नेपाल की मुख्यधारा की पार्टियों और नेताओं से मोहभंग के बीच, नेपाल के युवा सड़कों पर
उतर आए हैं और उनके हिंसक आंदोलन ने पूरी व्यवस्था को तहस-नहस कर दिया है। यह
असंतोष स्वतःस्फूर्त है या इसके पीछे कोई विदेशी ताकत है, यह अभी केवल अटकलें ही हैं।
लेकिन अगर ऐसा है, तो यह भारत के लिए अनुकूल स्थिति नहीं है।
चाहे अमेरिकी डीप स्टेट की साज़िश हो या चीन का खेल, वे चाहते हैं कि अगली सरकार उनके
हितों का ध्यान रखे और भारत से दूरी और नफ़रत बनाए रखे। बेशक, नेपाल की मौजूदा
अर्थव्यवस्था, भारत का वहाँ भारी निवेश और कई मामलों में भारत पर उसकी निर्भरता किसी
भी संभावित सरकार को एक निश्चित सीमा से ज़्यादा भारत से दूरी बनाए रखने का विचार
नहीं करने दे सकती। लेकिन भारत को वहाँ एक ऐसी सरकार चाहिए जो दोनों देशों के सदियों
पुराने रिश्तों में गर्मजोशी लाए।
क्या बालेंद्र शाह से ऐसी उम्मीद की जा सकती है? सच तो यह है कि उनके बयान भारत के
लिए एक चेतावनी हैं। 2022 के मेयर चुनाव में, उन्होंने भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई को अपने
अभियान में प्राथमिकता दी और शहरी जीवन से जुड़ी समस्याओं के समाधान और सुविधाओं
के विकास का वादा किया। जीत के बाद वे अपना आधार बढ़ाने में सफल रहे हैं।
इसकी मुख्य वजह यह रही है कि उन्होंने खुद को एक ऐसे नेता के रूप में स्थापित किया है
जो काठमांडू की सड़कों, स्वच्छता, पेयजल, स्ट्रीट लाइटों और अतिक्रमण की समस्याओं के बारे
में सोचने तक सीमित नहीं है। मेयर पद पर रहते हुए उन्होंने राष्ट्रीय राजनीति में अपनी
संभावनाओं को विकसित करने के लिए निरंतर प्रयास किए हैं। ये प्रयास भारत विरोधी
भावनाओं को उभारने से जुड़े हैं।
बेशक, बालेंद्र कर्नाटक में ही रहे। और पढ़ें, लेकिन भारत से लौटने के बाद उन्होंने भारत विरोध
का कोई मौका नहीं छोड़ा। नेपाल में उनका सार्वजनिक जीवन दर्शाता है कि वे नेपाल की उस
जनता की आवाज़ उठाते हैं, जो नेपाल और उसके लोगों पर भारत के किसी भी प्रभाव को
स्वीकार नहीं करती। वे उन लोगों में भी शामिल हैं जिन्होंने एंग्लो-नेपाल युद्ध के बाद 1806
की सुगौली संधि के खिलाफ आवाज़ उठाई थी। वे उन नेपालियों में से हैं जो मानते हैं कि इस
संधि ने नेपाल की सीमाओं को सीमित कर दिया था। अपने कार्यालय में उन्होंने जो वृहत्तर
नेपाल का नक्शा लगाया है, उसमें कुछ क्षेत्र भारत के अधिकार क्षेत्र में भी दिखाए गए हैं।
भारत ने इसका कड़ा विरोध किया। दूसरी ओर, भारतीय संसद में अखंड भारत का नक्शा
बालेंद्र के विरोध का कारण बन गया।
बालेन की भारत विरोधी सोच केवल भौगोलिक सीमाओं तक ही सीमित नहीं है। भारत-नेपाल
के बीच रोटी-बेटी का रिश्ता है। 2008 में राजशाही के अंत तक नेपाल एक हिंदू राष्ट्र रहा है।
आज भी वहाँ बहुसंख्यक हिंदू हैं। ज़ाहिर है, दोनों देशों का धार्मिक-सांस्कृतिक एकता का एक
लंबा इतिहास रहा है, रीति-रिवाजों से लेकर परंपराओं तक। लेकिन बालेन नेपाल को उस साझा
सांस्कृतिक पहचान से अलग देखना चाहते हैं।
बॉलीवुड फिल्म आदिपुरुष के एक संवाद में माता सीता को भारत की पुत्री बताया गया था।
बालेन ने इसे नेपाल की सांस्कृतिक पहचान पर हमला बताते हुए इसका विरोध किया। फिल्म
के एक संवाद ने उन्हें इस हद तक नाराज़ कर दिया कि उन्होंने नेपाल में भारतीय फिल्मों के
प्रदर्शन पर प्रतिबंध लगाने की भी मांग कर दी। सोशल मीडिया पर उन्होंने लिखा कि भारत
सांस्कृतिक प्रभाव के ज़रिए अपने देश में घुसपैठ कर रहे हैं। दूसरी ओर, चीन के सवाल पर वे
उदार और संतुलित नज़र आते हैं।