गुलाम व्यवस्था से बाहर आयें

आजादी के इतने वर्षो के बाद भी भारत की प्रशासनिक व्यवस्था गुलाम है और उनके सारे क्रिया कलाप वैसे ही है जो कि अंग्रेजों के शासन में भारतीयों के साथ थे। इस व्यवस्था ने कभी नही चाहा कि कानून के नाम पर आम आदमी को लूटना बंद हो । सभी सरकारी महकमों में बैठे बड़े  अधिकारी सिर्फ वही काम करते है जो सियासी लोग चाहते है और सारी योग्यता के बाद ऐसे आदमी के नीचे काम करते है जो कि औसत में एक शराबी पीने के बाद जितनी छोड़ देता है उस पैमाने पर जिन्दगी बिताते चले आ रहे है। बड़े  ही शर्म की बात है अभी इस तरह के लोग सभी विभागों में अपने दायित्वों की दुहाई देकर अमर्यादित होकर सूर्यवशियों व चन्द्रवशियों की तरह जिन्दगी बिता रहें है।
अगर किसी देश की सरकारी प्रणाली ही लूट के लिये बनायी गयी हो तो देश का भला नही हो सकता और देश तरक्की नही कर सकता फिर उनका परिवार कैसे तरक्की कर सकता है । अगर विदेश में वह रहने व नौकरी करने को तरक्की मानता है तो वहां वह दूसरे दर्जे का नागरिक है ? इस पर विचार करने का समय आना चाहिये जिसकी कल्पना वह अभी तक नही कर पाये है। अपनों से ही सबकुछ है और उनके लिये अपने ही कुछ नही , ऐसे लोग व्यवस्था में रहे तो देश कैसे चलेगा जो अपनो को ही अपना न मानते हो उन्हें चुनकर इस बात का अहसास तो कराना ही होगा ।
आज हर कोई पुलिस से पीडित है , सारे गलत कामों की निगरानी उसके हाथ में  दी गयी थी लेकिन अब सारे गलत कामों की लिस्ट उसके हाथ में थमा दी गयी है जिसपर किस काम के कितने दाम लगेंगे यह लिखा होता है मानो पुलिस विभाग के कर्मचारी न होकर सेल्समैन हो गये है जिन्हें हर गलत काम को प्रोडक्ट बना कर  बेचना पडता है और जो न ले उसे हवालात की हवा खानी पडती है ऐसा विभाग तो किसी देश में नही है जिसपर शोध किया जा सकता है। इसी तरह यहां की न्याय पालिका है , दोस्त के बेटे को देखकर बडी अदालतो के फैसले बदल जाते है यह काम खुल्लम खुल्ला इसलिये होता है कि अंकल सिंन्डोम का फार्मूला चलता है आखिरी अपने बेटे को भी जज बनाना है । सभी पार्टियों के मुखिया ने अपने आप को बचाने के लिये यह फार्मूला बनाया है और आपको यह बात जानकर हर्ष भी होगा कि नेताओं के मामले उन्ही के द्वारा मनोनीत किये गये जजों के यहां जाते है ताकि वह जज अपना कर्ज उतार सके ।
दोष यही तक होता तो चल भी जाता लेकिन इससे अलावा एक बात और है जो आम आदमी को नही पता है । वास्तव में जब संविधान बन रहा था तब ही इन बातों को ध्यान में रखा गया था कि अपनी दुकान कैसे चले इसलिये उसी कानून को दूसरे देशों से लिया गया जो उनको पनपने का मौका दिया करते थे । कितने हैरत की बात है हमारा कानून क्या है यह बात आज भी देश की पनचानबे प्रतिशत जनता नही जानती और आने वाली पीढी में वही लोग जान सकेगें जो दौलत मंद है या सरकारी तंत्र का एक हिस्सा है।
जब देश आजाद हुआ तभी कानून के बारे में शिक्षा व्यवस्था में एक हिस्सा के रूप में रखना चाहिये था लेकिन अपना गुणगान करने के चक्कर में हम इतना गिर संभल ही नही पाये आज गांधी के नाम पर या नेहरू के नाम पर क्या होता है देश को याद कराया जाता है यही वह कमाई है जो वह करके गये लेकिन जिनके नाम को आगे वह अपना नाम चाहते थे उससे आगे निकल पाये , भगत सिंह,  चन्द्रशेखर , राम प्रसाद विस्मिल को देश जानता है , लक्ष्मीबाई का नाम भारत की शान बना हुआ है। क्या अन्ना ,केजरीवाल , जयप्रकाश या देश का कोई भी नेता आजादी के बाद से अबतक इस लोगों के आसपास पहुंच सकता है। लोकनायक जयप्रकाश नारायण क्या थे और उनके साथ चलने वाले मुलायम , लालू व नितीश क्या है यह बात किसी से छिपी है। अन्ना आखिर क्यों बार बार जब मनमोहन पर कोई संकट आता है तो लंगोट बांधकर अखाडे में आ जाते है? गांधी की राह पर ऐसे चलेगें । केजरीवाल किसका मुखौटा है और किसके लिये काम कर रहें है उनके व उनके सहयोगियों की संस्थाओं में जो अनुदान मिलता है जिसके बदौलत वह शान से कुछ भी कर सकते है उन्हें दो वक्त की रोटी की व्यवस्था नही करनी पड रही है इसलिये दर्द की बात नही जानते ।
आज जो देश के बारे में कुछ भी सोचना या बोलना चाहता है तो सबसे पहले मीडिया उससे दस सवाल जानना चाहती है।उसके बाद पुलिस से सामना होता है और नेता तो उसे इन दोनों के प्रभाव के साथ नंगा ही कर देते है फिर भी कुछ बचा तो वहां माई लार्ड है जो जनता की निगाहों में क्या है यह सभी को पता है।आखिर नेताओं ने भी उन्हें मेरा भगवान की उपाधि दे रखी है भारतीय कर ही क्या सकता है इंडियनों के इस देश में ।

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