विश्व गुरु बनने की राह पर भारत

भाजपा सरकार का यह दो वर्ष का कार्यकाल अनेक दृष्टि से उल्लेखनीय रहा। जहाँ देश के भीतर कुछ राजनीतिक षडयन्त्रकारियों द्वारा इस सरकार की छवि धूमिल करने के सतत प्रयास किये गये वहीं यह सरकार विश्व पटल पर देश की छवि को निखारने में प्रयत्नशील रही। विश्व के अनेक देशों का विश्वास भारत पर और अधिक दृढ़ हुआ है। हमारे प्रधानमन्त्री ने जिस कूटनीति से विश्व जनमत को अपनी ओर आकृष्ट किया वह अनेक अर्थों में अभूतपूर्व है। संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता की बात हो या एनएसजी में शामिल होने की, सरकार की सफल कूटनीति ने भारत के पक्ष को प्रबल से प्रबलतर रूप में प्रस्तुत किया जिसका परिणाम आज हमारे सम्मुख है। उल्लेखनीय तथ्य तो यह है कि इन सभी प्रयासों में भारत कहीं भी याचक के रूप में नहीं दिखाई दिया बल्कि अपने सामर्थ्य और नैतिक प्रतिबद्धता के बल पर उसे यह समर्थन प्राप्त हुआ है। शीत युद्ध के दौरान जब विश्व दो महाशक्तियों के प्रभाव में आकर दो खेमों में बँटा हुआ था उस समय भारत ने गुट-निरपेक्षता की नीति अपनाई और स्वयं को इन महाशक्तियों के प्रभाव से मुक्त रखा। दूसरे अर्थों में भारत ने अपनी सम्प्रभुता से कोई समझौता नहीं किया। बीच के कुछ काल में भारत की स्थिति सामान्य स्तर की रही और विदेश नीति में कुछ ऐसा देखने को नहीं मिला जिससे भारत के गौरव में वृद्धि का उल्लेख किया जा सके। किन्तु भाजपा सरकार के सत्ता में आने के पश्चात जिस सशक्त और प्रभावशाली ढंग से भारत ने विश्व के प्रभुतासम्पन्न देशों के सम्मुख स्वयं को प्रस्तुत किया वह अभूतपूर्व रहा। भारत की बढ़ती सक्रियता ने चीन और पाकिस्तान के माथे पर बल डाल दिए हैं। अपने दो वर्ष के कार्यकाल में भारत के प्रधानमन्त्री द्वारा 40 से अधिक देशों की यात्राएँ पर्यटन के लिए नहीं की गयीं यह सम्पूर्ण विश्व जानता है भले ही हमारे देश के कुछ विशिष्ट बुद्धिजीवियों को ज्ञात न हो।
चीन की मंशा सदैव से भारत विरोधी रही। यद्यिप हमारे प्रधानमन्त्री ने सत्ता संभालने के पश्चात सर्वप्रथम इस दिशा में सकारात्मक कदम उठाये किन्तु उसका वह प्रतिदान नहीं मिला जो अपेक्षित था। भारत सदैव से पड़ोसी देशों से अपने सम्बन्ध मधुर रखने का इच्छुक रहा है और मात्र वाणी से ही नहीं अपितु कर्म से भी उसने ऐसा प्रदर्शित किया है। भारत के प्रधानमन्त्री की अप्रत्याशित पाकिस्तान यात्रा इसी कड़ी का एक प्रयास था। कुछ लोगों की दृष्टि में इसे अनुचित माना गया किन्तु अन्तर्राष्ट्रीय जगत में इसकी सराहना की गयी। समस्त द्वेष भुलाकर मित्रता की ओर कदम बढ़ाना एक सकारात्मक दृष्टिकोण है। अपराधी वह नहीं होता है जो विश्वासघात का शिकार होता है बल्कि अपराधी वह होता है जो विश्वासघात करता है। फिर भी, भारत अपनी विश्वबन्धुत्व की मूल भावना के साथ ही अपने निर्णय लेता है इसका प्रमाण हमारे प्रधानमन्त्री देते आ रहे हैं।
एमटीसीआर में भारत का स्थान सुनिश्चित हो चुका है। शीघ्र ही एनसीजी में भी उसे प्रवेश मिलने वाला है। इससे दक्षिण एशिया में शान्ति बनाये रखने के लिए पर्याप्त शक्ति सन्तुलन स्थापित होगा। चीन सागर में जिस प्रकार चीन अपने एकाधिकार के लिए प्रयासरत है उससे जापान और वियतनाम जैसे देश भी चिन्तित हैं। भारत के सशक्त होने से इन देशों को भी विशाल जल क्षेत्र में बराबरी का अधिकार और निर्बाध आवागमन की सुविधा प्राप्त होगी।
भारत का परमाणु कार्यक्रम भी शान्तिपूर्ण उद्देश्यों के लिए ही संस्थापित है। ‘नो फर्स्ट यूज’ की घोषणा भारत प्रारम्भ में ही कर चुका है अतः किसी भी देश को भारत से आतंकित होने की आवश्यकता नहीं। किन्तु पड़ोसियों को भी भारत को आतंकित करने का प्रयत्न नहीं करना चाहिए। ‘योगक्षेम वहाम्यम्’ का उद्घोष करने वाला भारत कभी आक्रान्त नहीं रहा है और न रहेगा क्योंकि यही भारतीय संस्कृति है जो जनमानस के अन्तस्तल में शताब्दियों से रची-बसी है। और यह वही भाजपा सरकार है जिसने योग को वैश्विक मान्यता दिलाई जिसमें समग्र विश्व समरसता के रस में सराबोर होकर विश्व-बन्धुत्व की भावना को अंगीकार कर सकता है। इस तादात्म्य में कहीं भी ईर्ष्या-द्वेष अथवा आतंक का कोई भी स्थान नहीं रहेगा।

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