नाथूराम संघी था इस पर तार्किक बहस की जरूरत

nathuram_godseमहात्मा गांधी जिन्होने देश को बहुत कुछ दिया और आज भी देश को कुछ न कुछ परोक्ष रूप में दे रहे है ऐसा कांग्रेस कहती है परंतु अब हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी भी कह रहे है लेकिन एक बात आज तक लोगो ंके जेहन में है कि अगर ऐसी बात है तो नाथू राम गोडसे ने उनको गोली क्यों मारी ? इस बात को लेकर इन सभी लोगों को जनमानस को संतुष्ट करना था, जो उनके निधन के बाद से आजतक नही किया गया । इस मामले पर ऐसा लगता है कि कुछ है जो कांग्रेस आने नही देना चाहती थी।कई ऐसे सच है जो कि कांग्रेस के शासन काल में दफना दिये गये थे अब बाहर आ रहें है। सुभाष चन्द्र बोस का मामला भी ऐसा ही है। गांधी जी की तरह वह भी गुलाम देश में कांग्रेस के अध्यक्ष थे और एक बार नही दो बार रहे। दोनों के साथ उनकी ही पार्टी ने ऐसा क्यों किया यह सवाल आज भी सुरसा की तरह मुंह बाये खडा है। तात्याटोपे का क्या हुआ यह बात अलग है क्यों कि वह कांग्रेस के नही अंग्रेजों के दुश्मन थे लेकिन जब सुभाष चन्द्र बोस के रहस्यों से पर्दा उठ रहा है तो गांधी जी की मौत जो एक रहस्य है उससे भी पर्दा उठना चाहिये । देश चाहता है कि गांधी जी की हत्या क्यों की गयी, किसके ईशारे पर की गयी, इस पर राजनीति नही होनी चाहिये।

वास्तव में देखा जाय तो गांधी जी भारत के बंटवारे से खुश नही थे लेकिन उनकी नाराजगी कुछ लोगों को खटक रही थी कि किसी भी समय मामला उल्टा पड सकता है।दोनों देश के प्रधानमंत्रियों ने जब शपथ ली तो गांधी जी वहां नही थे।जब उनको निमंत्रण भेजा गया तो वह कलकत्ता में थे और जिस शख्स ने उन्हे आमंत्रण पहुचाया, उसे उन्होने पेड का एक पीला पत्ता जो जमीन पर गिरा हुआ था दिया और कहा इसे नेहरू को ले जाकर दे देना। यह अपने आप में बहुत बडी बात बयान करता है। आजादी के बाद वह दिल्ली रहे तो भी कभी राजभवन नही गये,जब भी होता था तो नेहरू व सरदार पटेल खुद उनसे मिलने आते थे।आखिर क्यों ? कौन सी बात इन लोगों के बीच थी जो सार्वजनिक नही हुई , इस पर गौर करना चाहिये। उनका जीवन तो खुली किताब था फिर उस किताब से पन्ने किसने गायब किये यह बात भी अब सार्वजनिक होनी चाहिये । देश को इसका जबाब मिलना चाहिये जो वह चाहता भी है।

अगर कहावतो पर ध्यान दिया जाय तो कहा यह भी जाता है कि जो मुसलमान भारत छोडकर जाना चाहते थे उन्हें दिल्ली से पाकिस्तान जाने वाले मार्ग पर लूटा गया और उनके अंग क्षतिग्रस्त कर दिये गये, वहां के एक खास वर्ग ने उनको लूटा और संपत्ति अर्जित कर जरूरत पडने पर मुसलमान भी बन गये। इस मारकाट को लेकर गांधी जी चुप थे इसलिये उनकी हत्या गोडसे ने की । इसके अलावा कुछ लोग यह भी कहते है कि भारत पाक का बंटवारा समान रूप से चाहते थे इसलिये हत्या की गयी । कुछ का कहना है कि वह विदेशी युवतियों के साथ चलते थे इसलिये नाराज थे और हत्या कर दी गयी लेकिन अफवाहों पर बात नही बनती , हकीकत सामने आनी चाहिये कि आखिर मामला क्या था क्यों हत्या हुई।नाथू राम गोडसे गांधीजी का ही करीबी था तो उसने उनकी हत्या क्यों की।

अब बात करते है नाथू राम गोडसे की , संघी होने की बात कही जाती है । यह उन लोगों ने कही जो सरकार में थे और आज तक हलफनामा बदलने का काम करते आये हैं।नाथूराम की गांधी जी से दुश्मनी थी जिसके लिये गोली मारी या उसके परिवार पर गांधी जी ने हमला किया था जो वह उन्हें मारने गया था कोई तो बात रही होगी जो उसे इस मुकाम तक ले गयी , वह आज तक नही खोली गयी । सबसे बडी बात की इतने आदमी के बीच उसने गोली मारने के लिये पिस्तौल निकाली तो विरोध क्यों नही हुआ , गांधी जी क्या मामूली आदमी थे जो कोई भी गोली मार दे, उनकी सुरक्षा में कोताही क्यों हुई। हो सकता है शायद इस समय की मीडिया होती तो इस बात का खुलासा हो जाता लेकिन तब की मीडिया कुछ कांग्रसियों के हाथों में थी जो अपने हिसाब से देश को संदेश देते थे, उन्होने इसी तरह का माहौल बनाया जैसा सरकार चाहती थी । प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू , महात्मा गांधी व कई ऐसे नेता जिनका तालुल्क कांग्रेस से था वह अखबार चलाते थे और उनके ईशारे पर भा्रमक खबरे फैलाते थे। नाथूराम संघी था कि नही इस पर पुर्नविचार होने की आवश्कता है क्योंकि इस मामले को लेकर संघ को हर बार बदनाम किया जाता है और हर बार तुरूप के पत्ते की तरह प्रयोग में लाया जाता है,इस पर दो दो हाथ होना ही चाहिये। सिर्फ और सिर्फ आज का मीडिया यदि देश हित में चाहे तो इस काम को अंजाम दे सकता है। उसे आगे आना चाहिये।

अब बात करते है कांग्रेस के नीतियों की  वह हमेशा से हिन्दू विरोधी रही है और ऐसी विचारघारा वाले लोगों की कमी भी इस दल में है। जो समय समय पर हमेशा उन्हें अघात देने की कोशिश में रहते है  उन्हें लगता है कि दुश्मन से मिलकर अपने देश में यश मिलता है और विभीषण की परिभाषा हमेशा चरित्रार्थ करते रहते हैं।याद कीजिये ,26 नवम्बर को मुंबई के पाश एरिया में आतंकी हमला होता है ,प्रदेश सरकार के पास कोई सूचना इस बाबत नही होती कि उस ताज होटल में इतनी भारी संख्या में हथियार कैसे आया, उसे पता क्यों नही चला, उस होटल पर कोई कारवाई भी नही की गयी जबकि सैकडों लोग मारे गये। वास्तव में यह एक सोची समझी साजिश सी प्रतीत होती है जो कि देश के अपने ही लोग बुन रहे थे।सही मायनों में देखा जाय तो यह कोई ट्रायल नही था बल्कि पूरी तरह से हिन्दूओं को आतंक का जामा पहनाने की नाकाम कोशिश थी। अगर इस कारवाई में अजमल कसाब न पकडा गया होता तो देश की कुछ पार्टिया इसे हिन्दू आतंकवाद की परिभाषा दे देने के लिये तैयार बैठी थी। ठीक उसी तरह जैसे ईशरत जहां मामले को एक नये तरीके से पेश कर कुछ लोगों को नेस्तानाबूत करने की कोशिश की गयी। साध्वी प्रज्ञा को परेशान किया गया और हिन्दू आतंकी के रूप में पेश किया गया।नाथूराम गोडसे की बात भी ऐसी ही लगती है उस समय संघ हिन्दूओं का प्रतिनिधित्व करता था इसलिये नाथूराम गोडसे को संघ से जोडकर सत्ता से दूर कर दिया गया ताकि वह हर कार्य लोगों को गुमराह कर किया जा सके जो तब मुमकिन नही था।सवाल तब भी यही था कि कांग्रेस ने इस मामले में रूचि क्यों नही ली और नाथूराम गोडसे को मोहरा बनाकर मामले को निपटा दिया।उसके कारणों को सार्वजनिक क्यों नही किया।

फिलहाल अब जो सरकार है उसे भी गांधी जी से परेय कुछ नही दिखता , उन लोगों की शहादत नही दिखती जिसे गांधी जी चाहते तो रोका जा सकता था लेकिन ऐसा नही किया । भगत सिंह, राजगुरू , सुखदेव ऐसे तमाम लोग है जो गांधी जी की उपेक्षा के शिकार हुए। ऐसा कौन सा गुण था जो गाधी जी व नेहरू में समान था उस पर तार्किक बहस होनी चाहिये।राष्ट के लिये उनके योगदान पर चर्चा होनी चाहिये और सबसे बडी बात की राष्टपिता क्यों कहा गया इस पर चर्चा होनी चाहिये। एकतरफा नही हो , सभी पक्षों पर दलील हो देश जाने कि यह महान क्यों हुए और उनके गुणों का अनुसरण कर सके।

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