इस तरह से मनाये आजादी का जश्न


हम पिछले कई दशकों से आजादी मनाते आ रहे है लेकिन जो जूनून आजादी के दौरान था, वह आज नही मिलता, ऐसा क्यूँ  है । इसके कई कारण है सरकारों के ध्यान से यह पर्व उतर गया और स्कूलों में आजादी के नाम पर छुट्टी रह गयी है। पहले बच्चों को आजादी के बारे में बताया जाता था, उनको लड्डु बांटे जाते थे तिरंगा देकर घरों पर लगाने के लिये कहा जाता था। वह अब प्रचलन में नही रहा । न ही कोई अपने घर पर तिरंगा लहराना चाहता है और न ही कोई स्कूल वाला आजादी के दिन लड्डू बांटना चाहता है। प्रतियोगिता का चरण तो नदारद ही हो गया है। आजादी का मायने सिर्फ खाना पूर्ति रह गया है और सभी इसी नजरिये से देखना चाहते है।

वैसे देखा जाय तो हमारे देश में आजादी को एक खर्चीले रवैये से देखा जाता है , आजादी के प्रति यह उदासीनता नही होनी चाहिये, इस पर विचार करना चाहिये। बच्चों को चाहिये की वह इसके बारे में जाने और आजादी कैसे मिली है इस मर्म को समझे। कितने शहीदों को देश के लिये कुर्बान होना पडा इस बात को जाने और अंग्रेजों व अन्य ने किस तरह से हमारे उपर अत्याचार किया यह समझे, लेकिन समय के साथ इस बात को भुलाया जा रहा है और नकारात्मक चीजें बाहर आ रही है। यह गलत है इस पर रोक लगना चाहिये। सही मायनों में देखा जाय तो यह सरकार का पक्ष नही है लेकिन सरकार को इसे मनाने के लिये प्रेरित करना चाहिये, न कि मनाना चाहिये , पूरे देश की सहभागिता होनी चाहिये और सभी को हिस्सा लेना चाहिये, जो कि पूर्वती सरकारों ने नही किया। इसके लिये जरूरी है कि बचपन से ही आजादी का जूनून बच्चों के अंदर भरा जाय , इस काम को स्कूल कालेज कर सकते है लेकिन वहां के ज्यादातर शिक्षक यह सोचते है कि आजादी का जश्न मनाने के लिये कुछ बोलना होगा और बोलने के लिये पढना होगा , इसके लिये वह समय नही बर्बाद करना चाहते। इसलिये आज ज्यादातर स्कूलों में छुट्टी कर दी जाती है और इस मामले से किनारा कर लिया जाता है।

वास्तव में आजादी एक जश्न की तरह होना चाहिये जिसमें देश के सभी नागरिक हिस्सा लें। आज के दौर में 70 प्रतिशत लोगों के पास यह जश्न मनाने का समय व धन नही है इसलिये सरकार को हर जिले में एक कार्यक्रम करना चाहिये और लोगों को शामिल करने के लिये ईमानदारी से आमंत्रित करना चाहिये। जिले के सभी घरों में ध्वजों का वितरण होना चाहिये व चौराहों पर आजादी के गीत बजने चाहिये, हमारे राष्टीय पोशाक व देश की एकता से जुडी सभी चीजों का प्रदर्शन होना चाहिये , सभी प्रदेशों के अपने अपने संस्कृति पर आधारित कार्यक्रम पूरे प्रदेश में होना चाहिये और प्रदेश व देश के मुखिया को चाहिये कि ऐसी व्यवस्था करे जो कि सभी नागरिकों तक उसकी बात पहुंचे लेकिन ऐसा होता कहां है। आम आदमी तो यह कर भी लेता है लेकिन सामूहिक तौर पर सरकारी मिशनरी यह काम नही करती । यह बात अलग है कि इस काम को कागजों पर करने के लिये उसके द्वारा करोडों का गमन हो जाता है किन्तु काम नही होता। प्रदेश की सरकारें चाहती तो यह काम हो जाता लेकिन उनका इस काम के प्रति उपेक्षात्मक रवैया शायद इसलिये रहता है कि उनका इस गमन में शेयर तय है।
बात यह नही है कि लोग इस पर्व को भूल चुके है, आजाद देश में लेबर के लिये आजादी कोई तोहफा नही है , वह एक दिन काम नही करेगा तो खायेगा क्या इस सोच में परेशान रहता है, आम आदमी अपनी जरूरतों को लेकर परेशान है और जो समपन्न लोग है उन्हें आजादी से कुछ लेना नही है क्योंकि जिस सिस्टम पर उनका काम चलता है उसके लिये आजादी व गुलामी मायने नही रखती उनकी तो तरक्की निश्चित है। सवाल यह है कि आजादी को प्रस्तुत कैसे किया जाय और क्या किया जाय जिससे देश के लोगों के अंदर एक सम्मान इसके प्रति पैदा किया जा सके। केन्द्र सरकार इस बारे में बहुत कुछ कर सकती है , देश में यह पर्व मनाया जाय इसके लिये प्रदेश सरकारों को निदेर्शित किया जाना चाहिये। वह हर जिले में इसके लिये कार्यक्रम करें और लोगों को प्रेरित करें । इस देश में कई ऐसे प्रदेश है जहां के स्कूलों में तिरंगा नही फहराया जाता और न ही कोई कार्यक्रम किया जा ता है। वह आजादी के विरोध में एक नयी नीव का पत्थर रख रहें है उसके खिलाफ साजिश का हिस्सा बन रहें है और देश उनके लिये सर्वोपरि नही है। ऐसे लोगों की पहचान कर उन्हें प्रेरित किया जाना चाहिये।
फिलहाल अभी भी समय है हम इस आजादी को हर अंदाज में मना सकते है और उसके लिये जरूरी है कि शिक्षा में आजादी के सभी पहलूओं को समायोजन करें, देश के कानून में निहित आजादी के मापदडों को जन जन तक पहुंचाये और वर्णित व्यवस्था जिससे देश भक्ति झलकती हो उसका अनुसरण करे। सभी राज्यों के कालेजों व स्कूलों में ध्वजारोहण सुनिश्चित करायें एवं सरकारी कार्यालयों व निवासों पर इसके लिये कार्यक्रम को जरूरी करें। इस दिन सभी जगह ध्वजारोहण के लिये एक घंटे  का अवकाश हो ,कहीं भी पूर्ण अवकाश न दिया जाय । मिष्ठान का वितरण स्कूल कालेज व सरकारी प्रतिष्ठान अपने स्तर पर करें कही कोई चंदा न लिया जाय , यह देश जब उनके लिये इतना करता है तो उनका भी फर्ज बनता है कि वह देश के लिये इतना करें । इस पर सख्ती होनी चाहिए कार्यक्रम न करने वालों पर जुर्माना व दंड दोनों हो सके तो सजा का प्रावधान होना चाहिये। उन्हे इस बात का अहसास होना चाहिये यह देश हमारा है और इसे करना जरूरी है।

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