विधि के विद्यार्थी जानते हैं कि जमींदारी विनाश और भूमि सुधार की प्रक्रिया जब उत्तर प्रदेश में शुरू हुई,तब सीरदारी भूमि छोड़,भूमिधरों व परिजनों में साढ़े बारह एकड़ भूमि तक धारित करना वैध था।जब भारत मे नरसिम्हा राव जी की सरकार के समय तत्कालीन वित्तमंत्री ने आर्थिक उदारीकरण की आधारशिला रखी।पूरा विश्व उस समय WTO की आगोश में पहुंच रहा था,वहीं से उदारीकरण की बयार चल रही थी।डंकल का ड्राफ्ट भी उसी समय चर्चित हुआ था।पेटेंट बीज व खेती के एकाधिकार को विकसित राष्ट्रों के हाथों गिरवी रखने की कवायद उसी समय शुरू हो गयी थी।
राव साहब के समय उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री मुलायम सिंह थे।उस समय ए सी जेड के लिए अलग से भूमि अधिग्रहण कर बाजार को दिशा देने का ड्राफ्ट बन रहा था।मुलायम सिंह को धरतीपुत्र कहा जाता था।1997 में जब WTO के समक्ष देश मे तत्कालीन प्रधानमंत्री गुजराल जी ने हस्ताक्षर कर दिए,तब हमारे ऊपर भी ट्रेड के वैश्विक नियमों को मानने का दबाव बनने लगा था।बहुत से कारपोरेट किसानों की जमीन,किसान बनकर खरीदने लगे थे।धीरे धीरे कॉरपोरेट को जमीन व बाजार उदारता पूर्वक दिया जाने लगा।आज भी उस दौर के अधिगृहित कमर्शियल जोन्स की जमीनें अपने मूल उद्देश्य को न प्राप्त कर सकी और मैं समझता हूं कि किसानों के खिलाफ यह सबसे बड़ा षड्यंत्र था।
2005 में भी मुलायम सिंह जी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे।उत्तरप्रदेश जमींदारी विनाश व भूमि सुधार अधिनियम की धारा 154 कृषि भूमि के क्रय-विक्रय पर साढ़े बारह एकड़ का प्रतिबंध करती थी,उसी साल एकल परिवारों के सृजन संबंधी उद्देश्य को लेकर उक्त अधिनियम में संशोधन हुए और धारा 154 की उपधारा 2 में इस आशय का संशोधन किया गया कि सरकार की सहमति से कोई भूमिधर साढ़े बारह एकड़ के अपवाद को प्राप्त कर सकता है।ऐसे संशोधन अन्य राज्यों में भी हुए होंगे,पर उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह के नेतृत्व में 2005 में भूमाफियाओं के लिए रास्ता खोल दिया गया।समता और समाजवादी अवधारणा के इस संत ने उदारीकरण के फैलते प्रभाव में आने से बचने का कुछ भी उपक्रम न किया।धीरे धीरे नव समाजवादियों ने जमीनों पर अपना विस्तार शुरू किया,फिर मायावती आयी जिन्होंने इस विस्तारवादी नीति में अपनी बखूबी भूमिका निभाई।मुझे याद आते हैं,अखबारों के वे पृष्ठ जिसमे गाजियाबाद,नोएडा के विकास अधिकरणों में उन्हीं लोगों को भेजा जाता था,जिनके माध्यम से अधिकाधिक धन आहरण कर शक्ति सामन्तो को बली किया जा सके।जब अखिलेश यादव सत्ता में आये तो 2016 में जमीनों का नया ड्राफ्ट ही तैयार होकर अस्तित्व में आ चुका था।आज आज़ादी के बाद भूमि के मसौदों से छेड़छाड़ कर नव भू धारियों की जमात को आसानी से देखा जा सकता है।
उपरोक्त ऐतिहासिक बदलते क्षणों को समझते हुए,यह जरूर समझना चाहिए कि जमीन और जमींदार किस तरह से बदल रहे हैं और साथ ही अपनी किसानी भी।बहुत दुःखद पल रहे हैं,जब उदारवाद ने फर्जी कर्जखोरों को अनर्गल लाभ लेने के लिए प्लेटफॉर्म दिया।मूल किसान न घर का रहा,न घाट का।किसानों के बड़े बड़े आंदोलन हुए,पर किसानी बची रहे,उसकी भूमि बची रहे,इस पर कभी कोई ध्यान नहीं दिया गया।लोगों ने जय किसान किया,वोट लिए और किसानों व उनकी संतति को नेपथ्य में अभिशप्त छोड़ दिया।जरूरत है,एक बेहतर समझ के साथ हम राष्ट्र के उस तपस्वी वर्ग को संरक्षण दे सकें,जो हमारा देवता था और किंचित है भी।
हम अपनी कृषि व अपने किसान बचाएं।
हम शहर से गांव को जाने का मन बनाएं।