गोवा में ब्रिक्स देशों (ब्राजील, भारत, रूस, चीन और दक्षिण अफ्रीका) के सम्मेलन में भारत की कूटनीति सफल रही। माननीय प्रधानमंत्री ने आतंकवाद को सबसे बड़ा खतरा बताते हुए कहा कि भारत का पड़ोसी देश उसे पालने-पोसने में लगा है. ये केवल आतंकियों को अपनी जमीन पर शरण ही नहीं देता, बल्कि विचारधारा को बढ़ावा देता है.
दो देशों रूस और चीन का मंतव्य इस संदर्भ में भारत के लिए ज्यादा मायने रखता है. जिस तरह से उरी हमले के बाद रूस ने पाकिस्तान के साथ सैन्य अभ्यास किया उससे भारत में निराशा पैदा हुई. हालांकि उसके तुरंत बाद रूस के राजदूत ने भारत में उरी हमले की न केवल निंदा की, बल्कि भारत की कार्रवाई का समर्थन कर दिया. पुतिन ने आतंकवाद पर संघर्ष में भारत के साथ देने का वायदा किया. यही नहीं पुतिन ने मोदी को आश्वासन दिया कि वे पाकिस्तान को किसी भी तरह का लड़ाकू विमान या उससे संबंधित उपकरण नहीं बेचेंगे. रूसी रक्षा कंपनी रोस्टेक स्टेट कॉरपोरेशन के सीईओ सर्गेई चेमेझोव के मुताबिक, किसी भी तरह के लड़ाकू विमान देने संबंधी करार पर पाक-रूस के बीच दस्तखत नहीं हुए हैं. किंतु ऐसा ही आश्वासन चीन से मिला हो यह लगता नहीं. हां, मोदी ने चीन के राष्ट्रपति शि जिनपिंग से बातचीत में मसूद अजहर पर प्रतिबंध से लेकर पाकिस्तान के आतंकवाद निर्यात करने पर खुलकर बात रखी. मोदी-जिनपिंग की मुलाकात के बाद विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने जो जानकारी दी, उसके अनुसार दोनों नेताओं ने आतंकवाद पर अहम चर्चा की और इस बात पर राजी हुए कि इससे मुकाबले के लिए साझा कोशिशें बढ़ाने की जरूरत है. चीनी राष्ट्रपति ने कहा कि दोनों देशों को सुरक्षा डायलॉग और साझेदारी को मजबूत करना चाहिए.
कुल मिलाकर देखें तो ब्रिक्स सम्मेलन का भारत उसके मूल लक्ष्यों पर कायम रहते हुए भी आतंकवाद विरोधी एवं पाकिस्तान को अलग-थलग करने की अपनी वर्तमान कूटनीति के अनुरूप सभ्य और शालीन तरीके से जितना बेहतर उपयोग कर सकता था, किया है. इसकी गूंज इन चारों देशों के साथ बिम्स्टेक एवं दुनिया के अन्य देशों में भी गई होंगी. प्रधानमंत्री ने साफ किया कि आतंकवाद का खात्मा सदस्य देशों को लक्ष्य पूरा करने में मददगार साबित होगा.