सरदार के प्रति नेहरू, इंदिरा नीत कांग्रेस का अन्याय

सरदार को ’भारत रत्न’ 1991 में प्रदान किया गया। भारत रत्न देश का सर्वोच्च सम्मान है। सरदार का निधन 1950 में हुआ और उनको भारत रत्न देने में 41 साल लगे। जब उन्हें ’भारत रत्न’ दिया गया तब श्री नरसिंह राव प्रधानमंत्री थे जो कि नेहरू-गांधी परिवार से नहीं थे।
15 दिसम्बर 1950 को सरदार वल्लभभाई पटेल का दिल का दौरा पड़ने से निधन हुआ। उनके निधन के बाद भारतीय राजनीति में उनके परिवार यानी बेटा श्री डाहयाभाई और बेटी श्रीमती मणीबेन पटेल का प्रभामंडल कम होता चला गया। उनको महत्व ही नहीं दिया गया। वास्तव में दोनों राजनीति में सक्रिय थे। बेटा डाहयाभाई मुंबई में तथा बेटी मणीबेन गुजरात में सक्रिय थी। उनको कुछ समय के लिए सांसद जरूर बनाया गया लेकिन वह महत्व नहीं दिया गया जिसके वो हकदार थे। वास्तव में उन्होंने अपने पिता के नाम को भुनाने की कोशिश ही नहीं की। वे दोनों भी जीवनभर निहायत की ईमानदार रहे।

आज हम अपने देश पर गौर करें तो अनेक भूभाग पर आतंकवादी, नक्सलवादी, विघटनकारी तत्व कायम हैं। ऐसे समय में सरदार पटेल की स्मृति स्वाभाविक है। नेताओं की चापलूसी करके, जनता को झूठी खुशामद करके नहीं, अपितु बिना भेदभाव के व निस्वार्थ रहकर जनता की वास्तव में सेवा करके तथा सच्ची बात बुरी लगे तब भी स्पष्ट कहकर लोगों का दिल जीता जा सकता है और जनता को सुदृढ़ नेतृत्व प्रदान किया जा सकता है, सरदार पटेल के जीवन और कार्यों से यह बात भलीभांति समझी और सीखी जा सकती है।
वल्लभभाई सत्यता, ईमानदारी और सार्वजनिक स्वच्छता की प्रतिमूर्ति थे। उनके सम्पूर्ण जीवन के निजी तथा सार्वजनिक मामलों में ईमानदारी को लेकर उनपर अंगुली नहीं उठाई जा सकी। किसी ने उनकी छत्रछाया में कोई अनैतिक आर्थिक लाभ लिया इसका उदाहरण ढूंढे से भी नहीं मिलेगा। सार्वजनिक कोष के प्रति उनकी ईमानदारी व सत्यता देखते ही बनती थी।
कुशल संगठन, दृढ़ अनुशासन एवं समय और परिस्थितयों की मांग के अनुसार वांछित रणनीति जिन्हें सरदार ने सत्याग्रह आंदोलन में सम्बंध किया।
नेता नेतृत्वकर्ता होता है। भारतीय परिप्रेक्ष्य में जैसा कि नेतृत्व शब्द पवित्र है। नेतृत्वकर्ता जनशक्ति, जनसमर्थन, जनप्रभाव से उभरता है। वह अपने व्यवहार और विचार से मार्ग प्रशस्त कारता है। नेता में विचार क्षमता होती है। निर्णय लेने, दिशा निर्देशन देने तथा क्रियान्वयन वास्तव में अपने आप में पृथक पृथक कलाएं हैं। लेकिन इन तीनों का संगम श्री सरदार में था। इसीलिए उनके नेतृत्व ने देश के जनमानस पर एक अमिट छाप छोड़ी है।

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