किसानों के लिये सबसे बडी समस्या है केसीसी ? यह वह हथियार है जिससे किसान शुरू ही कर्ज लेकर करता हैं। मान लीजिये कि आपके पास एक बीघा खेत है और आप केसीसी यानि किसान केडिट कार्ड बनवाना चाहंते है। तो सबसे पहले अपने कागजात बनवाइये पांच सौ रूप्ये लेगेगें फिर लेखपाल से मिले वह आपकेा खसरा बनाकर देगा , सौ रूप्ये लेगा । उसके बाद कानूनगों आपके हिस्से पर हस्ताक्षर करेगा । वह भी सौ रूप्ये लेगा।उसके बाद बैक में जाइये जहां आपका खाता हो ।हर बैक का अपना वकील होता है जो कि आपके इस कागजात का मुआयना करेगा और उसके बाद मूल्याकंन की रिपोर्ट बनवायेगा । वह आपके पन्द्रह सौ रूप्ये लेगा । उसके बाद मान लीजियेकि एक बीघे की फसल की कीमत तीस हजार रूप्ये बैक ने लगायी है तो वह बैक मैनेजर दस प्रतिषत लेकर आपके खाते में स्थानान्तरित करेगा। जिसपर नौ प्रतिषत की दर से ब्याज लगेगा। यानि पहले सात हजार खर्च करो फिर केसीसी पाओ । इस पर फसल बीमा स्वतः होने का प्रावधान है लेेेेेेेेेेकिन जिस रेट को बैक मानती है उस रेट पर मुआवजा पाने के लिये पुनः किसान को वही प्रकिया से गुजरना पडता है जिस रास्त्ेा से उसने षुरूआत की थी। जबकि होना यह चाहिये था कि बिना किसी प्रकिया के उसका मुूआवजा उसके खाते में आ जाना चाहिये था।पूर्वती सरकारों में भी यही हुआ । अब भी यही हो रहा है और आने वाले समय में भी यही होता रहेगा क्योंकि दुकान तो चलनी है यह बंद नही हो सकती , यह सभी के लिये बराबर है।
देखा जाय तो किसान देष केा खाने के लिये अनाज उगाता है और उसी के कारण वह भुखमरी का षिकार हो जाता है। बाद में आत्महत्या करता है। सही मायने में जो सुविधा किसान के लिये हेै वह छेाटे किसानो जिसके पास एक बीधा के आसपास है उसे मिलनी चाहिये क्योंकि वह खुद उस खेत को करता हैं।गरीब होने के कारण उसके पास पैसे नही होते और खेतों की फसल जब तक सहयोग से काटने को होती है तब तक प्रकृति उसे निपटा चुकी होती है।किन्तु नयी सरकार अब सभी किसानों को सम्मान देना चाहती है जिनके पास ज्यादा खेत है उनको भी जिनके पास कम खेत है उनको भी ?
वास्तव में देखा जाय तो सबसे पहले किसान का निर्धारण करना चाहिये था। कि किसान है कौन ? जो खेत में काम करता है या फिर खेत का मालिक , इसमें अजीब विडम्बना है जिसके पास खेत है वह किसानी नही करता बल्कि आधे पर देता है जिसर्मे खेत लेकर पैदा करने वाले को पानी ,बीज ,खाद का पैसा देना पडता है और बदले में किसान उसे अनाज का आधा हिस्सा देता है। यह प्रति बीधा खेत का हिसाब ठीके पर देता है और तय हो जाता है कि कितना अनाज देना है या पैसा देना है। इसमें सारी जिम्मेदारी लेने वाले की होती है देने वाला कुछ नही देता।जिसके पास दो चार एकड खेत है वह तो उसे आधे पर या ठीका पर देता है किसानी खुद नही करता।एैसे लोगों की सरकार केा पहचान करनी चाहिये और जो वास्तव में किसानी करते है उन्हें ही सम्मान देना चाहिये। बिना किसानी किये किसान बने लोगों को नही।
एक बात और यह है कि सरकार को समझना चाहिये कि छोटे किसानों को सुविधा देनी है जिसके पास एक एकड खेत है। इससे उपर वाले को नही । इसके कई कारण है यह तैयार होगा तो और मेहनत कर आगे बढेगा जबकि ज्यादा खेत वाले पुस्तैनी खेतों के मालिक होते है जो खेती नही करते बल्कि करवाते है। उनके किसानी में कौन सा नुकसान होने वाला है मरता वह है जिसके पास कम खेत है या खेत पर ही कामगार की तरह काम करने वाला , कि फसल नही रहेगा तो वह खायेगा क्या ? ठीका पर जो खेत ले रखा है वह कहां से देगा। केसीसी कैसे भरेगा और बच्चों का पेट कैसे पालेगा। उसके लिये तो सभी मालिक है और ताकतवर है जो कि जबरन उसके उपर दबाब बनाते है।जिसके कारण उसे आत्महत्या करना पडता है। आज जो सरकार ने छह हजार की योजना किसानों के लिये बनायी है उसमें सुधार करना चाहिये उसे एक एकड तक की खेती करने वालों के लिये लागू करनी चाहिये न कि ज्यादा खेती करने वाले लोगों के लिये। उसके लिये केसीसी के मापदण्ड बनाने चाहिये कि इस भूमि तक के मालिको की केसीसी का ब्याज सरकार देगी और आराम से खेती करें। लेकिन पूर्व में रहे साहूकार और आज के बैंक यह कहां मानने वाला , उन्हें खाता देकर डिफाल्टर बनाने का षौक है और बाद में गाडी खिंचवाने व मकान रखने का , क्योंकि उनका कुछ नही होता , न तो गारंटर होते है और न ही कोई जिम्मेदारी लेने वाले लेकिन जहां कागज है प्रापर्टी है वहां बैक को केसीसी पर गारंटर भी किसान का चाहिये और जिम्मेदारी भी , कि कही ं वह भाग न जाये।
नयी सरकार का जो बजट आया है उसमें किसानों के लिये जो उर्जा योजना बनी है वह सही है लेकिन किसानों को इसका लाभ नही मिलने वाला , बंजर जमीन पर सौर उर्जा लगाने की बात कही गयी है लेकिन इसी बंजर जमीन पर सल्फर डालकर वह चावल उगाता है जिसे बेंचकर अपना गुजारा करता है अगर उस पर वह सौर उर्जा का प्लांट लगायेगा तो खायेगा क्या ? क्योंकि जिस गांव में गरीब को प्रधान व उसके गुर्गे अपने घर के सामने से निकलने नही देते वहां प्लांट से बिजली कैसे लेने देगें।बेंचने की बात करेगें क्योेंकि कर्ज वह भरे और कमाई रईसजादे करें।
ज्यादा तर बंजर जमीन प्रधान ने अपने लोगों को दे रखी है जिनसे लेना कठिन ही नही नामुकिन सा है।
अब सवाल यह है कि सरकार का केसीसी व किसानों के प्रति रवैया कैसे हो। उसके लिये जो आठ एकड का दायरा दिया गया है वह गलत है । पहले एक एकड वाले को मजबूत करना चाहिये। साठ प्रतिषत किसान इसी दायरे में आते हैं। छह हजार की योजना , इतने ही एकड वाले किसानों के लिये उपयुक्त है उससे उपर वालों के लिये नही। इन्हें सारी सुविधा मिलनी चाहिये और इन्हें परेषानी न हो इसका उपाय करना चाहिये। केसीसी पर तीन प्रतिषत तक ब्याज लगना चाहिये और यदि समय पर दे दे तो सारा ब्याज माफ कर देना चाहिये। मुआवजा के लिये बिना किसी ताम झाम में यदि स्वतः ही फसल बीमा हो रही है तो किसान के खाते में प्रति बीधा जो बैक ने तय किया है वह आ जाना चाहिये। लेकिन यह सभी एक एकड वाले के लिये ही होना चाहिये। इससे देष केा कई फायदे होगें । जो बडे किसान है वह लाभ लेना चाहते है तो इस दायरे में आयेगें और अपना खेत कम करेगें , खेत कम करेगें तो नये किसान बढेगे। जिससे अनाज भी होगा और विकास भी होगा।रही बात उर्जा दाता की तो किसान यह काम नही कर सकता।