राजनीतिक इस्लाम ने भारत की आस्थाओं पर कुठाराघात किया। उनका यह कृत्य बिहार में विधानसभा चुनाव के समय निश्चय ही अपना असर डालेगा। मगर भारत में चली आ रही सदियों की सामाजिक समरसता पर यह जरूर बिगाड़ेगी,यह बात एक हद तक सही है।भारत में इस्लाम का राज्य भले कई शताब्दियों तक रहा हो, पर इस्लामी शासकों के अत्याचारों के विरुद्ध संघर्ष भी निरंतर चलता रहा।
भारत में मुस्लिम आक्रमणकारियों का इतिहास बहुत लंबा है और उनके अत्याचारों का विरोध करने वालों का भी।राणा सांगा, महाराणा प्रताप, छत्रपति महाराज शिवाजी, ग़ुरु गोविंद सिंह आदि सब ने दिल्ली के मुग़ल शासकों से निरंतर लोहा लिया। मुगल बादशाह औरंगजेब मंदिर तुड़वाता और मस्जिदें बनवाता। लेकिन कुछ ही वर्षों बाद हिंदू राजे उसे फिर से खड़ा करते।हालांकि, योगी आदित्य नाथ द्वारा राजनीतिक इस्लाम का विवाद खड़ा करने की पहल को सिरे से ख़ारिज नहीं किया जा सकता। इस्लाम सामी (अब्राहमिक) दर्शनों में सबसे नया है। यहूदी, ईसाई और उनके बाद इस्लाम का प्रादुर्भाव हुआ।इसमें एक ऐसे सामाजिक और राजनीतिक दर्शन की अवधारणा है, जिसमें गैर अब्राहमिक दर्शनों को नकारा गया है।जिस समाज का जिक्र अहले किताब में नहीं हैं, उनको काफिर कहा गया है।ऐसे लोगों को इस्लामिक राज में सदैव दोयम दर्जे की नागरिकता मिलती है, वह भी जज़िया (एक तरह का कर) देने के बाद।
भारत में 1192 से 1757 तक इस्लामिक राज रहा यद्यपि मुसलमानों के पूर्ण साम्राज्य का पतन तब हुआ ,जब 1857 के विद्रोह को पूरी तरह कुचल दिया गया। 600 वर्षों से अधिक के इस इस्लामिक राज में हिंदू शासक भी छिटपुट जगहों पर रहे लेकिन केंद्र की सत्ता इस्लाम को मानने वाले विदेशियों के हाथ ही रहा।1526 में समरकंद के मुग़ल शासक बाबर ने सुल्तान इब्राहिम लोदी को हरा दिया और इस तरह वह दिल्ली का पहला मुग़ल शासक हुआ।उसके बाद उसके वंश के जो भी शासक बने वे पूरी तरह भारतीय रहे लेकिन अपने राज-काज के लिए ये मुगल बादशाह भी अधिकांश नियुक्तियां अरब, ईरान और अफ़ग़ानिस्तान से आए मुस्लिम अमीरों की ही करते थे।यह सच है कि उन्होंने राजपूताने के हिंदू राजाओं को भी मनसबदारियां बख्शीं किंतु उनके भरोसेमंद वही विदेशी मुसलमान रहे। देश में ही धर्मांतरित हुए मुसलमानों के साथ उनका व्यवहार कोई बहुत प्रीतिकर नहीं था। अकबर और जहांगीर को छोड़ कर ज़्यादातर बाकी मुगल बादशाहों ने हिंदुओं पर भरोसा नहीं किया। उनकी आस्थाओं पर चोट पहुंचाई।गोवध को शुरू कराया और जजिया भी लगाई।
आधुनिक मुसलमान लेखक डॉ. हबीब ने महमूद गजनवी के अत्याचारों पर टिप्पणी की है कि गजनवी की सेना ने भारतीय मंदिरों का जो घोर विध्वंस किया उसको किसी ईमानदार इतिहास को छिपाना नहीं चाहिए।अपने धर्म से परिचित कोई भी मुसलमान उसके अत्याचारों का समर्थन नहीं करेगा।इन सबके बावजूद आज भी भारत का उच्च वर्गीय मुसलमान मानता है कि मुसलमानों के आने के पूर्व भारत की संस्कृति कोई ऊंची नहीं थी।हिंदू-मुस्लिम संबंधों को घनिष्ठ बनाने की कोशिश आजादी के बाद से कभी भी नहीं हुई।हिंदुओं को सदैव लगता रहा कि कांग्रेस की सरकारों ने अपनी मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति के चलते इतिहास की सच्चाई कभी सामने आने नहीं दी।अंग्रेजों ने 20 वीं शताब्दी की शुरुआत में कांग्रेस के विरुद्ध मुसलमानों को एक करना शुरू किया था।
भारत पर अरबों का पहला हमला 712 ईस्वी में मोहम्मद बिन क़ासिम ने किया था लेकिन सिंध के अलावा वह आगे नहीं बढ़ा। किंतु ढाई सौ वर्ष बाद महमूद गजनवी ने कई बार भारत पर हमला किया। उसने सौराष्ट्र के प्रसिद्ध मंदिर और हिंदुओं की आस्था के केंद्र सोमनाथ मंदिर को ध्वस्त किया।गौर के शासक मोहम्मद गौरी ने दिल्ली के राजा पृथ्वी राज चौहान पर 1191 में चढ़ाई की, एक बार पराजित हुआ किंतु दूसरी बार 1192 में तराइन की लड़ाई में उसने पृथ्वी राज चौहान को पराजित कर दिया, इसके बाद दिल्ली पर क़ब्ज़ा कर लिया।
मुहम्मद गौरी ने अपने ग़ुलाम क़ुतुबुद्दीन ऐबक को दिल्ली का गवर्नर बना दिया और वापस गौर (अफ़ग़ानिस्तान) लौट गया। 1206 में मुहम्मद गौरी की मृत्यु के बाद क़ुतुबुद्दीन ऐबक ने खुद को दिल्ली का सुल्तान घोषित कर दिया। ग़ुलाम वंश से लेकर लोदी वंश तक दिल्ली इन मुस्लिम सुल्तानों के अधीन रही लेकिन 1526 में पानीपत की लड़ाई में इब्राहिम लोदी को समरकंद से आए बाबर ने हरा दिया। बाबर मुग़ल था और 1707 तक दिल्ली केंद्र से पूरे हिंदुस्तान में मुग़लों की तूती बोलती रही परंतु औरंगज़ेब की मृत्यु के बाद मुगल शासक कमजोर पड़ने लगे। 1757 में लॉर्ड क्लाइव ने मुर्शिदाबाद के नवाब सिराजुद्दौला को हरा दिया।इसके बाद 1764 में बक्सर की लड़ाई में ईस्ट इंडिया कंपनी ने मुग़ल बादशाह को अपना पिट्ठू बना लिया। उधर औरंगज़ेब के अत्याचारों के विरुद्ध मराठे, सिख और जाट दिल्ली को घेरे थे।
इसमें कोई शक नहीं कि भारत में इस्लाम की तलवार के आगे सब कुछ समाप्त हो गया था।महमूद गजनवी के साथ हिंदुस्तान आए अलबरूनी ने लिखा है कि महमूद (महमूद गजनवी) ने हिंदुओं को धूल की तरह उड़ा दिया किंतु भारत में वे अपने सारे अत्याचारों के बावजूद पूरी प्रजा को मुस्लिम नहीं बना सके। जैसा कि उन्होंने ईरान में कर दिया था। आज का तुर्किये भी पहले ईसाई था परंतु मुस्लिम शासकों ने वहाँ पर अपना राज क़ायम किया तथा बड़ी संख्या को इस्लाम में कन्वर्ट कर लिया लेकिन भारत में यह संभव नहीं था। भारतीय समाज के अंदर की जातीय पंचायतों ने मुस्लिम कों को सिर्फ राज चलाने तक सीमित रखा। यह उनकी बहुत बड़ी जीत थी। इतनी लंबी ग़ुलामी के बाद भी भारत में 80 प्रतिशत जनता हिंदू बनी रही।
यह भारत की विविधता है कि भारत में आज 18 से 20 करोड़ के बीच मुसलमान हैं।भारत के सेकुलर ढांचे में उनकी अनदेखी नहीं की जा सकती। वे भी भारत के नागरिक हैं क्योंकि इनकी 90 प्रतिशत से अधिक आबादी तो उनकी है जो कभी हिंदू या बौद्ध धर्म छोड़ कर इस्लाम में धर्मांतरित हुए थे इसलिए बेहतर हो कि इतिहास के गड़े मुर्दे न उखाड़े जाएं। यहां के मुसलमानों को भी स्पष्ट कहना चाहिए, कि जिन्होंने हिंदुओं की आस्था पर चोट पहुंचाई वे कोई हमारे पूर्वज नहीं थे। वे विदेशी थे, लुटेरे थे। पाकिस्तान के अधिकांश बुद्धिजीवी अब मोहम्मद बिन क़ासिम या महमूद गजनवी अथवा मोहम्मद गौरी को अपना पुरखा नहीं मानते ,वे कहते हैं, राजा दाहिर उनका पुरखा था। यही भारतीय संस्कृति की जीत होगी और हमारे भाईचारे की भी।