राजनीती में दलित-मुस्लिम समीकरण

आज-कल देश की राजनीती में दलित-मुस्लिम समीकरण की बहुत बात हो रही है। इसके पीछे सनातन समाज को तोड़ने का मकसद बहुत साफ़ है। पर ऐसा नहीं है की पहली बार ऐसी साज़िश रची गयी हो। हमारे देश की आज़ादी के वक़्त भी कुछ ऐसा ही हुआ था।
सन 1940 के आस-पास का समय था। जोगेंद्र नाथ मंडल दलितों के सबसे बड़े नेता थे। उस वक़्त उनका राजनितिक कद बाबासाहेब आंबेडकर से भी ऊँचा था। उनके व्यक्तित्व और लोकप्रियता से सुभाषचंद्र बोस भी काफी प्रभवित थे।1946 में भारतीय संविधान की रचना के लिए “संविधान सभा” के चुनाव हुए। इसमें बाबासाहेब आंबेडकर ने  चुनाव लड़ा, पर वे चुनाव हार गए। बाबासाहेब आंबेडकर ने “संविधान सभा” में शामिल होने के लिए काफी प्रयास किये, पर सभी प्रयास असफल रहें।  तब जोगेंद्र नाथ मंडल ने ही उन्हें बंगाल से लड़ने का सुझाव दिया। और जोगेंद्र नाथ मंडल के समर्थन से ही आंबेडकर चुनाव जीतकर भारतीय संविधान सभा में पहुंचे। ऐसा था जोगेंद्र नाथ मंडल का भारतीय राजनीती में दबदबा। अगर उन्होंने बाबासाहेब आंबेडकर की सहायता न की होती तो शायद बाबासाहेब कभी “संविधान सभा” में न जा पाते।

अब प्रश्न उठता है की क्यों इतने बड़े दलित नेता और राजनीतिज्ञ का नाम आज भारतीय समाज और इतिहास से नदारत है।  दरसल जोगेंद्र नाथ मंडल “दलित-मुस्लिम” एकता के पक्ष में थे। इसलिए वे खुलकर मोहम्मद अली जिन्ना का समर्थन करते थे। जिन्ना ने भी अपने पाकिस्तान के सपने के लिए मंडल का काफी उपयोग किया। जिन्ना चाहते थे की दलितों का साथ लेकर भारत के बहुत बड़े भाग को तोड़कर पाकिस्तान बनाया जाए। मंडल ने इस बात पर जिन्ना का साथ दिया। पर बाबासाहेब आंबेडकर देश के विभाजन के खिलाफ थे। वे “दलित-मुस्लिम” एकता को सिर्फ एक राजनीतिक ढोंग मानते थे। वे जानते थे की मुस्लिम बहुल समाज में दलितों की कोई जगह नहीं होगी। और इसी वजह से बाबासाहेब और मंडल में मतभेद हुए और दोनों के रास्ते अलग हो गए।

          जब देश के विभाजन की बात तय हो गयी तब बाबासाहेब इस बात के समर्थक थे की यदि भारत का बँटवारा मज़हबी आधार पर हो रहा है तो जरूरी है कि कोई भी मुसलमान भारत में ना रहे और पाकिस्तान में रहने वाले हिंदुओं को भी भारत आ जाना चाहिए, वरना समस्याएं बनी रहेंगी.पर जोगेंद्र नाथ मंडल तो अपने “दलित-मुस्लिम” एकता वाली विचारधारा में अंधे हो चुके थे। बाबासाहेब आंबेडकर के बहुत रोकने पर भी वे अपने लाखों दलित अनुयायियों के साथ पाकिस्तान चले गए। उन्हें पाकिस्तान का पहला कानून और श्रम के मंत्री भी बनाया गया। बहुत जल्द ही “दलित मुस्लिम एकता” का भ्रम टूट गया।पाकिस्तान के मुसलमानों ने दलितों को “काफ़िर” ही माना। लाखों दलित मार दिए गए। उनकी धन-संपत्ति लूट ली गयी। अनगिनत दलित स्त्रियों से बलात्कार हुए। जबरन इस्लाम में धर्म परिवर्तन तो रोज़ की बात हो चुकी थी।

पाकिस्तान के हर कोने से दलितों के नरसंहार की खबर आ रही थी। और जोगेंद्र नाथ मंडल, पाकिस्तान के कानून मंत्री होने के बावजूद भी इसे रोक नहीं पाए। क्योंकि जिन्ना और बाकि पाकिस्तानी नेताओं को अब मंडल की ज़रूरत नहीं थी। उन्होंने मंडल को अपनी कठपुतली बनाकर सिर्फ उनका इस्तेमाल किया। जब तक जोगेंद्र नाथ मंडल को ये बात समझ में आती तब बहुत देर हो चुकी थी। वे जान गए की किस तरह वे स्वंय लाखो दलितों के मौत और बलात्कार के कारण बने। उनका “दलित-मुस्लिम” एकता का मोह दो साल में भंग हो गया। और वे 1950 में भारत लौट आये। वे इस सदमे से कभी उभर न सके की उनके ही अपील पर लाखों दलित परिवार भारत से पाकिस्तान जाकर बर्बाद हो गए। पश्चाताप और गुमनामी में ही उनकी मौत हो गयी ।

इस तथाकथित “दलित-मुल्सिम एकता” की सच्चाई छुपाने के लिए इतिहासकारों (फर्जी वामपंथी, खोखले secular, झूठे liberal बुद्धिजीवियों) ने इसे हमारे इतिहास से गायब कर दिया। ताकि हमारा समाज इसे पढ़कर जागरूक न हो सके।  जो गलती जोगेंद्र नाथ मंडल ने की हम आज उसे फिर से दोहरा रहें है। आज भी “‘दलित-मुस्लिम एकता”, “आर्यन आक्रमण – मूलनिवासी”, “जय भीम जय मीम” जैसी बातों से समाज को तोडा जा रहा है। कई पाकिस्तानी agent, दलित के नाम से Fake ID बनाकर social media पर ज़हर परोस रहें हैं।    

हम किसी मज़हब या वर्ग के विरोधी नहीं है क्योंकि हम मानते की समाज के सभी लोगों को एक साथ रहना चाहिए। आखिकार हम सब को इसी देश में रहना है। पर साजिश रचकर एक वर्ग विशेष को तोड़ने के राजनितिक षड़यंत्र पर हमे खामोश नहीं रहना चाहिए।  जिस “दलित-मुस्लिम” के राजनितिक एकता का विरोध बाबासाहेब ने किया था, आज उनके ही नाम से उसे फैलाया जा रहा हैं। हम सभी को मिलकर इस साजिश का मुँह तोड़ जवाब देना होना, वरना हम सब फिर से इसका शिकार बनेंगे ।यह बहुत आवश्यक है कि भारत के लोगों को इस इतिहास की जानकारी हो, जो जानबूझकर उनसे छुपाई गयी थी।

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