भारत का भविष्य

कुछ दशक पहले, जब प्रगतिशील देशों की बात होती थी तो भारत का ज़िक्र तक नहीं होता था। भारत को एक पिछड़ा हुआ देश समझा जाता था। विकसित देशों में लंबे समय तक यही धारणा थी।

आज स्थिति काफी बदल चुकी है।आईएमएफ के मुताबिक, भारत का जीडीपी 2017 में 2.6 ट्रिलियन डॉलर था। तत्पश्चात भारत, फ्रांस को पीछे छोड़ दुनिया को 6वीं सबसे बड़ी इकोनॉमी बन गया है। भारत से पहले पांच सबसे बड़ी इकोनॉमी में अमेरिका, चीन, जापान, जर्मनी और ब्रिटेन हैं।

ऐसे मौके पे भारत के भविष्य पे विचार करना होगा. समझना होगा कि क्या यह प्रगति लम्बे समय तक चलेगी? क्या इस से होने वाले फायदे देश के हर नागरिक तक पहुचेंगे? भारत की आर्थिक और सामाजिक स्तिथि का विश्लेषण करें तो जानेंगे की भारत का भविष्य कई हद तक निम्न ३ चीज़ों पे निर्भर करेगा: कृषि, शिक्षा और पर्यावरण।
आइये देखते हैं कैसे।

1. कृषिः-
भारत एक कृषि प्रधान देश रहा है। हमारे देश की लगभग 70 प्रतिशत जनता आज भी कृषि पर ही निर्भर है। भारत की जलवायु प्रत्येक तरह की कृषि के लिये उपयुक्त है। देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में कृषि का अहम योगदान है, परन्तु आज कृषि क्षेत्र की इस कदर बदहाली हो चुकी है कि कृषि पर आत्म निर्भर रहने वाले लोग खेती किसानी छोड़ के अन्य कोई भी कार्य करने के लिये भटक रहे है या आत्म हत्या करने के लिये विवश हो रहे है। यूपीए सरकार के दौरान किसान और कृषि की बहुत ही दयनीय स्थिति होती चली गई थी। एनसीआरबी के मुताबिक देशभर में 2010 में 15,933 किसानों ने आत्महत्या की और 2011 में 14,004 किसानों ने आत्महत्या की। क्या और किसी भी देश में ये मुमकिन है?
कृषि विकास दर प्रतिवर्ष घटती जा रही है। फलस्वरूप जहां एक ओर देश में बेरोजगारी बढ़ रही वहीं दूसरी ओर कृषि उत्पादन भी प्रभावित हो रहा है। कृषि नीति में परिवर्तन कर, कृषि को आकर्षक व्यवसाय के रूप में बढ़ावा देने की आवश्यकता है। इसके लिये कृषि तकनीकों का विकास करना, बदलते मौसमी चक्र के अनुसार कृषि कार्य करना तथा कृषि कार्य में लगे लोगों को प्रोत्साहन देना आवश्यक है।
साथ ही साथ हमें अपनी सोच भी बदलनी होगी। सही मायने में गांव के लोग ही देश के वह नागरिक हैं जो बुरे वक्त में भी अपना देश नही छोडते । सरकार को इन्हें प्राथमिकता देनी होगी। केवल किसान किसान चिल्लाने से कुछ नही होगा। किसान का विकास तब होगा जब उसका परिवार विकसित होगा और परिवार के विकसित होने साथ ही साथ हमें अपनी सोच भी बदलनी होगी | ध्यान देने वाली बात है की एनडीए सरकार ने कुछ ठोस उपायों के जरिए देश के इस आधार को मजबूत बनाने की कोशिश की है.  कृषि सिंचाई योजना के माध्यम से सिंचाई की सुविधाएं सुनिश्चितकर उपज बढ़ाने पर ज़ोर दिया गया है घरेलू उत्पादन और ऊर्जा दक्षता बढ़ाने के लिए नई यूरिया नीति की घोषणा की गई है| और आत्मनिर्भरता बढ़ाने के लिए गोरखपुर, बरौनी तथा तलचर में खादफैक्टरी का पुनरोद्धार किया गया है। यही नहीं, 500 करोड़ रुपये के कॉर्पस वाले मूल्य स्थिरीकरण कोष की स्थापना की गई है। ये कोष जल्द खराब होने वाली कृषि और बागवानी फसलों की कीमतों को नियंत्रित करने में मददगार होगा। फसल बीमा योजना की शुरुआत की गयी है जिसके द्वारा किसान अपनी फसल का बीमा करवाकर एक सुनिश्चित आय का लाभ उठा सकते हैं। कृषि उपज मंडियों को सरकार ने एकीकृत किया है |

2. शिक्षाः-
भारत देश, जिसने विश्व को महान गणितज्ञ, खगोलविद, दार्शनिक, वैज्ञानिक, वेद और उपनिषद दिये, उस देश की शिक्षा प्रणाली आज इतने निचले स्तर पर पहुंच चुकी है कि भारत का कोई भीशिक्षण संस्थान विश्व के 200 शीर्ष शिक्षण संस्थानों में अपनी जगह नही बना पाया है। जिस प्रकार आज हम उच्च शिक्षा के लिये विदेशों का रूख कर रहे है, इसी प्रकार विदेशी छात्र उच्च अध्ययन हेतुपूर्व में प्राचीन भारतीय विश्वविद्यालयों को रूख करते थे। यह एक विडम्वना है कि हमारे प्राचीन विश्वविद्यालय, जिन्हे बदलते समय के साथ शिखर पर होना चाहिए था, उनका अस्तित्व आज समाप्त हो चुका है।

शिक्षा के क्षेत्र में प्राइवेट संस्थानों ने सरकार के साथ मिलकर देश की आवाम को इस कदर लूटा कि लाखों रूपये फीस देने के बाद भी गांरटी नही कि नौकरी मिल जाये। इसका एक ही कारण है कि शिक्षा अब दी नही जा रही बल्कि बिक रही है। कई यूनिवर्सिटियों ने तो दूरस्थ शिक्षा के नाम पर डिग्री बांटने का धंधा खोल रखा है।लाखों लोग, जिन्हें ठीक से नाम भी लिखना नही आता, ऐसी डिग्रीलेकर इंजीनियर बन गये है ।

देश में आज अशिक्षित से कई गुना अधिक शिक्षित बेरोजगार है। दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली इसके लिये मुख्य रूप से जिम्मेदार है। परिणाम ये है की कोई भी व्यक्ति सरकार द्वारा संचालित स्कूलों में अपनेबच्चे को नहीं भेजना चाहता। स्थिति को ध्यान में रखते हुए हमें शिक्षा के क्षेत्र में जल्द ही कुछ ठोस कदम उठाने होंगे

सरकार के पास शिक्षा के लिये कोई साकार नीति नहीं है। केन्द्र सरकार को इस मामले पर एक नीति बनाने की कोशिश करनी चाहिये। शिक्षक भर्ती के केन्द्रीय करण की ओर बढ़ना चाहीये। प्रारम्भिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा के स्तर में समय के अनुसार बदलाव लाना होगा। अच्छी शिक्षा आत्म निर्भरता देती है न की बेरोजगारी। अतः शिक्षा के क्षेत्र में भारत को अपना खोया हुआ गौरव प्राप्त करना होगा।

3. पर्यावरणः-
प्राचीन भारत में नदियों व पेड़-पौधों को देवी देवताओं का रूप में माना जाता था। पेड़ पौधों को जल देना, नदियों को प्रदूषित न करना हमारी संस्कृति का हिस्सा रहा है। प्राचीन भारत के लोगपर्यावरण के प्रति इतने संवेदनशील थे कि वह नदियों, तथा जल स्रोतों का संरक्षण करते थे। जिस कारण पर्यावरण में संतुलन बना रहता था और प्राकृतिक आपदायें ना के बराबर थी। परन्तु आज स्थिति विपरित हो चुकी है। जिस कारण जहां देश की अधिकांश नदियां या तो सूख चुकी है या सूखने के कगार पर है।

आज जिस तरह से मौसम चक्र में बदलाव हो रहा है उससे देश में जान-माल की भारी क्षति हो रही है। अचानक आये तूफान एंव भारी बारिश से जहां देश के कई हिस्सों में भू-स्खलन व बाढ़ के हालात पैदा हो रहे है, वहीं दूसरी ओर भीषण गर्मी और सूखे से भी देश को भारी क्षति हो रही है। इन प्राकृतिक आपदाओं के कारण देश का विकास प्रभावित हो रहा है। जिस अनुपात में औद्योगीकरण बढ़ रहा है, उससे कहीं अधिक अनुपात में पर्यावरण का नुकसान हो रहा है। ग्लेशियर पिघल रहे हैं और हिमालय का क्षेत्र घटता जा रहा है।

हमें अपने पर्यावरण को बचाने के लिये तत्काल प्रभाव से शुरूवात करनी होगी और यह कार्य हमें अपने घरों से ही शुरू करना होगा। प्रकृति की इस अमूल्य धरोहर को सजोने का कार्य प्रत्येक नागरिक का मुख्य दायित्यव होना चाहिए अन्यथा हम ही अपने विनाश का कारण होगें।

अन्त में यही कहना चाहूंगा कि भारत वर्ष को एक समृद्ध एंव आत्म निर्भर राष्ट्र बनाने के लिये हमें अपनी नीतियों में बदलाव कर कृषि एंव शिक्षा को विशेष महत्व देते हुये पर्यावरण संरक्षण के प्रति और अधिक जागरूकता लानी होगी ताकि हम अपनी खोई प्रतिष्ठा को पुनः प्राप्त कर सके।

जय हिन्द जय भारत

 

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