जयंतियाँ क्या छुट्टी मनाने के लिये हैं ?

हमारे देश में हर महीने कोई न कोई जयंती या पुण्यतिथी होती है और अवकाश कर दिया जाता है । इसका मतलब आज तक समझ में नही आया । हमने सुना था कि जयंती मनाने के लिये होती है यह छुट्टी कर मौज मनाने की यह बात किसी दार्शनिक ने नही बतायी । वैसे अब तक तो यही समझा जाता था कि किसी महापुरूष को याद करने के लिये है किन्तु उसे याद करने के बहाने मौज करना सिर्फ हिन्दुस्तान में ही संभव है।सही मायने में देखा जाय तो हमें उनकी जयंती मनाकर अपना काम अनवरत करते रहना चाहिये।
एक बार में यूपी के एक शहर में गया और विवेकानंद जयंती का कार्यक्रम था तो लोगों से पूछने लगा कि विवेका नंद जी के बारे में कुछ बताइये , तो लोगों ने वहीं नेट खोला और कुछ बाते बता दी , बहुत हैरत हुए कि कितनी जल्दी डिजीटल हो गये किन्तु उससे भी ज्यादा हैरत इस बात की हुई कि उन्हें नेट पर विवेकानंद जी को सर्च करना पडा। जिसे पूरा विश्व जानता हो , हमारे प्रधानमंत्री अपने उद्गार शब्द को जिनसे प्राप्त किये हो, भाइयों बहनों का बखान करने वाले पहले भारतीय जिन्होने अमेरिका को नयी राह दी उनको हमारे ही देश वासी सर्च करते है। फिर इस जयंती का क्या मतलब , इससे अच्छा होता कि हमारे कालेज या स्कूल में यह जयंती मनाई जाती , विवेकानंद को लेकर प्रतियोगिता होती और सभी बच्चे हिस्सा लेते , और से हटकर कुछ ज्ञान लेने के चक्कर में हम विवेकानंद जी को अच्छी तरह समझ पाते और जान पाते।
इसी तरह के एक कार्यक्रम में जाने का मौका मिला , लोहडी को लेकर कार्यक्रम था , पंजाब के एक सांसद महोदय भी हमारे साथ आमंत्रित थे। काफी जोरदार कार्यक्रम था किन्तु जब मकरसंक्राति व पोगल की बात आयी तो कहा गया कि हमें उससे क्या हमारा तो लोहडी ही ठीक है , वास्तव में देखा जाय तो वह अपनी जगह ठीक थे लेकिन अगर उनको उसके बारे में पता होता तो वह जरूर मनाते और अपने कार्यक्रम में शामिल करते।किन्तु इस परिचर्चा से एक फायदा हुआ कि पास ही चले रहे पोगल में सरदार जी लोग गये और शामिल हुए,दोनों समुदाओं में खुशियां आयी । जानने का मौका मिला किन्तु यहां देश छुट्टी मना रहा है पोगल , मकरसंक्राति या लोहडी नही,इन उत्सवों को लेकर भी हम बंटे है ऐसा लगता है।ऐसा लगता है कि यह सामूहिक नही है व्यक्तिगत है तो फिर सार्वजनिक अवकाश क्यों ?व्यक्तिगत अवकाश होना चाहिये।
इसी तरह एक बार मध्यप्रदेश के जबलपुर में आयोजित रविदास जयंती पर आमंत्रित था , स्कूल का कार्यक्रम था रविदास जी के बारे में बताया जा रहा था कि वह कैसे थे , उन्होने क्या क्या किया और कैसे जीवन बिताये।किन्तु उनके जीवन से हमें क्या सीख मिलती है यह किसी ने नही कहां । जब मेरी बारी आयी तो हमने रविदास जी की जिन्दगी पर कही बातों का सारांश बताया और बच्चों को समझाने का प्रयास किया कि पारस पत्थर जिसे किसी भी वस्तु में छुआ दिया जाय तो सोना हो जाता है , रखने के बाद भी उन्होने कर्म किया और मेहनत कश जीवन यापन करते रहे। इसबात को शिक्षकों को बतानी चाहिये थी जो मुझे बतानी पडी।इसका एक प्रभाव पडता लेकिन हम हमेशा इस प्रभाव से दूर रहते है।हमेशा देश के प्रति अपने दायित्व को कैसे भूल जाते है कि जिसकी हम रोटी खा रहें है उसके प्रति कुछ तो उत्तरदायित्व निभायें एैसे बीज अंकुरित करें जो देश को स्वस्थ समाज दें।
सही मायने में देखा जाय तो भारत को एक परिकल्पना पहले तैयार करनी थी और उसमें रंग कैसे भरना है इस पर विचार करना चाहिये था। देर ही सही लेकिन इस पर काम कर लेना चाहिये। यह इसलिये भी जरूरी है कि जिस इतिहास को हम पढ रहें है वह हमारा नही अंग्रेजों द्वारा पोषित है जिसमें हमारे महापुरूषों व योद्धाओं के बारे में कुछ नही है । हमें पता होना चाहिये कि हमारे पूर्वज कितने पराक्रमी थे तभी तो हम पराक्रम की कल्पना कर पायेगें। यह तभी संभव होगा जब हम उनके लिये थोडा सा समय देगें।देश को जयंती से एतराज नही है लेकिन जिसकी जयंती है उसके बारे में देश केा पता होना चाहिये।उस पर कार्यक्रम होने चाहिये , प्रतियोगिता होनी चाहिये, संस्कार के बारे में बताया जाना चाहिये। उनकी संस्कृति के बारे में बताया जाना चाहिये और उनके सृजनात्मक पहलूओं पर विचार करना चाहिये।न कि छृट्टी कर देश को गुमराह करना चाहिये।
दूसरी बात यह है कि भारत का अपना इतिहास है विदेशी यहां शिक्षा अर्जन के लिये आते थे भारत से कोई नही जाता था। किन्तु आज के परिवेश में देखें तो भारत में विदेशी इतिहास पढाये जाने को लेकर प्राथमिकता है जो गलत है।इस गंदे इतिहास को ठीक करना होगा और मुगल लुटेरों व अंग्रेजों की चापलूसी से बाहर निकल कर पाणिनी , आर्यभट्ट ,कालिदास , तुलसीदास , बाल्मिकी , वेदव्यास , रानी झांसी लक्ष्मीबाई , पेशवा बाजीराव,नाना साहब ,तात्या टोपे, मंगल पाण्डेय, राम प्रसाद विस्मिल,भगत सिंह , राजगुरू, सुखदेव , चन्द्रशेखर आजाद , सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला,मैथली शरण गुप्त,सरोजनी नायडू , सरदार बल्लभ भाई पटेल , वेद, पुराण, गीता, रामायण व विवेकानंद व दयानंद सरस्वती, चाणक्य समेत कई शासकों की जीवनी को पढाना होगा और देश व समाज का यह बताना होगा कि किन लोगों ने हमारे देश से यह खिलवाड किया है उनके चेहरे सार्वजनिक करने होगें।तभी नयी परंमपरा का जन्म होगा।

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