खेद व्यक्त नहीं माफी मांगे…ब्रिटेन

आज से 100 साल पूर्व बैसाखी के दिन अमृतसर के जलियांवाला बाग में 13 अप्रेल 1919 को सैकड़ों लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी।
ब्रिटिश राज था देश में, 1917 में ब्रिटिश सरकार ने सर सिडनी रौलट की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया। इसी समिति के सुझावों के आलोक में फरवरी 1919 में केन्द्रीय ब्रिटिश सरकार ने दो विधेयक प्रस्तावित किए जिनके प्रावधान ’ न वकील, न अपील, न दलील वाली सकल्पना पर आधारित थे। 
इस प्रस्तावित ’रोलेट एक्ट’ के विरोध में देशभर में आवाजें उठने लगीं। इस राष्ट्रवादी भावना के दमन के लिए पंजाब के लेफ्टिनेंट गवर्नर माइक ओ. डायर ने पंजाब में सार्वजनिक सभाओं के आयोजन को प्रतिबंधित कर दिया।
इसी के विरोध में 13 अप्रैल 1919 को बैसाखी के दिन अमृतसर के जलियांवाला बाग में एक शांतिपूर्ण सार्वजनिक सभा का आयोजन अनुमति लेकर किया गया जिसमें भाग लेने के लिए आसपास के गांव से भारी संख्या में लोग आये थे। जनरल डायर ने इस आयोजन को ब्रिटिश सरकार के खिलाफ समझाा और बिना किसी पूर्व सूचना से उस निहत्थी भीड़ पर अंधाधुंध गोलियां बरसाईं। आधिकारिक तौर पर मृतकों का आंकड़ा 379 बताया गया लेकिन अनुमान से 1000 से ज्यादा लोग मारे गये थे। 
अभी कुछ दिन पूर्व ब्रिटेन की प्रधानमंत्री श्रीमती थेरेसा ने खेद प्रकट किया दरअसल ये  उसी ब्रिटिश रस्म की पूर्ति भर है, जिसे कभी 1997 में क्वीन एलिजाबेथ तथा  एडिनबर्ग के ड्यूक द्वारा पूरा किया गया था। जब वे हिन्दुस्थान आये थे तब जलियांवाला बाग में स्थित विजिटिंग रजिस्टर पर कोई प्रायश्चित मूलक टिप्पणी नहीं लिखी। इसी प्रकार 2013 में तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरून ने भी इस घटना को ’शर्मनाक’ तो कहा पर औपचारिक क्षमा मांगना मुनासिब नहीं समझा। यह वर्तमान ब्रिटिश सरकार का अनुचित आचरण है।
1914 में  एक घटना हुई थी। कनाडा में उस समय प्रवासी भारतीयों का एक जत्था बैंकुवर तट पर उतरना चाह रहा था पर उन्हें ऐसा करने से मना कर दिया गया। इसमें अनेक भारतीयों की जान गयी थी। 2016 में कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिस टूडो ने सार्वजनिक माफी मांगी थी।
ऐतिहासिक भूल का प्रायश्चित करना एक नैतिक दायित्व है। ऐसे में ब्रिटिश सत्ता द्वारा भारतीयों के प्रति की गयी ऐतिहासिक बर्बरता के विरूद्ध क्षमा प्रकट करना एक वैध नैतिक अपेक्षा है। ऐसा न करना हमारी राष्ट्रीय अस्मिता की निरंतर अवहेलना तो है ही साथ ही यह उस ’जीवित पीड़ित’ के प्रति ब्रिटेन की निष्ठुरता भी व्यक्त करता है। 

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