नए ध्रुवीकरण की ओर मुस्लिम वोटर

राजनीति में भी कब क्या बदल जाए कुछ कहा नहीं जा सकता मुस्लिम राजनीति भी ऐसी ही है कभी मुस्लिम राजनीति की धुरी रही कांग्रेस अब उससे बाहर हैं कांग्रेसियों को मुसलमान पसंद नहीं करते ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि लालू प्रसाद यादव और मुलायम सिंह यादव दो ऐसे शख्स आए जिन्होंने खुलकर मुस्लिमों की वकालत की और मुस्लिम वोटों पर अपना मारका रख दिया उसके बाद से मुस्लिम उनके दीवाने हो गए और अपना वोट मुस्लिम उन्हीं को देने लगे बिहार और उत्तर प्रदेश में उनकी सरकारें बनी और केंद्र की राजनीति में भी एक नया आयाम आया ।बिहार और उत्तर प्रदेश के बल पर यह दोनों यादव नेता केंद्र की राजनीति में अच्छा खासा स्थान बनाने में कामयाब रहे।

देखा जाए तो ऐसा क्यों हुआ इस पर कई चीजें सामने आती हैं बिहार में लालू प्रसाद यादव और उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव को मुस्लिम विचारधारा की राजनीति का स्थापित नेता माना जाता रहा है परंतु हाल के दिनों में यह धारा अलग राह पकड़ रही है मुलायम सिंह दिवंगत हो गए हैं लालू प्रसाद यादव भी राजनीति मैं शून्यत की ओर बढ़ रहे है। इसलिए आप मुस्लिमों का झुकाव केजरीवाल ब कांग्रेस की तरफ फिर से होने लगा है दक्षिण भारत में पूरा मुस्लिम समुदाय कांग्रेस के साथ है जबकि मध्य में केजरीवाल के साथ और बिहार वह मोदी उत्तर प्रदेश में भी वह कांग्रेस के साथ जाने की कोशिश करता दिख रहा है गुजरात छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के साथ है राजस्थान में कांग्रेस के साथ है ।वह अन्य राज्यों में भी लगभग कांग्रेस के साथ ही  जा रहा है। यह ऐसा वोट बैंक है जो एक तरफा है जिसका लाभ कांग्रेस को मिल रहा है।

बिहार की बात करें तो राजद के बाहुबली दिवंगत नेता मोहम्मद शहाबुद्दीन की पत्नी हिना साहब को राजद की राष्ट्रीय टीम में जगह नहीं मिलने से बिहार के मुस्लिम वोटरों में आक्रोश है इसी तरह यूपी में आजमगढ़ संसदीय क्षेत्र के उपचुनाव के परिणाम में इस मिथ को तोड़ा है कि मुस्लिम वोट पर मुलायम परिवार का एकाधिकार है इस बीच अगड़े पिछड़े के मुद्दे पर मुस्लिम राजनीति की मुख्यधारा से पसंदीदा मुस्लिमों के छटक जाने के भी आसार दिखने लगे हैं ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिम के आई एम ए के विस्तार का प्रयास मुस्लिम वोटरों पर अपना हक जताने वाले दलों के लिए बड़े खतरे का संकेत है जिससे राजनीति के पैमाने बदल सकते हैं।

यूपी में मुलायम सिंह के निधन के बाद उनका वोट बैंक बिखरने लगा है आजमगढ़ संसदीय क्षेत्र के उपचुनाव में भाजपा प्रत्याशी दिनेश यादव निरहुआ से मुलायम परिवार के धर्मेंद्र यादव की हार का कारण मुस्लिम वोटरों का सपा से मोहभंग हो रहा है ।2014 में संसदीय चुनाव में मोदी लहर के बावजूद यहां से सपा की जीत हुई थी। 5 वर्ष बाद भी अखिलेश यादव ने करीब 300000 मतों से जीत कर सिलसिला बरकरार रखा परंतु पिछले महीने उपचुनाव में या चमक फीकी पड़ गई ।भाजपा और सपा की आमने सामने की लड़ाई में भी बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी ने ढाई लाख से ज्यादा वोट काटकर मुस्लिम वोटों पर मुलायम परिवार के एकाधिकार को खतरे में डाल दिया।

परिवर्तन का यह संकेत बिहार यूपी से कुछ ज्यादा ही आ रहा है ।सांसद पूर्व सांसद शहाबुद्दीन की बाहुबली छवि के बावजूद लालू प्रसाद ने अब उनकी कभी अनदेखी नहीं की ,सदैव राजद की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में महत्वपूर्ण स्थान पर बनाए रखा सहाबुद्दीन जब सजायाफ्ता हो गए तो उनकी पत्नी हिना सब आपको राष्ट्रीय टीम में जगह दी। अब दोनों दूर हो रहे हैं इसका असर दिखने लगा है । हिना सब आप और असुविधा सुधीन ओवैसी राजद के मुस्लिम वोट बैंक में दरार डालने की कोशिश करने लगे हैं।

 एआईएमआईए का दायरा पहले हैदराबाद तक ही सीमित था पिछले आम चुनाव में उसने पहली बार महाराष्ट्र में दस्तक दी ।लोकसभा की 1 और विधानसभा की 2 सीट जीतकर इरादे जाहिर कर दिए फिर बिहार विधानसभा की 5 सीटें जीतकर लालू प्रसाद को भी आगाह कर दिया।इससे यह तय हो गया है कि आने वाले समय में मुस्लिम राजनीति एक नया आयाम जोड़ने वाली है ओबेदुल्ला वैसी ही मुस्लिमों के नायक होंगे। ऐसा प्रतीत होता है किसी अन्य जाति के आदमी से या किसी अन्य विचारधारा के आदमी से मुसलमानों का जुड़ना कठिन सा प्रतीत होता है।

 कांग्रेस उनकी पुरानी पार्टी है और इसके अलावा अगर मुसलमानों को किसी से जुड़ना है तो वह कांग्रेस को ही पसंद कर रहे हैं चाहे वह देश का कोई भी राज्य हो।

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