि में बहुत कुछ होना बाकी है। लोग लालच में इस कदर पड़े हुए है कि हिन्दू से लगातार पलायन कर रहें हैं। नागालैड की स्थिती और खराब है वहां भारत सरकार का नही एक नया ही कानून चलता है , भारत में रहकर एक अलग देश चल रहा है और वहां भी भारतीयों की स्थिती कश्मीर सी ही है।केन्द्र सरकार को इसे मुख्यधारा में लाने के लिये कुछ करना चाहिये लेकिन लगता है कि अभी इसमें समय है।

दूसरी सबसे प्रमुख बात यह है कि राजनेताओं को यह समझ में नही आता कि जिन्हें वह हिन्दू को बर्बाद करने की अनुमति दे रहें है वह उनके भी दुश्मन है लेकिन हैरत की बात है कि केरल ,कश्मीर व अन्य राज्यों में जहां इस तरह के काम हो रहें है वहां किसी राजनेता की हत्या इसके लिये नही हुई। मप्र के बालाघाट में हुई थी तब नरसिंह राव प्रधानमंत्री थे लेकिन इस बात को भी लंबा समय बीत गया।और अब हालात यह है कि राजनेता इस मामलों पर बडी बेबाकी से अपना पक्ष सार्वजनिक रूप् से रख रहें है।जो कि किसी भी तरह से देशहित में नही है।ओबैदुल्लाह कुरैशी जैसे लोग तो देश के खिलाफ भी बोलने से गुरेज नही करते।इस्लामिक कानून चलाना चाहते है देश के संविधान को नही मानते।

सरकार चाहे तो देश विरोधी गतिविधियों को आसानी से रोक सकती है और ईसाई मिशनरियों व मदरसों पर रोक लगा सकती है लेकिन यह इतना आसान नही है ।पूर्वती सरकारों ने जो किया उससे इनका मनोबल इतना बढ़ गया है कि यह देश को अपने यहां का गुलाम मानते हैं।

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