सुभाषचंद्र बोस भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महानायक और आजाद हिंद फौज के संस्थापक, न केवल एक क्रांतिकारी योद्धा थे, बल्कि एक दूरदर्शी नेता भी थे ।उनकी नेतृत्व शैली, निर्णायकता और अनुशासनप्रियता ने उन्हें अद्वितीय बना दिया। अगर वे भारत के प्रधानमंत्री होते, तो देश के हालात शायद आज से बहुत अलग होते। उनकी नेतृत्व क्षमता से देश किस दिशा में बढ़ सकता था।
सुभाषचंद्र बोस ने हमेशा आत्मनिर्भरता और राष्ट्रवाद को प्राथमिकता दी।उनके प्रधानमंत्री बनने पर “मेक इन इंडिया” जैसी अवधारणाएं 1947 के बाद ही आकार ले लेतीं।औद्योगिकीकरण और तकनीकी विकास को गति दी जाती, जिससे भारत एक मजबूत आर्थिक शक्ति के रूप में उभर सकता था।बोस के नेतृत्व में देश में अनुशासन को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाती।सरकारी तंत्र में भ्रष्टाचार को कड़ाई से रोका जाता और प्रशासन को अधिक कार्यकुशल बनाया जाता। उनकी विचारधारा में कर्तव्यपरायणता और समर्पण प्रमुख थे, जिससे सरकारी मशीनरी में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित होती।
बोस ने आजाद हिंद फौज की स्थापना कर यह साबित कर दिया था कि वे एक कुशल सैन्य रणनीतिकार थे। उनके प्रधानमंत्री रहते भारत की सेना को विश्व की सबसे शक्तिशाली सेनाओं में शामिल किया जा सकता था। रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की दिशा में कदम बढ़ाए जाते और भारत अपनी सीमाओं को सुरक्षित रखने में अग्रणी होता।बोस के नेतृत्व में भारत में विज्ञान और प्रौद्योगिकी का विशेष विकास होता। वे मानते थे कि आर्थिक स्वतंत्रता के लिए औद्योगिकीकरण और तकनीकी नवाचार जरूरी हैं। कृषि के साथ-साथ उद्योगों को प्राथमिकता दी जाती और भारत अंतरराष्ट्रीय मंच पर नवाचारों में अग्रणी होता।सुभाषचंद्र बोस जाति, धर्म और क्षेत्रीय भेदभाव के खिलाफ थे।उनके नेतृत्व में समानता और सामाजिक न्याय को बढ़ावा दिया जाता। उनकी नीतियां यह सुनिश्चित करतीं कि समाज के हाशिए पर खड़े वर्गों को भी मुख्यधारा में शामिल किया जाए।महिलाओं की स्थिति सुधारने और उन्हें सशक्त बनाने पर भी विशेष ध्यान दिया जाता।
बोस की विदेश नीति मजबूत और संतुलित होती।वे भारत को वैश्विक मंच पर एक प्रमुख शक्ति के रूप में स्थापित करते।एशियाई देशों के गठबंधन बनाकर पश्चिमी देशों के प्रभुत्व को चुनौती दी जाती। उनकी कूटनीति के जरिए भारत न केवल एक सैन्य शक्ति बनता, बल्कि वैश्विक शांति और विकास में भी अग्रणी भूमिका निभाता।बोस की दृष्टि में शिक्षा और स्वास्थ्य किसी भी देश की नींव होते हैं।उनके कार्यकाल में शिक्षा को रोजगारोन्मुखी बनाया जाता। वैज्ञानिक और तकनीकी शिक्षा को बढ़ावा दिया जाता।इसके अलावा, स्वास्थ्य सेवाओं को सुलभ और प्रभावी बनाया जाता ताकि हर नागरिक का जीवन स्तर ऊंचा उठ सके।
अगर सुभाषचंद्र बोस 1947 के आसपास देश के प्रधानमंत्री होते, तो शायद भारत का विभाजन न होता। वे धार्मिक और सांस्कृतिक सद्भाव को बनाए रखने के लिए ठोस कदम उठाते।उनकी नेतृत्व क्षमता भारत को एक अखंड राष्ट्र बनाए रखने में सक्षम हो सकती थी। अंत में निष्कर्ष यह निकलता कि सुभाषचंद्र बोस का व्यक्तित्व और उनकी दूरदर्शिता यह संकेत देते हैं कि उनका नेतृत्व भारत को एक मजबूत, आत्मनिर्भर और सशक्त राष्ट्र बना सकता था। उनका आदर्श राष्ट्र केवल राजनीतिक स्वतंत्रता तक सीमित नहीं था, बल्कि आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक स्वतंत्रता को भी समाहित करता था। अगर वे प्रधानमंत्री होते, तो भारत आज एक अलग ही ऊंचाई पर होता।उनका नारा “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा” केवल प्रेरणा नहीं, बल्कि राष्ट्र निर्माण की भावना का प्रतीक होता। इसलिए, यह कल्पना करना गलत नहीं होगा कि अगर सुभाषचंद्र बोस भारत के प्रधानमंत्री होते, तो देश का स्वरूप स्वर्णिम और अनुकरणीय होता।