कांग्रेस इस समय अपने अस्तित्व के सबसे बड़े संकट से जूझ रही है ।वह कभी इतने लंबे समय तक लगातार केंद्र के सत्ता से बाहर नहीं रही ।पिछले 5 साल से उसने किसी बड़े राज्य की सत्ता भी हासिल नहीं की ,आम आदमी पार्टी जैसे नए दल की राजनीतिक जमीन हथिया रहे हैं इस बीच पार्टी में गांधी परिवार का प्रभाव भी कमजोर पढ़ने के संकेत मिले हैं। भले ही खरगे परिवार की पहली पसंद के रूप में अध्यक्ष बन गए लेकिन यह सब आसान नहीं रहा ।राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अध्यक्ष पद के लिए गांधी परिवार की पहली पसंद थे लेकिन उन्होंने परिवार के विरुद्ध ही एक प्रकार का राजनीतिक विद्रोह कर दिया ,फिर एक नए अध्यक्ष के लिए करीब आधा दर्जन नाम चले और अंत में खड़के का नाम तय हुआ ।
चुनाव में शशि थरूर को जितने मत प्राप्त हुए ,वह भी चौंकाने वाला है क्योंकि इतने वोट तो शरद पवार, राजेश पायलट, जतिन प्रसाद जैसे दिग्गजों को नहीं मिले थे ।जो दशकों से राजनीति में सक्रिय रहे हैं करोड़पति मां तीसरी बार की सांसद हैं यह दर्शाता है कि पार्टी में क्रांतिकारी सुधारो को लेकर जरूरत है। जो राजनीतिक दर्शन है उसके साथ सहमत जताने और बदलाव चाहने वालों की संख्या भी अच्छी खासी है। कांग्रेस में दमन का भी चक्र चला जिन लोगों ने पार्टी में ज्यादा योग्यता दिखाई उनको बाहर का रास्ता दिखा दिया गया।
अब सवाल यह है कि बतौर अध्यक्ष खड़गे क्या कर सकते हैं। इसके जवाब कई पहलुओं पर निर्भर करते हैं एक यह कि खड़के अपनी भूमिका में कितना विस्तार दे पाते हैं दूसरा यह की लड़के की पारी के दौरान गांधी परिवार का क्या रुख रहता है। अभी तक के संकेत यही दर्शाते हैं कि गांधी परिवार पार्टी पर अपना नियंत्रण नहीं खोलना चाहता और उसका यही रवैया अध्यक्ष के रूप में खड़के की भूमिका एवं सीमा का निर्धारण करेगा ।यह देखना भी दिलचस्प होगा कि बदलाव की हिमायती थरूर जैसे नेता खड़के को किस प्रकार सहयोग करते हैं स्मरण रहे की कोई भी कप्तान तभी सफल हो पता है जब उसे अपनी टीम की क्षमताओं का पूरा समर्थन मिले खड़गे का रिपोर्ट कार्ड भी इसी आधार पर तैयार होगा।
कई चुनौतियां नए कांग्रेस अध्यक्ष की प्रतीक्षा कर रही हिमाचल और गुजरातमें चुनाव हुए हैं जिसमें हिमाचल में कांग्रेस में सफलता पाई है। गुजरात में पार्टी की हालत पतली ही रही है ।आम आदमी पार्टी उसका विकल्प बनने एवं भाजपा को मुख्य चुनौती देने के लिए भरकर जोर लगा रही है। लोकसभा चुनाब खड़गे की पहली परीक्षा है याद रहे कि राजनीतिक प्रदेश पर जीत ही किसी नेता के काठ का निर्धारण करती है और वही पार्टी को किनारा कर रहे नेताओं को जोड़े रखने में मददगार बनती है। अब खड़गे को लंच-पुंज पड़े ,कांग्रेस संगठन को नई धार देनी होगी ।कर्नाटक से लेकर राजस्थान और छत्तीसगढ़ सहित हर जगह चरम पर पहुंची आंतरिक गुटबाजी पर लगाम लगानी होगी।
उन्हें कांग्रेस के पक्ष में अबिलंब कोई कारगर अभियान छेड़ने होगा। भाजपा विरोधी किसी संभावित गठजोड़ को आकार देने में विपक्षी नेताओं को भी साधना होगा । यह सब आसान नहीं है इसलिए उन्हें अपने राजनीतिक पद को ऊंचा उठाना होगा क्योंकि उनकी उम्र 80 के करीब है तो दीर्घकालीन योजनाओं की दृष्टि से अगली पीढ़ी के नेतृत्व को भी तरसना होगा। फिलहाल कांग्रेस का प्रदर्शन अब बेहतर हुआ है जिसे और बढ़िया बनाने की संभावना तलाशनी होगी।