सरकार ने ईएसआई (ESI) को गरीबों के लिये बना रखा है जिसमें मजदूर बर्ग अपना इलाज करा सकता है और वह भी बिना पैसे के, लेकिन इसका चौतरफा दोहन हो रहा है। फैक्टरी क्षेत्र में अस्पताल जो भी है वह भी प्राइवेट है और अनावश्यक इलाज दिखाकर लाखों रूप्ये हर महीने डकार रहें है।जो बिमारी नही है उसे भी दिखाकर इलाज में पैसा खर्च हुआ ऐसा बताते है।
इस मामले में देखा जाय हर प्राइवेट अस्पताल में ईएसआई के कार्ड पर इलाज होने को प्राथमिकता मिलने लगी है।मरीज उनके पास आता है और अगर उसे सरदर्द है तो सीटी स्कैन व अल्ट्रासाउंड कराना आम बात है और हजारों रूप्ये की दवा दे देंगे ताकि उसे सरकार से वसूला जा सके लेकिन ईएसआई विभाग के कर्मचारी यह नही पूछेंगें सरदर्द था तो अल्टासाउंड की क्या जरूरत है। वह भी एकाध मामले में हो सकता है सभी मामले में कैसे तो उसका जबाब है बिल नही दक्षिणा बोलती है । हर अस्पताल की दक्षिणा इस विभाग में तय है बिल जायेगा और पास होकर खाते में पैसे चले जायेगें।
दूसरी बात यह है कि मामूली दिक्कत जिसमें भर्ती करने की जरूरत नही है फिर भी आबर्जरवेशन में रखेगें और यह कहकर तीन चार बोतल ग्लूकोज की बोतल चढा देगें और दिक्कत पैदा करने वाले ईलाज शुरू कर देगें । आदमी को ठीक होने में चार पांच दिन लग जायेगें।इस दौरान अस्पताल की सारी मशीने उपयोग में आ जायेगी और सारे टेस्ट भी हो जायेगें। जिस बीमारी का ईलाज हजार पांच सौ रूप्ये में हो जाना चाहिये था । उसे ईएसआई कार्ड होने पर प्राइवेट अस्पताल वाले पचास पचपन हजार का बना देते है।यही कारण है एक प्राइवेट अस्पताल वाला हर साल एक नया अस्पताल खोल लेता है।
तीसरी बात यह है कि इन प्राइवेट अस्पतालों में जो दवा डाक्टर द्वारा लिखी जाती है वह उन्ही के अस्पताल में बने दवाखाना में ही मिलती है जिसमें से 90 प्रतिशत दवायें फर्जी होती है जो कि किसी ब्राडेड कंपनी की नही होती है।दूसरी बात यह कि बडे दामों की दवा इसलिये इस दवाखाने में रखी जाती है ताकि मरीज को यह पता लगे कि महंगी दवायें है इलाज नही जबकि इन दवाओं पर अस्पतालों को 50प्रतिशत कमीशन मिलता है और कभी कभी साठ प्रतिशत ।या यूं कह लीजिये कि फर्जी दवा की कम्पनी प्राइवेट अस्पतालों की वजह से चल रही है या अस्पताल उसमें पार्टनर है।
सबसे खास बात यह है कि ईएसआई कार्ड सरकार ने इलाज आसानी स ेहो इसलिये दिया था लेकिन मौत के सौदागर डाक्टरों ने इसे व्यवसायिक बना दिया।इस अस्पताल में आठवी पास कम्पाउडर कभी कभी अंगूठा छाप भी हो सकता । इंटरपास डाक्टर और हाईस्कूल पास प्रशासनिक अधिकारी होता है । इनको प्राथमिक उपचार सिखा दिया जाता है और यह काम पर लग जाते है अगर मामला गंभीर हुआ तो ही डाक्टर आते है, नही तो सारा इन्ही के जिम्मे होता है। सुबह सुबह डाक्टर आते है चैम्बर में आते है फीस लेते है मरीज देखते है और चले जाते है लोगों को लगता है कि बडे डाक्टर बैठते है इलाज ठीक से हो जायेगा लेकिन वह ढाक के तीन पात के बीच में फंसकर रह जाते है।
सरकार को ईएसआई की सुविधा सरकारी अस्पतालों में दी जाय ऐसी व्यवस्था करनी चाहिये और प्राइवेट अस्पतालों से किनारा करना चाहिये । इसका कारण यह है कि यह प्राइवेट अस्पताल इस कार्ड पर आये मरीजों के नाम से सरकार को प्रति मरीज कम ये कम 25हजार रूप्ये का चूना लगा रहे है। फालतू मशीनें लगाकर लोगों को मुर्ख बना रहें है । जिस चीज की आवश्यकता नही है उसका भी टेस्ट कर रहें है और रिपोर्ट दाखिल कर ईएसआई विभाग की मिली भगत से लाखों प्रति माह डकार कर , हर साल एक नया अस्पताल खोल रहें है।