पाकिस्तान से भारत ने एक जंग लड़ी थी और उसमें पाकिस्तान को जबरदस्त हार का सामना करना पड़ा था। उन दिनों की लड़ाई में कुछ बहुत ही दिलचस्प वाकये हुए थे ,जो कहीं ना कहीं आज की हालत के जिम्मेदार भी कहे जा सकते हैं।
ये किस्सा है बेनजीर की किताब से जिन्हें डॉटर ऑफ ईस्ट यानी पूरब की बेटी कहा गया। 1971 में पाकिस्तान को हार झेलनी पड़ी थी और पूरा मुल्क शोक में था। बांग्लादेश अलग हो चुका था और पाकिस्तान के लिए हार के साथ साथ बांग्लादेश में बेइज्जत भी होना पड़ा था। पाकिस्तान ने उस वक्त सीजफायर करवाने के लिए अमेरिका के सामने हाथ भी फैलाए थे, लेकिन उससे भी उन्हें कोई फायदा नहीं मिला और पाकिस्तान को सार्वजनिक रुप से समर्पण करना पड़ा। ऐसा पहली बार हुआ था जब किसी देश ने पब्लिक सरेंडर किया हो। ये हिंदुस्तान के लिए फक्र की बात थी और ये जीत थी। इसके करीब 8 महीने बाद 2 जुलाई 1972 में भारत औऱ पाकिस्तान ने शिमला समझौते पर साइन किए।
उन दिनों के तत्कालीन प्रधानमंत्री थे जुल्फीकार अली भुट्टो जिनकी बेटी थी बेनजीर भुट्टो। शिमला समझौते के लिए वो भारत आए औऱ साथ ही बेनजीर भी उनके साथ थीं।उस वक्त बेनजीर और इंदिरा गांधी की पहली मुलाकात हुई थी। जुल्फीकार पहले भी इंदिरा गांधी से मिल चुके थें, लेकिन 1971 की हार के बाद उन्हें समझ आ गया था कि पाकिस्तान के पास इतनी ताकत नहीं है कि वह कश्मीर को भारत से अलग कर सके। उस वक्त जुल्फीकार ने भारतीय मीडिया से कहा था कि कश्मीर का विवाद बस शांति से ही सुलझाया जा सकता है।
भारत कश्मीर को लेकर सख्त था, लेकिन कोई आक्रामकता नहीं दिखा रहा था, बल्कि बहुत ही संयम औऱ धैर्य से काम ले रहा था। भारत ने कहा कि जम्मू-कश्मीर में जो रेखा भारत औऱ पाकिस्तान को बांटती है, उसे सीजफायर लाइन की जगह नियंत्रण रेखा कहा जाए। पाकिस्तान को इस बात पर आपत्ति थी। उसका मानना था कि अगर ऐसा हुआ तो उस लाइन का मतलब बदल जाएगा।बातें होती रहीं, लेकिन किसी भी बात पर सहमति नहीं बन पा रही थी। इसके बाद 2 जुलाई को तीसरा ड्राफ्ट बनना था जिसे भारत ने कहा कि ये फाइनल ड्राफ्ट है। अजीज अहमद ने कहा कि ये उनकी आखिरी मुलाकात होगी ये कि पाकिस्तान सीजफायर लाइन का स्टेटस बदलने की भी बात मान सकता है।
इंदिरा रिट्रीट बिल्डिंग में ठहरी थीं जो शिमला में राष्ट्रपति की छुट्टियां मनाने का आधिकारिक आवास है। दोनों ने एक घंटे तक मुलाकात की। अकेले हुई इस मुलाकात ने कई नामुमकिन बातों को मुमकिन कर दिया। जुल्फिकार बंद दरवाजे के पीछे इंदिरा से कई चीजों के लिए मानें। पाकिस्तान संघर्ष विराम रेखा को निंयत्रण रेखा का नाम देने के लिए भी तैयार हो गए फिर दोनों तरफ की टींम ड्राफ्ट को फाइनल करने में जुट गईं।
पाकिस्तान ने तो सोचा नहीं होगा कि इतनी बुरी हार के बाद भी समझौते में इतनी सम्मानजनक शर्तों के साथ वो वापस लौटेंगे। भारत ने उनके 93, 000 बंदी सैनिकों को रिहा करने के लिए भी तैयार हो गया। हालांकि इसमें जुल्फिकार का अहम रोल रहा जिन्होंने बड़े ही चालाकी से इंदिरा से सारे वादे किए , लेकिन उन्हें कहीं दर्ज नहीं करवाएं। वो वादे शिमला समझौते के कागजों पर कहीं नहीं लिखे तो उनका कोई मोल भी नहीं रहा। इंदिरा गांधी जैसी शातिर औऱ समझदार पीएम से ऐसी गलती कैसे हुई इसके किस्से भी दूसरे हैं।
ये इंदिरा गांधी की सबसे बड़ी हार थी कि युद्ध जीतने के बाद भी उनसे पाकिस्तान तो अपने 93 हजार युद्ध बंदियों को छुड़वा कर ले गया लेकिन हम अपने 50 वीर सैनिकों को न छुड़वा सके जिन्हें पाकिस्तानी जेलों में बर्बर यातनाएं दी।