वृक्षारोपण समय की आवश्यकता

सारी दुनिया पर्यावरण की चिंता, देखभाल हेतु विश्व पर्यावरण दिवस मनाती है। आज समुचा विश्व Ecology, Environment , Pollution, Economy इसमें उलझा है। भारतीय संस्कृति, हिन्दू धर्म में पर्यावरण विषयक विचार सर्वांगी व्याप्त है।
हम सबेरे उठने के पश्चात शय्या से जब भूमि को स्पर्श करते हैं तब भूमि पर पैर रखने के पूर्व स्त्रोस्त्र स्मरण कर वंदंन करते है।
वसुंधरे नमस्तुभ्यम्, भूधात्री नमोस्तुते।
रत्नगर्भे नमस्तुभ्यम् पादस्पर्शम् क्षमस्वमे।।
समुद्रवसने देवी पर्वतस्तन मण्डले।
विष्णुपत्नि नमस्तुभ्यम् पादस्पर्शम् क्षमस्वमे।।
अर्थात:- हे वसुन्धरा तुझे नमस्कार, जीव जगत को धारणकत्र्री को नमस्कार, रत्नों की धरणी को नमस्कार, मेरे चरण स्पर्श के कारण मैं क्षमा प्रार्थी हूँ। हे विष्णु पत्नी देवी समुद्र जिसका वस्त्र है, पर्वत जिसका स्तन मण्डल ह,ै इसको मैं चरण से स्पर्श हेतु क्षमा प्रार्थी हूँ।
स्नान करते समय भी देश की पावन नदीयों के जल का आवाह्न कर उस अभिमंत्रीत जल से स्नान करता हूँ एसी कल्पना करते है और उच्चारण करते है।
ग्ंागे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती ।
नर्मदे सिंधु कावेरी जलेस्मिन् सन्निधिम् कुरु।।
आज पृथ्वी का स्वास्थ्य बिगड़रहा हैः-
वायु मण्डल में कार्बन-डाय-आॅक्साईड, कार्बन-मोनो आॅक्साईड का प्रमाण बढ़ रहा है। वातावरण में गर्मी का प्रमाण, उष्णता बढ़ रही है।
ठंडी का कालांश कम हो रहा है। जंगलों में आग लगने के प्रमाण बढ़ रहे है। ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे है। देश के अलग-अलग हिस्सों में अकाल पड़ने का प्रमाण बढ़ रह है। ट्यूबवेल और कुओं का पानी प्राप्त करने हेतु गहरी खुदाई करनी पड़ रही है। पहाडों पर पानी के झरने कम हो रहे हैं। वसंत ऋतु का आगमन जल्दी हो रहा है। शरद ऋतु देरी से आ रही है।
वर्षा अनियमित होने लगी है। पौधे में फूल समय से पहले लगने लगे हैं। पंछी समय से पूर्व अंडे देने लगे हैं। विभिन्न प्रकार के रोग, संक्रामक रोग बढ़ रहे हैं। (डेंगु, चिकनगुनिया, स्वाईन फ्लू, केंसर) कुछ पंछी, जीव-जन्तुओं की प्रजातियाँ विलुप्त होने की कगार पर हंै।
चक्रवातों का प्रमाण बढ़ रहा है। बादल फटने की घटनायें अधिक हो रही हंै। देश स्वतंत्र हुआ तब देश की आबादी 36 करोड़ थी । जंगल 45 प्रतिशत भूमि पर थे। आज देश की आबादी 128 करोड़ के आस-पास है और जंगल 20 प्रतिशत भूमि पर बचे है। प्रतिवर्ष 45 हजार हेक्टीयर कि.मी. के वनों का ह्रास हो रहा है।
‘‘पर्यावरण’’
पर्यावरण का अर्थ प्राकृतिक जगत से है। हमारे चारों और क्या है? भूमि,जल,वायु,आकाश,वनस्पती,जीव-जंतु याने जिसमें हम आवृत्त है जो हमारे मनुष्य जीवन के चारों और विद्यमान है पर्यावरण कहलाता है। यह हमारे अस्तित्व के लिए भी आवश्यक है और हमारे विकास के लिए भी आवश्यक है।
आज यह पर्यावरण नष्ट हो रहा है और उसके लिए शब्द चल पडा है-प्रदूषण जिसको अंग्रेजी में च्वससनजपवद कहते है। यह प्रदूषण क्या है? प्रदूषण का अर्थ है पर्यावरण में असंतुलन उत्पन्न होना। यह असंतुलन होने का मतलब है पर्यावरण में जीवन को नुकसान पहुचाने वाले भौतिक, रासायनिक और जैविकीय तत्वों की आवश्यकता से अधिक उपस्थिति। जीवन को नुकसान पहुचाने वाले ये तत्व वातावरण में सब जगह पर घुल गए हैं। इस लिए कहा जा सकता है कि हमारा पर्यावरण असंतुलित हो गया है या प्रदूषित हो गया है।
वनस्पति का अर्थः-
संस्कृति में वन धातु के विभिन्न अर्थों (द्रवित होना, पानी, जीवन, विस्तार) में एक अर्थ जल भी होता है। प्राचीन काल में ऋषियों ने अनुभव किया था कि पेड़-पौधों का जल से सीधा संबंध है। जहाँ पेड़-पौधे होते थे वहाँ जल की प्रचुरता हो जाती थी। संभवतः इसीलिए पेड़-पौधों के लिए ऋषियों ने वनस्पती शब्द का प्रयोग किया (वनस्पती त्र जल का पति)
वृक्षः- वृ-(पृथ्वी,मेधा), क्ष-(क्षयाति, रक्षति) जो पृथ्वी या बुद्धि को नाश से बचाती है उसे वृक्ष कहते हंै।
एक अध्ययन में पाया गया कि वृक्ष से ढकी भूमि को खुली जमीन की तुलना में 2.5 इंच जल प्रतिवर्ष ज्यादा मिलता है।
हिमालय पर वनस्पती आवरण घटने से जल स्त्रोंतो में गत 5 वर्षों में 25 प्रतिशत तथा 50 वर्षों में 75 प्रतिशत कमी आई।
वन अनुसंधान संस्थान, देहरादून जिसके स्थापित हुए 100 वर्ष से अधिक हो चूके है। देहरादून का एक शताब्दी पूर्व औसत अधिकतम तापमान 29℃ और गत 10 वर्षों का औसत 40.7℃ ।
आन्ध्र प्रदेश में रामगुण्डम में छज्च्ब् का सुपर थरमल पाॅवर स्टेशन है, विद्युत उत्पादन के लिए अत्यधिक ईंधन जलाने तथा प्रदूषण के कारण यह नगर बहुत गरम हो गया था, यहाँ गर्मियों में तापक्रम 48℃ तक पहुँच जाता था इसी कारण यहाँ के लोग रामगुण्डम को अग्नीकुण्डम् अर्थात आग का कुण्ड कहते थे। यहाँ के लोग गर्मी से अत्यधिक दुखी थे।
छज्च्ब् के लोगो ने इस दर्द को समझा तथा पिछले 1.5 दशक में केन्द्र के चारों तरफ विभिन्न प्रजातियों के 6 लाख पौधों का रोपण कर हरी पट्टी का निर्माण किया। सेटेलाईट से 86, 92 में अध्ययन के बाद पता चला इस क्षेत्र के तापक्रम में 3℃ की गिरावट आई है, क्षेत्र में वर्षा में 18 प्रतिशत वृद्धि, भू जल स्तर बढ़ा ।
प्रदूषण
जो आॅक्सीजन गैस हम श्वास में लेते उसे प्राण वायु कहते है और उच्छवास छोड़ते उसमें कार्बन-डाय-आॅक्साइड होता है । वातावरण में कार्बन-डाय-आॅक्साइड की अधिकता मनुष्य को प्राणहीन, शक्तिहीन, आलसी बनाती है।
कार्बन-डाय-आॅक्साइड की स्थिति:-
खेती या चारागाह की तुलना में जंगल प्रति हेक्टर 20 से 100 गुना अधिक कार्बन संग्रह करते है। अतः देश कार्बन-डाय-आॅक्साइड की बडी खतरनाक मात्रा को घटाने के लिए वृक्ष रोपण ही एकमात्र सफल उपय है।
वृक्ष जहरीली वायु छान कर पी जाते है ।
वायु की धुल कई हजार कि.मी. की यात्रा करने में सक्षम होती है। आज श्वास की अनेक बिमारियों का कारण धूल है।
हम परमाणु परीक्षण धरती के नीचे किए है उससे चट्टानों की बनावट बिगडी है और संतुलन में बिखराव हुआ है।
प्रदूषण के उदाहरणः-
40 साल पहले न्ै। के डेट्राईट औद्योगिक शहर में अजीब बरसात हुई बाहर सुखते कपड़े जल पडे जिस पर वर्षा का पानी पडा वह चिखने लगा बाद में पता चला वह गंधक का अम्ल था । कारखानों की चिमनीयों से हवा में इतनी सल्फर- डाय- आॅक्साइड गैस जमा हो गई थी कि बादलों के साथ रसायनिक क्रिया करके रिमछिम वर्षा कर दी दहकते तेजाब की।
1979 में ईटली के सेवेसी शहर में हुआ, हवा में अजीव सी गंध तेर रही है। फिर देखा कि मुर्गीयाँ मरने लगी, पेड़ सुखने लगे, बुढें खांसते खांसते परेशान हो गये। ट्राइक्लोरोफीनाल नामक रसायन करता था।
1984 में भारत में भोपाल गैस दुर्घटना हुयी। कीटनाशी दवा बनाने वाले युनियन कार्बीइड के कारखाने से मिथाइल आईसोसाइनेट नामक द्रव तापमान में बड़ जाने से गैस बन गया। गत वर्ष दीपावली के पश्चात् दिल्ली में वायु प्रदूषण के कारण बदतर स्थिति हो गयी थी। दिल्ली गैस चैंबर बन गयी थी।
क्षीण हो रही है ओजोन परतः-
सूर्य का तापमान 5.5 लाख ℃ है। वहाँ से आने वाली पराबैंगनी किरण ओजोन सोख लेता है पृथ्वी से आज इस 25 कि.मी. दूर ओजोन परत ब्थ्ब् (क्लोरो फ्लोरो कार्बन) नामक मानव निर्मित रसायन के कारण पतली हो रही है।
पहले हम यही समझते थे कि ब्थ्ब् एक वरदान है और वे मनुष्य के जीवन को समृद्ध और आराम दायक बना सकते है। ब्थ्ब् – क्लोरिन, कार्बन और फ्लोरिन से बने होते है। उनका न कोई रंग और न कोई गंध होता है। इसे दिनांे दिन कई कार्यो में ब्थ्ब् का उपयोग किया है। मुख्यतः शीतलक के रुप में होता है। जब वेे वाष्पीकृत होते है वे आस-पास से ऊष्मा ग्रहण करते है। इससे फ्रीजों में खाना ठंडा रहता है। इसी वातानुकुलक ब्थ्ब् के वाष्पीकरण उर्जा का उपयोग करके कमरों और वाहनों को ठंडा रखते है। विकासशील देशों में ब्थ्ब् से युरीथेन फोम बनाया जाता है जो कारों की सीटें आदि बनाने के काम आता है।
ओद्यौगिक क्रान्ति पूर्व 1807 के तापमान से आज 4 डिग्री का अन्तर आया है तथा अनुमान है कि इसकी गति 25 वर्षों में बढ़ोतरी 5 डिग्री और हो जायेगी ।
गंगोत्री में ग्लेशियर प्रतिवर्ष लगभग 1 मिटर पीछे जा रहा है।वृक्षों को मात्र लकड़ी का कंकाल समझा गया तब-तब इनका भयंकर विनाश हुआ, परीणाम स्वरुप हरे भरे क्षेत्र रेगीस्तान बने और सभ्यतायें नष्ट हो गई। वृक्ष मात्र लकड़ी पैदा करने के साधन नही है। एक कसाई किसी जानवर का मुल्यांकल उसमें मिल सकने वाले मांस की मात्रा और उसके स्वाद के आधार पर करता है। यह जानवर कुछ अन्य लाभ भी दे सकता है यह उसकी दृष्टि में गौण रहता है। वृक्षों के साथ भी कुछ ऐसा ही है। जिसका दूसरा पक्ष इसकी लकड़ी की कीमत से हजार गुना कीमती है।
पौधों की उत्पत्तिः-
कमल- विष्णु की नाभि से
वट- यक्षों के राजा मणिभद्र के हाथ से।
धतूरा- महेश्वर का हृदय से
खैर – ब्रम्हा का मध्य शरीर से
पीपल – सूर्य, विष्णु, कृष्ण
बेल – लक्ष्मी के हाथ, शिव, दूर्गा
बरगद – शिव, लक्ष्मी
तुलसी – कृष्ण, विष्ण, राम, लक्ष्मी, चन्द्रमा
अपने यहाँ पुर्नजन्म की मान्यता के अनुसार आत्मा अजर और अमर है, जीव मरने के बाद कर्मो के अनुसार भिन्न भिन्न रुपों में पृथ्वी पर बार बार जन्म लेता है। 84 लाख योनियों में जीवात्मा भ्रमण करती रहती है, जिसमें समस्त प्राणी वनस्पतियाँ तथा यहाँ तक की पहाड व नदियाँ भी शामिल है।
भारतीय संस्कृति में पित्तरों को तर्पण (जल दान) या पिण्ड दान आदि करते समय उन पित्तरों को भी जलादि दिया जाता है। जो वनस्पतियों के रुप में जीवन व्यतीत कर रहे होते है। मनुस्मृति में वृक्षों को तमो गुण प्रधान कहा है, फिर भी इनमें भीतरी ज्ञान होता है और यह सुख दुःख का अनुभव करते है। भारतीयों में वृक्ष -देवता मानने की परिपाटी भी इसलिए ही है। आयुर्वेद में इस निमित्त किसी वरस्पति के अंग या अंश को लेने के पूर्व उसे सूचित करना उद्वेश्य माना गया है। वृक्ष को अभिमंत्रित करके कि तुम्हारे अमुख अंग को लेगें, जन हीतार्थ प्रदान करो, ऐसे मंत्र अभिमंत्रण के मिलते है।
वृक्षों से संबंधित व्रतः-
चैत्र मास के व्रतः- 1. शीतलाष्टमीः- चैत्र कृष्ण पक्ष की अष्टमी जिस दिन शीतला देवी की पूजा होती है। शीतला देवी की पूजा में नीम की पत्तीयाँ और शाखाएँ प्रयोग करते है।
2. वर्षप्रतिपदा:- चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा को लोग नीरोग रहने की भावना से नीम के पत्ते खाते है।
3. अशोक सप्तमी:- चैत्र शुक्ल सप्तमी को अशोक वृक्ष के आठ पल्लव पानी में डालकर उस जल को पीते है तथा अशोक के फूलों से विष्णु की पूजा करते है।
जेष्ठ माह के व्रतः-
वटसावित्री व्रत- जेष्ठ शुक्ल पूर्णिमा को वट वृक्ष की पूजा होती है।
करवीर व्रत- जेष्ठ शुक्ल प्रतिपदा को देवता के बगीचे में जाकर कनेर के वृक्ष का पूजन करते है।
श्रावण मास के व्रतः-
दुर्गा गणपती- बेल पत्र, शमीपत्र, दूब, तुलसी,दूर्वा अर्पण करते है।
भाद्रपद के व्रतः-
कदली व्रत- केले के पेड़ के समीप बैठकर पूजा की जाती है।
अश्वनी मास के व्रतः-
विजया दशमी- विजय प्राप्ति की कामना हेतु शमी वृक्ष की पूजा की जाती है।
कार्तीक माह के व्रतः-
तुलसी विवाह – विष्णु मुर्ति का तुलसी के पौधे से विवाह करते है। भगवान श्रीकृष्ण ने पीपल के महत्व को बताते हुए कहा-
अश्वत्थः सर्व वृक्षाणां देवर्षीणांच नारद्ः।
गन्धर्वाणां चित्ररथः सिद्धानां कपिलोमुनिः।।
पीपलः- भगवान कृष्ण ने गीता के दसवंे अध्याय में 62वें श्लोक में कहा है ‘‘अश्वत्थः सर्व वृक्षाणां’’ सभी वृक्षों में मैं पीपल हूँ।
बौद्ध लोग इस वृक्ष को बहुत पवित्र मानते है क्योंकि गौतम बुद्ध को इस वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ था। पीपल रात को आॅक्सीजन छोड़ता है। पीपल का एक वृक्ष अपने जीवनकाल में लगभग 2250 कि.ग्राम ब्व्2 वायु मण्डल से खींचता है और उसके बदले में 1710 कि.ग्राम आॅक्सीजन देता है।
अश्वत्थः पूजितोयत्र पूजिता‘ सर्वदेवताः
अर्थात पीपल की पूजा करने से एक साथ सभी देवताओं की पूजा का फल प्राप्त हो जाता है।
तुलसीः- यहाँ देवता वास करते है। तुलसी की गंध को लेकर वायु दशों दिशाओं में लोक कल्याण के लिए तुलसी के पौधे से ओजोन निकलता है।
भारत में बहुत से देवताओं (नक्षत्रों) को उनके वृक्ष के रुप में पहचानने की विशिष्ट धार्मिक परमपरा भी थी ।
आक वृक्ष- सूर्य का प्रतीक माना गया है।
पलास – चन्द्रमा
खादिर (कत्था) – मंगल
वट वृक्ष – बुध
पीपल – वृहस्पती
अरूमबस – शुक्र
सामी – शनी
कुत्ताघास – राहु
प्रसघास – केतु
वृक्षों को मन संवेदना होती है – जगदीश चन्द्र बसु
मनुष्यों की ही भांति पेड़-पौधे भी सुख दुःख अनुभव करते है यह प्राचीन भारतीय मान्यता रही है। इस तथ्य को सर्व प्रथम वैज्ञानिक ढंग से सिद्ध करने का कार्य सर जगदीश चन्द्र बसु ने किया।
अनेक वर्षों के निरंतर व कठीन परिश्रम के बाद श्री बसु ने यह सिद्ध कर दिखाया कि वनस्पतियों में भी प्राणियों की भांति चेतना व जीवन है, ये सोते और जागते है, और चोंट व पीडा का अनुभव करते है, अनुकुल वातावरण मिलने पर यह स्वस्थ और प्रसन्न चित्त रहते है और दूषित वातावरण में रोग ग्रस्थ हो कर मरणासन्न हो जाते है, यह प्रकृति में घटने वाली सभी बातों को समझने में समर्थ है।
वनस्पती आत्माओं से बाातचितः-
कुछ महात्माओं में वृक्ष आदि के पूर्व जन्म भी जान लेने की क्षमता होती है । वे वृक्ष, लताओं आदि से बात कर लेते हंै, जुबान से बात करने के अलावा तीन अन्य तरह से बात करने की शैली (परा, पश्चन्ति, वैखरी वाणी) भी होती है जिसमें सिद्ध पुरुष दुसरी आत्माओं से बात कर लेते हंै। कहते है विभिन्न वनस्पतियों के औषधिय गुणों का ज्ञान अनुभवों व प्रयोगो के आधार पर नही हुआ था बल्कि ऋषि संत ये वनस्पतियों से बात कर उनके गुण दोष जान लेते थे।
युनानी चिकित्सा के जन्मदाता लुकमानः-
जो गाँव-गाँव भटकने वाले एक फकीर थे उन्होंने एक लाख वनस्पतियों का गुण धर्म ज्ञात कर लोगो को बताया था। लुकमान ने कहा था, मैने तो पौधों से ही पूछ लिया तूम्हारा गुण धर्म क्या है? और तो मेरे पास कोई उपाय नही था मैं तो पौधें के पास ही आँख बंद करके ध्यानस्थ हो कर बैठ जाता था, उसी से पूछ लेता था कि तू किस बिमारी के काम आ सकता है? तू मुझे बता दे। पौधा जो बता देता वो मैं लिख लेता । ऐसा मैने 1 लाख पौधों से पुछ लिया।
वनों का उपहारः-
पेड़ हमें फल-फूल, जड़ी-बुटी, भोजन, ईंधन और इमारती लकड़ी, गोंद, कागज, रेशम, रबर, औषधियाँ देते है। जल, ताजी हवा, पानी को चूस कर भू जल स्तर में भी वृद्धि करता है।
वनों के इस उपकार का रूपयो में ही हिसाब लगाये ंतो एक पेड़ मानव सेवा में 50 वर्ष लगाने पर 16 लाख रूपये का फायदा देता है।
हर साल बाढ़ का पानी अपने साथ, भारत की लगभग 600 करोड़ टन मिट्टी बहा ले जाती है।
भारत में 21 प्रतिशत आबादी अपनी जीविका के लिए वनों पर निर्भर है।
एक व्यक्ति प्रतिदिन 22 हजार श्वसन क्रिया करता है जिसके लिए उसे लगभग 16 कि.ग्राम आॅक्सीजन की आवश्यकता होती है। जो दो पेड़ पूरा करते है।

हम संकल्प लें कि प्रत्येक व्यक्ति स्वयं के जीवन हेतु कम से कम दो पौधे लगाये और उन्हें फलने फूलने तक देखभाल करे।

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