गौरक्षा और कांग्रेस

7 नवंबर 1968 को संसद पर गौरक्षा को लेकर एक ऐतिहासिक प्रदर्शन हुआ। इस आंदोलन में चारों शंकराचार्य ,स्वामी करपात्री जी महाराज, अनेक साधु-संत, लाखों लोग सम्मिलित हुये। श्रीसंत प्रभु दत्त ब्रह्मचारी, पुरी के जगतगुरु शंकराचार्य श्री स्वामी निरंजन देव तीर्थ के आमरण अनशन ने आंदोलन में प्राण फूंक दिए । इस आंदोलन में निहत्थे और शांत आंदोलन आंदोलनरत संतों पर तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने पुलिस के द्वारा गोली चलवा दी जिससे कई साधु मारे गए । इस हत्याकांड से क्षुब्ध होकर तत्कालीन गृहमंत्री श्री गुलजारी लाल नंदा ने अपना त्यागपत्र दे दिया जिसमें उन्होंने सरकार को जिम्मेदार बताया था लेकिन कांग्रेस और प्रधानमंत्री श्रीमती गांधी के कानों तक जूं भी नहीं रेंगी । संत रामचंद्र वीर अनशन पर डटे थे जिनकी 166 दिनों के बाद मृत्यु हुई और उसके बाद यह आंदोलन समाप्त हुआ। रामचंद्र वीर का इतना लंबा अनशन आंदोलन अभी तक हुए अनशन आंदोलनों में अपने आप में एक इतिहास है ।

कांग्रेस के 6 अप्रैल 1938 के पार्टी अधिवेशन में पंडित जवाहरलाल नेहरू ने आग्रह पूर्वक बल दिया कि गोवंश वध पर पाबंदी नहीं लगनी चाहिए। जब आजाद भारत की संसद में गोवध बंदी के लिए कानून का प्रस्ताव आया तो नेहरू ने सदन में धमकी दी थी कि वह प्रधानमंत्री पद से त्यागपत्र दे देंगे। सरकार गिर जाए तो उसकी भी परवाह नहीं करेंगे । तब जबलपुर के सांसद सेठ गोविंद दास द्वारा (2अप्रैल 1955) यह विधेयक पेश हुआ था।

 महात्मा गांधी गौ हत्या के विरोध के प्रबल समर्थक थे वह कहते थे हम स्वतंत्रता के लिए कुछ समय तक रुक भी सकते हैं परंतु गौ हत्या होना हमें एक दिन भी सहन नहीं है।

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