इमाम की पगार पर विवाद

इमामों को पारिश्रमिक देने के सुप्रीम कोर्ट के वर्ष 1993 के आदेश को केंद्रीय सूचना आयोग ने संविधान का उल्लंघन बताया है आयोग का कहना है कि ऐसा करके गलत मिसाल रखने के साथ ही अनावश्यक राजनीतिक विवाद और सामाजिक वैमनस्य को बढ़ावा दिया गया है यह बात केंद्रीय सूचना आयुक्त उदय माहुरकर ने इमाम को वेतन देने के विवरण की मांग करने वाली एक याचिका के जवाब में कही।

गौरतलब हो कि गत दिनों सुभाष अग्रवाल नाम के व्यक्ति ने सूचना अधिकार अधिनियम के तहत एक आवेदन करके दिल्ली की मस्जिदों में इमामो को दिए जाने वाले वेतन के बारे में जानकारी मांगी थी हालांकि राज्यपाल और मुख्यमंत्री के कार्यालयों ने आरटीआई आवेदन का जवाब नहीं दिया। मुख्य सचिव कार्यालय ने इस आवेदन को राजस्व विभाग व दिल्ली वक्फ बोर्ड के पास फॉरवर्ड कर दिया वही दिल्ली वक्फ बोर्ड ने सुभाष अग्रवाल को दिए गए जवाब में कहा कि इसका कोई भी प्रश्न इससे संबंधित नहीं है जिसको लेकर के यह मामला और तूल पकड़ लिया मामला न्यायालय में गया और न्यायालय ने अपना फैसला सुनाया जिस पर आयोग ने आपत्ति की।

इस मामले में केंद्रीय सूचना आयुक्त माफ करने इन दोनों विभागों के जनसूचना अधिकारियों को नोटिस जारी कर 18 नवंबर को सुनवाई के लिए पेश होने का निर्देश दिया था और मामले से सारी जुड़ी हुई फाइलें लाने के लिए कहा था लेकिन इसके बाद आयुक्त ने कहा कि आयोग का मानना है कि ऐसे फैसलों से देश में गलत मिसाल पड़ती है इससे मुद्दा अनावश्यक राजनीतिक विवाद बन गया है सामाजिक कटुता को भी बढ़ावा मिल रहा है ।

उन्होंने कहा कि जब सरकार मुस्लिम समुदाय के लोगों को विशेष धार्मिक लाभ देती है तो इतिहास पर भी जरूर नजर डालनी चाहिए। एक धार्मिक देश पाकिस्तान इसलिए बना क्योंकि भारत के विभाजन की मांग की थी, पाकिस्तान ने इस्लामिक बनना स्वीकार किया, भारत सभी धर्मों के लोगों को समान अधिकारों की गारंटी देने वाला देश बना ।केंद्रीय सूचना आयुक्त ने निर्देश दिया कि उनके आदेश की एक प्रति उपायुक्त की कार्रवाई के साथ केंद्रीय मंत्री के पास भेजी जानी चाहिए ताकि सभी धर्मों के पुजारियों के मासिक वेतन मामले में संवैधानिक रूप से संविधान के अनुच्छेद 25 से 28 के प्रावधानों से समान ढंग से लागू किया जाना चाहिए।

फिलहाल आयुक्त को आपत्ति इसलिए है कि दिल्ली सरकार से करीब ₹62 करोड़ का सालाना अनुदान दिल्लीवाफ्फ बोर्ड इसलिए लेता है की वह इमाम का वेतन दे सके इस आधार पर इमामो को ₹18000 और अजान देने वाली मुहावरों को दिल्ली सरकार ₹16000 मासिक वेतन करदाताओं की कमाई से ही देती है जबकि हिंदू मंदिर के पुजारियों को केवल ₹2000 का मासिक पारिश्रमिक मंदिर को संचालित करने वाले निजी ट्रस्ट देते हैं उन्होंने कहा कि जो लोग धार्मिक अल्पसंख्यकों को संरक्षण देने के नाम पर ऐसे फैसलों की पैरवी करते हैं उन्हें पता होना चाहिए कि विभिन्न धर्मों वाले देश में धार्मिक बहुसंख्यक ओ को सुरक्षा पाने का अधिकार है।

फिलहाल करदाताओं के पैसे से एक विशेष वर्ग को लाभ पहुंचाने का मामला अब सरकार के साथ-साथ कोर्ट में भी पहुंच गया है जिस पर आने वाले समय में बहुत जल्द ही कोई निर्णय आएगा। दिल्ली सरकार द्वारा दिए जा रहे 62 करोड़ के अनुदान पर भी निर्णय होगा जो वह दिल्ली वक्फ बोर्ड को दे रहा है। हालांकि इससे पहले भी मुस्लिम तुष्टीकरण के मामले सामने आए थे लेकिन उत्तर प्रदेश और बिहार में इस तरह का अनुदान प्रदेश के बोर्ड को नहीं दिया गया था।

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