विजय दशमी – शक्ति सामर्थ्य का पूजन है।

जागो फिर भारतवासी
आज विजयदशमी है। इसे दशहरा भी कहते है। अश्विन शुक्ल में संपन्न होने वाली नवरात्रि के समापन का और अंतिम दिन विजयदशमी कहलाता है। रामलीला जो 9 दिनों तक चलती है उसका समापन आज होता है।
ऐसा माना जाता है कि अश्विन शुक्ल दशमी को तारा उद्य होने के समय ’विजय’ नामक मुहूर्त होता है। यह सर्वकार्य – सिद्धिदायक होता है इसलिए भी इसे विजयदशमी कहते हैं। विजयदशमी का महापर्व संगठित समाज के द्वारा राष्ट्ररक्षा के महत्व को प्रकट करनेवाला दिन है।
पांडवों ने बारह वर्ष का वनवास व एक वर्ष का अज्ञातवास पूरा करने के बाद आज ही के दिन शमी के वृक्ष में छिपाकर रखे अपने शस्त्रों को धारण किया था। उस शमी वृक्ष में रखे शस्त्र विद्यीवत पूजा कर बाहर निकाले और शत्रु पर हमला बोलकर उन्हे परास्त किया था।
इसे सीमोल्लंघन का पर्व भी कहते हैं निकटतम भूतकाल में भारत में हिन्दू पद-पातशाही निर्माण करने की प्रचंड आकांक्षा से प्रचंड पराक्रम करने वाले मराठों ने विजयदशमी के मुहुर्त पर सीमोल्लंघन की प्रथा डाली थी। शत्रु के अधिकार से नये-नये प्रदेशों को मुक्त कर स्वराज्य में सम्मिलित करने के लिए इसी दिन मराठों की सेना निकलती थी तथा अपने पराक्रम से साम्राज्य को नया वैभव प्राप्त कराती थी। सीमोल्लंघन की प्रथा अब विजयदशमी उत्सव का ही एक अंग मानी जाने लगी है।
रा, स्वं. संघ के निर्माता डा. केशव बलिराम हेडगेवार जी ने आज ही के दिन संघ की स्थापना की थी। पतित, पराभूत, आत्मविस्मृत तथा आत्मविश्वास शून्य राष्ट्र में चैतन्य आत्मविश्वास, समरसता और विजय की आकांक्षा निर्माण कर उसकी सिद्धि के लिए बलोपासना करने के लिए उसे प्रवृत्त करने के निमित्त यह उत्सव परंपरा प्राप्त साधन ही है। देश की मूलभूत गरिमा को प्राप्त करने के लिए समग्र समाज में स्वदेशाभिमान की चेतना जागृत करने की जरूरत है। समाज याने हम सभी, अपने सभी का यह कर्तव्य है। इसी कर्तव्य का बोध कराने के लिए डाॅ. हेडेगेवार जी ने विजयदशमी के शुभ दिवस पर रा. स्वं. संघ का निर्माण किया
श्री रामचंद्र जी का जीवन इसलिए भी अनुकरणीय है कि उन्होंने देश व समाज से आसुरी व राक्षसी प्रवृत्तियों को दूर करने के साथ देश के ऋषि मुनियों को सताने वाले तथा उनके यज्ञादि कार्यों में बाधा डालने वाले राक्षसी प्रवृत्ति के लोगों को समाप्त किया। सत्य की रक्षा के लिए दुष्टों को दंडित करना आवश्यक होता है। नहीं तो सत्य का व्यवहार समाप्त हो जाता है तथा देश व समाज में अनुशासन नहीं रहता और इससे धार्मिक और सदाचारी लोगों केा दुःख व कष्ट होता है।
रावण दहन हम करते हैं। रावण पर श्री राम की विजय के उपलक्ष्य में विजयदशमी का महोत्सव मनाया जाता है। रावण एक महापराक्रमी, महाबलशाली, महाकर्मकांडी राजा था। शिव का आराधक था। सारी भौतिक और संहारक शक्तियाँ उसके पास थीं। पर उसको किसने हराया लोग जिन्हे जंगली कहते थे, जिनके पास पेड़ – पत्थर ही अस्त्र-शस्त्र थे, ऐसे नरों ने। (बाद में इन्हें वा -नर कहा) ऐसे नरों को वानर कहकर संगठित किया श्री राम जी ने हनुमान और सुग्रीव की सहायता से। रावण की भौतिक शक्ति इस संगठित शक्ति का सामना न कर सकी। नाश रावण का हुआ। श्रद्धा, आशा, उत्साह से पूर्ण संगठित बल समाज में उत्पन्न होता है तो देश में राम राज्य बनता है।
आज हम शष्त्रों की पूजा करते हैं। आज युग प्रगत तंत्रज्ञान – विज्ञान का युग है। पैट्रीयाट जैसी मिसाईल, इंटर काॅन्टीनेन्टल बैलस्टिक क्षेपणास्त्र, लेजर गन जैसी बंदूकें हैं। यह विजय का आविष्कार व्यक्त होता शस्त्र पूजन से। विजिगीषु वृत्तिके पालन की वृत्ति का अंगीकार इसमें होता है।
सभी गुणों की समवाय रूप दुर्गादेवी ने त्रेतायुग में इसी दिन आसुरी सामथ्र्य पर विजय प्राप्त कर देवों को और सज्जनों को राक्षसों के त्रास से मुक्त किया था।
विजयदशमी याने –
– विजय का पर्व
– यह कृषि उत्सव भी है।
– शक्ति की उपासना का पर्व है। शस्त्रों की पूजा का पर्व।
– श्री राम की रावण पर विजय आसुरी शक्ति पर दैवी शक्तियों की विजय। यक्तिगत स्वार्थ की सीमाओं को लांघ कर समष्टिभाव – जागृत करके समाज में विलीन हो जाने का महापर्व, सीमोल्लंघन का पर्व।
– प्रमाद छोड़कर कर्मशील बनने का पर्व।
– अकर्मण्यता पर कर्मयोग का विजय पर्व।
– धर्म और संस्कृति की चेतना के जागरण करने का महान पर्व।
– अहम् को पार कर वयम् का भाव जगाने का पर्व।
– बुरे आचरण पर अच्छे आचरण की जीत की खुशी में मनाया जानेवाला त्यौहार।
– मर्यादा व शक्ति के संगम का वार्षिकोत्सव व आनंद का पर्व दशहरा।
– श्री राम चंद्र जी के आदर्श जीवन व उनके कृतित्व को जोड़कर देखते हैं।
– शरद ऋतु के प्रारंभ का काल होता है।
– इसी दिन रावण को पराजित किया था।
– इसी दिन सम्राट अशोक ने शस्त्र त्यागकर शास्त्र पूजा की थी। और पूरी मानवता को सुखी बनाने के लिए बौद्व पंथ का स्वीकार किया ।
अभी हाल ही में सेना के उरी स्थित कैम्प पर आतंकवादीयों ने हमला किया और भारत के 18 जवान शहीद हुए। कुछ माह पूर्व पठानकोट एयरबेस पर पाक परस्त आतंकीयों ने हल्ला बोला था। उरी पठानकोट हमलों के गहराई में जाने के पश्चात ध्यान आता है कि देश के ही कुछ लोंगो की मदद से ये आतंकवादी हमला कर पाऐ थे। ऐसे देशद्रोही तत्व देश में विद्यामान होंगे तभी तो यह संभव होगा।
कश्मीर घाटी में समय-समय पर पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगानेवाले लोग हाथ में पाकिस्तान के झंडे लेकर चलते है तो अपने देश में ऐसे तत्व भारत माँ को खंडित करने का सपना देख रहे हैं
कुछ दिन पूर्व दिल्ली के प्रतिष्ठित जे.एन.यू. विश्वविद्यालय में कुछ छात्रों ने देश विरोधी नारे लगाये देश के टुकडे़-टुकडे़ करने की आवाज बुलंद की। आखिर देशद्रोही अपने समाज में ही तो रह रहे हैं क्या देशभक्त लोग आँख मूँदकर ये देखते रहेंगे ?
देश में पाकिस्तान के कलाकार शूटिंग के लिए आये देश का बाॅलीवूड इन के समर्थन और विरोध में बँटा नजर आ रहा है। पाकिस्तान का एक कलाकार अपने देश लौटने के बाद कहता कि भारत मुर्दों का देश है में तो वहाँ केवल पैसा कमाने गया था।
आज नक्सली ताकतें अपनें देश में कुछ राज्यों में अपना जाल फैला चुकी हैं। कश्मीर अशांत है, पूर्वांचल में अलगाववादी ताकतें अपनी सक्रियता बढ़ा रही हैं। संकट के बादल चारों ओर से घिरते दिख रहे हैं। संकट बाह्य भी हैं और आंतरिक भी। जिस प्रकार दुर्बल व्यक्ति पर रोगों का अतिक्रमण सरलता से हो जाता है, उसी प्रकार दुर्बल देश भी संकटों का सहज शिकार बनता है।
पवित्र सोमनाथ मंदिर का ध्वंस किसने किया ? हमें बताया जाता है कि उसका ध्वंस महमूद गजनवी ने किया लेकिन यह अर्धसत्य है। इतिहास के अभ्यासक कहते हैं कि महमूद को रास्ता बताने वाले, उसको सहायता करने वाले यहीं के लोगे थे। सोमनाथ के महापवित्र ज्योर्तिलिंग पर पहला आघात करने में सहायता करने वाले शिवभक्त ही थे।
वास्को डि गामा हिन्दुस्थान आया था कोझाीकोट बंदरगाह पर उसको स्थायी व्यापार में मदद करने में यहीं के लोगों ने मदद की जिसका भयंकर दुष्परिणाम अनेक दशकों बाद अंग्रेजों के राज्य की जड़ें बनाने में हुआ।
चारित्र्य के दो पहलू होते हैं। पहला व्यक्तिगत दूसरा राष्ट्रीय। हमारा व्यक्तिगत चारित्र्य हमारा स्वभाव ओर हमारी कार्यशैली से जुड़ा है। राष्ट्रीय चारित्र्य हमारा व्यक्ति के रूप में समाज, देश से कैसा लगाव है इस संबंध को दर्शाता है। हमारा समाजप्रेम और देशनिष्ठा हमारे राष्ट्रीय चरित्र को परिलक्षित करता है।
हम सभी देशवासी व्यक्तिगत चारित्र्य के साथ -साथ राष्ट्रीय चारित्र्य का विकास स्वयं करें यह समय की मांग है। राष्ट्रीय चारित्र्य देश के नागरिकों में रहेगा तो हमारे देश को संगठित, बलशाली, सामथ्र्यशाली होने में बिलंब नहीं लगेगा। दुनिया मेें हमारा डंका बजेगा। दुनिया की कोई भी ताकत हमारे ऊपर टेढ़ी निगाह करने की हिम्मत नहीं करेगी।
हम हवा और ज्योति का रिश्ता याद करें। एक दीपक जल रहा है , हवा का एक जोरदार झोंका दीपक को बुझा देता है। पर यदि दीपक के स्थान पर होली जल रही है उसकी लपटें आसमान छू रही हैं और हवा का झोंका आये तो ज्वाला बुझने के बजाय और तेज हो जाती है। वह हवा का झोंका दीपक (कमजोर) को तो बुझा देता है पर होलिका (शक्तिशाली) को बढ़ा देता है या बढ़ने में सहायक बन जाता है।

वनानि दहतो वह्नेः, सखा भवति मारूतः।
स एव दीप नाशाय, कृशे कस्यास्ति सौह्द्म।।

यज्ञ में घोड़ा, हाथी, शेर इनकी बलि कभी नहीं चढ़ायी जाती थी। बलि चढ़ायी जाती थी तो बकरे की । देव भी दुर्बल का साथ नहीं देते।
अश्वं नैव गजं नैव व्याघ्रं नैव च नैव च।
अजा पुत्रो बलिं दद्यात् देवो दुर्बल घातकः।।
हम देश को गौरवशाली, समृद्धिशाली बनाना चाहते हैं तो ऐसे लोगों को मिलाकर बनायें जो ज्ञानवान, चरित्रवान हैं और देश के लिए सब प्रकार से संकटों का सामना करने का साहस रखते हैं। ऐसे व्यक्ति वीर कहलाते हैं। वीरों जैसा जीवन व्यतीत करने का व्रत हम अंगीकृत करें। हम वीरव्रतम ग्रहण करें। क्योंकि यही एकमेव मार्ग है जिसके द्वारा हम देश की सारी बाधाओं का साहसपूर्वक और सफलता से सामना कर सकते हैं।

केवल सत्ता, संपत्ति, कानून, पैसा इसके आधार पर समाज की रचना नहीं होती बल्कि समाज की रचना होती है सत्वशील, गुणी, चारित्र्यसंपन्न संगठित लोगों के बल पर।

संसार मे बहुत सारे महापुरूष हुए हैं। हम जब भी किसी महापुरूष की जयंती मनाते हैं तो हम क्या करते हैं? उनके जीवन, विचारों, गुणों व कार्यों का स्मरण कर उनमें संशोधन, संवर्धन, प्रचार की प्रेरणा प्राप्त कर उसे अपनाने का व्रत लेते हैं। अतः विजयादशमी पर्व पर भी हमें ऐसा ही करना है। हमें श्रीरामचंद्र जी के जीवन पर विचार कर उनके जीवन, कार्यों , आदर्शों को जानकर उनकी प्राप्ति को अपने जीवन का उद्देश्य व लक्ष्य बनाना है।

स्वागत वीरता का होता है और पूजा त्याग की होती है तथा जीवन में मधुरता भ्रातृप्रेम से उत्पन्न होती है। इसी वीरता, त्याग और भ्रातृप्रेम की याद दशहरे पर प्रत्येक भारतीय के मन में ताजा हो जाती है। कोई भी देश भ्रातृप्रेम, वीरता तथा त्याग के कारण ही सक्षम रह सकता है। देश का प्रत्येक नागरिक हमारा भाई है, हम भाई एक दूसरे का अधिकार छीनकर बड़ा नहीं बनना चाहते वरन् भरत और श्रीराम के प्रेम एवं त्याग को अक्षुण्ण बनाने का सतत् प्रयत्न करते हैं।

अग्रज का अनुज के प्रति प्रेम और अनुज का अग्रज के प्रति सम्मान हमारी भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग रहा है। जिस दिन हमारा आपसी भ्रातृ प्रेम समाप्त हो जायेगा उसी दिन यह देश खण्डित हो होना प्रारंभ हो जायेगा, अतः दशहरे के अवसर पर सर्वप्रथम उसी भ्रातृप्रेम को याद कर हम एक दूसरे के प्रति समर्पित भाव से जीना सीखें। आपसी सद्भाव के साथ वीरता की भी आवश्यकता होती है, यदि हममें वीरता नही तो कोई भी रावण हमारी अस्मिता का हरण करके ले जायेगा। और हम कुछ नहीं कर पायेंगे।

विजयादशमी का संदेश हमें स्मरण दिलाता है कि हमें विजयशाली बनना है तो विजय की आकांक्षा हरेक को रखनी होगी जिसके लिए हमारे मन में समाजभक्ति, राष्ट्रभक्ति को वरीयता देनी होगी।

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