नवजात शिशुओं से ठगी क्यों

सरकार को बच्चों पर ध्यान देने की जरूरत है और उसमें भी नवजात शिशुओं पर , पूरे देश में एक ऐसा रैकट काम कर रहा है जो मां बाप को डरा घमका कर समय से पहले ही बच्चों को गर्भ से निकाल कर वसूली कर रहा है। अभी किसी का ध्यान इस ओर नही है लेकिन दो से पांच लाख तक की वसूली करने वाले यह बडे अस्पताल बच्चों के रहने की गारंटी भी नही लेते सिर्फ रूप्ये बटोरने पर भी केन्द्रित होते है।

बडे शहरों में लोग यह सोचते है कि उसके बच्चे को कोई दिक्कत न आये इसलिेय हर माह अपने बच्चे को चेक कराते रहते है और छह माह तक सबकुछ ठीक ठाक चलता है डाक्टर भी कहता है कि सभी ठीक है दंपति को भी लगता है कि अब ठीक है लेकिन सातवें महीने में चेक कराने पर बच्चे में गडबडी आ रही है और दंपति को डराने लगते है। वह भी सबकुछ डाक्टर पर ही छोड देते है और पैसे का इंतजाम करते है। डाक्टर यही से शैतान का रूप् घारण कर लेता है। पहले अल्टासांउड करेगा और फिर बच्चे को स्कैन करेगा। दो मशीने काम में आने के बाद उसे ब्लड टेस्ट के लिये भेजेगा और फिर आपरेशन से बच्चा निकालने की बात करने लगता है। साथ में यह भी कहता है कि बच्चे की जान के बारे में हम नही कह सकते लेकिन मां की जान तो बच जायेगी। दंपंित जान बचाने की कयास में जुट जाता है और यही से लूट जारी हो जाती है।

आपरेशन में दंपति से ढेर सारी दवायें मंगायी जाती है और उसे आपरेशन थियेटर में भेज दिया जाता है ऐसी दवायें मंगायी जाती है जिनका आपरेशन से ताल्लुक नही होता और काफी मंहगी होती है। मंगाते समय पूंछने पर कहा जाता है जरूरी दवायें मंगायी है और अगर उस समय जरूरत पड गयी और मंगाने का सोचा गया तो जान भी जा सकती है।इसमें से कुछ प्रयोग में ंआती है जो बच जाती है उसे पुनः दुकान पर भेज दिया जाता है लेकिन दंपति को वापस नही किया जाता। बीसों हजार की दवा सिर्फ वसूली के अलावा कुछ नही होती । सिर्फ बच्चा निकालने का जो खर्च वसूला जा ता है वह एक लाख के आस पास मघ्यम अस्पतालों में होता है। बडे अस्पतालों की तो पूछिये ही मत।

अब आपरेशन से हुए बच्चे की बात करते है उसे समय से पहले निकालने के कारण विकसित नही होने की बात करके गैसजार में डाल दिया जाता है और कहा जाता है कि अभी यह कुछ दिन तक जब तक नार्मल नही हो जायेगा यही रहेगा। यहां जो चार्ज लिया जाता है वह आठ से दस हजार तक प्रतिदिन का होता है कुछ दिन रखने के बाद जब बच्चा आंख खोलने लगे और हाथ पैर हिलाने लगे तो इन्फेकशन की बात करके उसे बैलटिनेटर पर रख दिया जाता है जहां उसका खर्च पन्द्रह से बीस हजार प्रतिदिन वसूला जाता है।इसके बाद सांस लेने की दिक्कत हो रही है बताकर बच्चे को मास लगा दिया जाता है यहा नाक से नली लगाकर दिखाने का प्रयास किया जा रहा है कि आप का बच्चा बचने लायक नही है हम बचाने का प्रयास कर रहें है।

सबसे बडी बात यह है कि इस दौरान अस्पताल में बच्चे को मां से दूर रखा जाता है ओर मिलने भी दूर से दिया जाता है कहा जाता है कि इन्फेकशन हो जायेगा। वहां कई और बच्चे रखे हुए है। उसके बाद वहां से जो दवा ली गयी और बच्चे को दी गयी उसका हिसाब जान मारने वाला होता है। दवा की पर्ची व रेट वह अस्पताल से दी गयी है कहकर बताते नही है।किस काम के लिये दी गयी यह भी नही बताते है।प्रतिदिन बेड का खर्च, डाक्टर की फीस प्रतिदिन उसे देखने की और फिर अन्य खर्च जो मिलाकर चार पांच लाख तक पहुंच जाती है।कुछ लोग तो बच्चे को अस्पताल में ही छोडकर चले जाते है क्योंकि यह उनके लिये देना मुमकिन नही होता । बजट से बाहर की चीज होती है और जीवन भर बच्चे से बिछडने का दर्द झेलते है।

अब इन नवजात शिशुओं की बात ,पेसे वाले पहले ही अस्पताल में कह रखते है कि अच्छा सा बच्चा चाहिये ,इस लिये यह सारा काम योजनाबद्ध तरीक ेसे होता है पहले अच्छे बच्चे का बिल इतना बता दिया जाता है कि दंपति की हैसियत से ज्यादा हो और कुछ जो आया है उसे रख लिया जाता है और फिर तगडी वसूली बच्चा चाहने वाली दंपति से की जाती हैं । इस तरह से एक बच्चे से हर अस्पताल जो जितना बडा है कमाई कर रहा है । यह कमाई पांच से दस लाख तक ही होती है।जिस पर अंकुश लगना चाहिये।अभी हाल में ही फोटिस अस्पताल में डेगू में हुए इलाज का मामला हुआ था जिसमें 16 लाख खर्च होने के बाद भी उसकी जान नही बच पायेगी।

सरकार को चाहिये की अस्पतालों पर निगरानी रखे और उस अस्पतालों पर ज्यादा जहां दूसरे राज्यों से आये लोग ज्यादा है।क्योंकि भाषा न होने के कारण हर तरह से दिक्कत होती है और अस्पताल क्षेत्रवाद से पीडित होने के कारण र्दुव्यवहार भी करते है।ऐेसे मामलों में आपरेशन व उसके बाद वसूली कुछ ज्यादा ही हो रही है। इस पूरे मामले में आशा वर्कर व सरकारी अस्पताल के कर्मचारी भी जिम्मेदार होते है वह शुरू में ही इतना घटिया  काम कर देते है कि दंपति का विश्वास उठ जाता है।एक ओर वहां जहां प्राइवेट अस्पताल की ओर चला जाता है वहीं अस्पताल में कार्यरत लोगों को भी काम से छुटकारा मिल जाता है।

 

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