निर्णायक रक्षा सुधार की पहल

स्वतंत्रता दिवस पर राष्ट्र को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक अत्यंत अहम घोषणा की। उन्होंने सैन्य बलों की क्षमताओं को और बेहतर बनाने के लिए चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ यानी सीडीएस की नियुक्ति का ऐलान किया। उन्होंने कहा, ‘हमारे सैन्य बल भारत का गौरव हैं। उनमें और बेहतर समन्वय के लिए मैं लाल किले से एक अहम घोषणा करना चाहता हूं कि अब भारत में चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ भी होगा।’ देश में फिलहाल यही व्यवस्था है जिसमें तीनों सेनाओं के प्रमुखों में से सबसे वरिष्ठ को चीफ्स ऑफ स्टाफ्स कमेटी यानी सीओएससी का दर्जा दिया जाता है। मगर यह कोई विशेष दायित्व नहीं, बल्कि अतिरिक्त जिम्मेदारी है। इसमें अमूमन कार्यकाल भी बहुत छोटा होता है। जैसे फिलहाल सीओएससी वायु सेना प्रमुख बीएस धनोआ ने 31 मई को यह पद संभाला था। वह 30 सितंबर को सेवानिवृत्त हो जाएंगे। उसके बाद सबसे वरिष्ठ होने के नाते जनरल बिपिन रावत यह जिम्मा संभालेंगे, मगर वह भी 31 दिसंबर को सेवानिवृत्त हो जाएंगे।

इस प्रकार देखा जाए तो स्थायी सीडीएस की नियुक्ति तीनों सेनाओं के बीच बेहतर समन्वय की दृष्टि से एक बड़ी पहल है। यह बीते 72 वर्षो के दौरान हुआ एक निर्णायक रक्षा सुधार है। इससे दुनिया भर में सामरिक मोर्चे पर आ रहे बदलावों से ताल मिलाने में भी सहूलियत होगी।सीडीएस सैन्य आधुनिकीकरण, संचालन तैयारियों और युद्ध जैसे तमाम मसलों पर राजनीतिक नेतृत्व को सलाह देने वाला इकलौता सैन्य सलाहकार होगा। विश्व में देखा जाय तो अमेरिका और ब्रिटेन जैसी तमाम आधुनिक सेनाओं में सीडीएस जैसी व्यवस्था है। हालांकि वहां उसका नाम अलग है। मोदी ने आगे कहा, ‘भारत जिस तरह की सुरक्षा चुनौतियों से जूझ रहा है उन्हें देखते हुए समय आ गया है कि तीनों सेनाओं के बीच तालमेल को और बेहतर बनाया जाए। सुरक्षा चुनौतियों से निपटने की दिशा में सीडीएस वह तालमेल और सैन्य बलों को प्रभावी नेतृत्व प्रदान करेगा।’ बाद में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी ट्वीट के जरिये कहा, ‘तीनों सेनाओं के बीच बेहतर समन्वय और संचालन को सरल बनाने के लिए आवश्यक सुधार के रूप में सीडीएस भारत के सुरक्षा परिदृश्य पर बेहद सकारात्मक एवं दूरगामी प्रभाव डालेगा।

’इसके अलावा सीडीएस के गठन के साथ ही तीनों सेनाओं की एकीकृत कमान का रास्ता भी साफ होगा। इससे तीनों सेनाओं के लिए दीर्घावधिक योजनाएं, रक्षा उपकरण खरीद, प्रशिक्षण और लॉजिस्टिक्स में सही तालमेल बैठेगा। मोदी की घोषणा के बाद अब रक्षा मंत्रालय सीडीएस नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू करेगा। इसमें उसके कार्यकाल और अन्य संबंधित मुद्दों को तय किया जाएगा। सीडीएस की बुनियादी भूमिका सेना, वायु सेना और नौसेना के बीच संचालन समन्वय को बेहतर बनाने की होगी। उसे राष्ट्रीय सुरक्षा के मसले को व्यापक दृष्टिकोण के साथ देखना होगा। इसके अस्तित्व में आने से भारतीय सुरक्षा बलों की क्षमताएं निश्चित रूप से और बेहतर होने जा रही हैं।

देखा जाय तो स्वतंत्रता के समय ब्रिटिश भारतीय सेना में कमांडर-इन-चीफ का पद हुआ करता था जो जनरल के एन करियप्पा संभालते थे ,एक बार जवाहर लाल नेहरू ने उनसे पूछा कि अगर पाकिस्तान केा युद्ध में हराना हो तो क्या करोगे। उन्होनें बेबाकी से जबाब दिया दस दिन में पाकिस्तान भारत के पास होगा तभी से जवाहरलाल नेहरू को हमेशा सैन्य तख्तापलट की आशंका सताने लगी। इसलिए उन्होंने अपने शासन में इस पद पद को समाप्त करके चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ यानी सीओएसी की परंपरा शुरू की। मगर सीडीएस की जरूरत लंबे समय से महसूस की जा रही थी। वर्ष 1971 में बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी जनरल मानेक शॉ को सीडीएस बनाना चाहती थीं, लेकिन नौकरशाही के अलावा वायु सेना और नौ सेना की कुछ आपत्तियों के चलते वह प्रस्ताव ठंडे बस्ते में चला गया।

सीडीएस नियुक्ति की बात की जाए तो सबसे पहले इसकी सिफारिश मंत्रियों के एक समूह यानी जीओएम ने की थी। इस मंत्री समूह का गठन कारगिल समीक्षा समिति के निष्कर्षो की पड़ताल करने के लिए किया गया था। भारतीय सामरिक रणनीति के पितामह माने जाने वाले के. सुब्रमण्यम कारगिल समीक्षा समिति के प्रमुख थे। मौजूदा विदेश मंत्री एस जयशंकर उन्हीं के पुत्र हैं। मई 2001 में तत्कालीन गृह मंत्री के नेतृत्व वाले जीओएम ने पूर्व रक्षा मंत्री अरुण सिंह की अध्यक्षता वाली समिति की संस्तुति पर इस विचार को आगे बढ़ाया। अरुण सिंह समिति ने ‘भारत के सामरिक बलों की कमान के प्रशासनिक नियंत्रण के साथ ही सरकार के लिए सैन्य सलाहकार की भूमिका के साथ’ सीडीएस पद की संकल्पना पेश की। सीडीएस के उस स्वरूप का कुछ हल्का संस्करण 2012 में रक्षा सुधारों पर गठित नरेश चंद्रा टास्क फोर्स ने पेश किया जिसके आधार पर पर चीफ्स ऑफ स्टाफ कमेटी के स्थायी चेयरमैन की व्यवस्था सामने आई। वर्ष 2016 में लेफ्टिनेंट जनरल शेकटकर समिति ने एक बार फिर यही सुझाव दिया।

प्रधानमंत्री मोदी ने अपने फैसले को अमल में लाने के लिए कोई समयसीमा तो नहीं दी है। न ही यह संकेत दिए गए कि यह कब से लागू होगा। फिर भी मौजूदा सरकार की चाल-ढाल को देखते हुए लगता है कि इसे जल्द ही अमलीजामा पहना दिया जाएगा। इसे अंतिम रूप देने से पहले कई पहलुओं पर विचार करना होगा। मसलन सीडीएस का कार्यकाल कितना होगा या फिर उसकी जवाबदेही किसके प्रति होगी। क्या वह प्रधानमंत्री को रिपोर्ट करेगा या सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति को? उसका मुख्यालय कहां होगा? प्रधानमंत्री कार्यालय में या रक्षा मंत्रालय में? सीडीएस के क्या अधिकार होंगे? क्या उसके पास बजट और संसाधन आवंटित करने की शक्ति होगी? या फिर वह केवल प्रतीकमात्र होगा? वरीयता अनुक्रम में उसका क्या स्थान होगा? सीडीएस की नियुक्ति से पहले सरकार को इन सभी सवालों के जवाब तलाशने होंगे।

अब अगला सवाल यही है कि सीडीएस कौन बनेगा? इस पर केवल एक स्पष्टता यही है कि वह चार सितारा जनरल होगा। क्या वह मौजूदा प्रमुखों में से कोई एक होगा। प्रधानमंत्री की घोषणा का समय भी बहुत महत्वपूर्ण है। ऐसा इसलिए, क्योंकि सेना और वायु सेना प्रमुख जल्द ही सेवानिवृत्त होने वाले हैं। फिलहाल एयर चीफ मार्शल बीएस धनोआ सबसे वरिष्ठ हैं और इसी आधार पर सीओएससी के चेयरमैन हैं। वह सितंबर में सेवानिवृत्त हो रहे हैं। सेना प्रमुख जनरल रावत भी दिसंबर में सेवानिवृत्त हो रहे हैं। चूंकि सेना प्रमुख का दायरा तीनों सेनाओं में सबसे बड़ा है तो इस लिहाज से वह इसके लिए स्वाभाविक पसंद होने चाहिए। तीनों सेनाओं के प्रमुख को तीन वर्ष का नियत कार्यकाल या 62 वर्ष तक की सेवा अवधि मिलती है। ऐसे में अगर सरकार मौजूद प्रमुखों में से किसी को सीडीएस बनाती है तो इस पद के लिए सेवा अवधि की आयु सीमा भी 62 वर्ष से अधिक बढ़ानी होगी।

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