होली केवल रंगों का ही त्यौहार नहीं

holiभारतीय सनातन परम्परा में होली पर्व का विशेष महत्व है। यह पर्व शीत ऋतु और ग्रीष्म ऋतु के सन्धिकाल में आता है जिसे बसन्त कहा जाता है। खेतों में पकती गेहूँ की बालियाँ जब अपनी सुनहली आभा बिखेरती हैं तो किसानों का मन इन्हें देखकर आन्दोलित हो उठता है। इस पर्व के सम्बन्ध में अनेक पौराणिक आख्यान प्रचलित हैं। परन्तु सूक्ष्मता में देखा जाए तो यह हमारे देश की विविधता में एकता का प्रतीक है। विभिन्न प्रकार के रंग हमारे देशवासियों की विभिन्नता को प्रतिबिम्बित करते हैं। भिन्न-भिन्न जाति, वर्ण, धर्म और वेशभूषा वाले हमारे देशवासियों की आत्मा इस भारत भूमि को रंगीन बनाती है। इसी वासन्ती रंग से अपने चोले को रंगने की अभिलाषा करते हुए हमारे स्वतन्त्रता सेनानी दुर्निवार परिस्थितयों में भी हँसते-हँसते अपनी इस मातृभूमि को स्वतन्त्र करने के लिए प्राणपण से तत्पर थे। होली का यह त्यौहार प्रेम और सद्भावना का प्रेरक है। वर्तमान में राजनीतिक कटुताओं की विभीषिका में तप्त हमारे देश के राजनेताओं के लिए यह प्रेरणादायिनी है। होलिका दहन मात्र कुछ लकड़ियों और उपलों के ढेर में आग लगाना ही नहीं है। यह भारत भूमि 125 करोड़ देशवासियों का आश्रय स्थल है और हम इससे उऋण कैसे हो सकते हैं? यद्यपि प्रश्न गम्भीर है किन्तु यह असहज नहीं करता है। जिस धरा पर हमारा पालन-पोषण होता है, जिसका अन्न हमें ऊर्जा और बुद्धि प्रदान करता है, जहाँ की वायु हमारे प्राणों को आन्दोलित करती हैं हमें उसका कृतज्ञ होना ही चाहिए। व्यक्ति और व्यक्ति के द्वेष को राजनीतिक रंग देकर हमें उस देश की छवि धूमिल करने का प्रयास नहीं करना चाहिए जिसने हमें सहज भाव से अपनाया है। हमारी अभिव्यक्ति देश की परम्परा को खण्डित करने वाली नहीं होनी चाहिए। वैचारिक मतभेद हमारी मानसिक क्षमताओं को विदीर्ण करने वाली नहीं होनी चाहिए। देशप्रेम के लिए न तो कोई प्रमाणपत्र देता है और न लेता है, यह स्वतः स्फूर्त प्रेरणा होती है जो किसी भी देशवासी के आत्मगौरव को उन्नत करती है। आज हमारे देश की जो वैश्विक छवि है, स्वतन्त्रता पश्चात प्रथम बार ऐसा अनुभव किया गया कि हम भी वैश्विक मंच के एक प्रमुख अभिकर्ता हैं। वैश्विक नीति के निर्माण में हमारी अनदेखी नहीं की जा सकती है। मेरे ऐसा कहने का अभिप्राय कल्पनात्मक नहीं अपितु विदेशों में रहने वाले भारतवंशियों की प्रतिक्रिया के समर्थन से है। ऐसा प्रथम बार देखा गया कि हमारे जवानों ने पठानकोट में देश की रक्षा करते हुए अपने रक्त से जो होली खेली थी वह निष्फल नहीं हुआ और कारण चाहे जो कुछ भी हो, हमारे पड़ोसी को इसे प्रथम बार गम्भीरता से nsvलेना पड़ा। उसे स्वीकार करना पड़ा कि यह कुचक्र उसकी धरती पर रचा गया था। प्रथम बार, हमारे पड़ोसी को हमारे देश पर होने वाले आतंकवादी हमले की पूर्व सूचना से हमें अवगत कराना पड़ा। यह हमारी एकता और राष्ट्रभक्ति के कारण ही सम्भव हो पाया। हमें गर्व होना चाहिए कि हमारे प्रधानमन्त्री की यह नैतिक दृढ़ता हमें स्वावलम्बन, आत्मगौरव और सर्वतोन्मुखी विकास के जिस पथ पर ले जा रही है, वह दीर्घकालिक और सुखद परिणाम देने वाली है। अब हमारा दायित्व बनता है कि हम इसमें किसी प्रकार की बाधा न उत्पन्न होने दें। कुछ नकारात्मक ताकतें अवश्य इसे विकृत करने के प्रयास में लगी हैं परन्तु हमें अपने विवेक और संयम से काम लेते हुए उन्हें तिरोहित करने का प्रयास निरन्तर करते रहना होगा। होली के इस पावन पर्व पर हमें द्वेष, हिंसा, वैमनस्यता, देश के प्रति कृतघ्नता की भावना और देश के प्रति उठने वाले कुत्सित विचारों को होलिका में दहन करना होगा और सामाजिक समरसता, भाई-चारा, सनातन भारतीय संस्कृति और राष्ट्रभक्ति की प्रबल धारा आप्लावित करनी होगी। मेरी व्यक्तिगत अभिलाषा है कि आप सभी होली के विविध रंगों में भारतीय आत्मा का अनुभव करें और देश की तीव्र गति से दौड़ती प्रगति का मार्ग प्रशस्त करने में सहयोग करें।

आप सभी को होली की हार्दिक शुभकामनाएँ।

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