पाकिस्तानी जासूसों के भारत में फैलते संजाल

19842891पाकिस्तान का जन्म जिन्ना के द्विराष्ट्रवाद सिद्धान्त के आधार पर हुआ था। पाकिस्तान के निर्माण का आधार ही इस्लाम धर्म था। 17वीं और 18वीं शताब्दी में क्रमशः इंग्लैण्ड और फ्रांस की क्रान्तियाँ इतिहास के पन्नों में अपना स्थान बना चुकी थीं। इन क्रान्तियों का प्रमुख कारण धर्म (चर्च) का शासन में सर्वोपरि स्थान होना था। चर्च का शासन में इतना अधिक दखल था कि शासन व्यवस्था केवल मुट्ठी भर लोगों के हितों का साधन मात्र बनकर रह गयी थी। अन्ततः जनक्रान्ति ने इसे अस्वीकार करते हुए सत्ता को उखाड़ फेंकने का संकल्प किया और उसके पश्चात ही लोककल्याणकारी शासन की स्थापना सम्भव हो सकी। किन्तु पाकिस्तान के निर्माण का स्वप्न देखने वालों को इतिहास से सीखने की आवश्यकता नहीं महसूस हुई और जिस व्यवस्था को विश्व नकार चुका था उसे बीसवीं शताब्दी में पाकिस्तान के निर्माण का आधार बनाया गया। तात्पर्य यह है कि परिवेश के अनुसार इस्लाम को प्रगतिशील बनाने के स्थान पर उसे लगातार पीछे धकेलने के प्रयास किये गये। आज जबकि विश्व तेजी से प्रगति के पथ पर अग्रसर है, पाकिस्तान के कुछ निहित स्वार्थी और सत्तालोलुप सत्रहवीं शताब्दी की शासन व्यवस्था को अपनाये रखने के लिए प्रतिबद्ध हैं, इसके लिए यदि पाकिस्तान की जनता को बलिवेदी पर चढ़ाना पड़े तो उससे भी उन्हें गुरेज नहीं। हाफिज सईद और मसूद अजहर जैसे दकियानूसी और स्वयं को इस्लाम का अनुयायी बताने वाले स्वयं तो विलासिताओं में लिप्त हैं तथा सत्रहवीं शताब्दी के पादरियों की भाँति जनता का शोषण कर सत्ता में अपने स्थापित प्रभाव को छोड़ना नहीं चाहते। आतंक के पर्याय बने ये दानव आज पाकिस्तान की सत्ता को नियन्त्रित कर रहे हैं और पाकिस्तान की सरकार इन्हीं के दिशा-निर्देशों पर चल रही है। ऐसे लोगों की उपस्थिति के कारण ही आज भारत ही नहीं अपितु विश्व में अशान्ति का वातावरण व्याप्त है।

इस प्रकार जिस देश में धार्मिक नियमों के आधार पर सत्ता निर्धारित हो वह देश न तो स्वयं शान्त रह सकता है और न अपने पड़ोस में शान्ति सहन कर सकता है। यही कारण है कि पाकिस्तान भारत को अशान्त करने के सतत प्रयास करता रहा है और अपनी रक्त पिपासा को शान्त करने के लिए जब वह प्रत्यक्ष युद्ध में स्वयं को अक्षम पाता है तो सेना की सहायता से आतंकवादियों को भारत में भेजकर जघन्य कृत्यों को अंजाम देता रहा है। अपनी निरन्तर विध्वंसकारी प्रवृत्ति के कारण भारत स्थित अपने दूतावासों में जासूसों को राजनयिकों के आवरण में लपेटकर भेजता रहा है। महमूद अख्तर इसी का एक उदाहरण है जिसे हाल ही में आईबी की सूचना के आधार पर दिल्ली पुलिस ने सबूतों के साथ गिरफ्तार किया और उसकी निशानदेही पर रमजान और जहाँगीर नाम के दो अन्य पाकिस्तानी जासूसों को भी गिरफ्तार किया। पाकिस्तान का यह षड्यन्त्र कोई नवीन नहीं है किन्तु उरी और पठानकोट हमलों में पाकिस्तानी हाथ होने के ठोस प्रमाण सौंपने के कारण पाकिस्तान बौखला गया। भारतीय सेना के सर्जिकल आपरेशन के पश्चात उसके सेनाप्रमुख और आईएसआई की रही-सही प्रतिष्ठा भी उसके देशवासियों की दृष्टि में धूमिल हो गयी। अब पाकिस्तान के हुक्मरान उसी प्रतिष्ठा को वापस पाने की युक्ति में वैश्विक आचार-संहिताओं का उल्लंघन करने से भी परहेज नहीं कर रहे हैं। भारतीय जवान मनदीप सिंह की हत्या कर उसके शव के साथ छेड़खानी इसका स्पष्ट उदाहरण है। इसलिए इस प्रसंग में पाकिस्तानी जासूसों की हरकतों को अनदेखा नहीं किया जा सकता है।

जम्मू-कश्मीर के सांबा सेक्टर में पाकिस्तान का एक जासूस गिरफ्तार किया गया। उसके पास दो पाकिस्तानी सिम कार्ड और मैप मिला जिसमें सेना की तैनाती को दिखाया गया।

नवम्बर 2015 में दिल्ली पुलिस ने बीएसएफ की इंटेलीजेंस विंग में तैनात एक हेड कांस्टेबल और जम्मू-कश्मीर पुलिस के पूर्व जवान को पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी के लिए जासूसी करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया और एक ही सप्ताह के भीतर 6 आईएसआई एजेंटों की गिरफ्तारी की गयी। कैफेतुल्लाह और अब्दुल रशीद नामक कश्मीर निवासी जासूस पाकिस्तान को खुफिया जानकारी देने के कार्य करते थे और ये आपस में रिश्तेदार भी थे। ये दोनों पाकिस्तानी दूतावास के सम्पर्क में भी थे।

वर्ष 2013-16 के बीच की अवधि में ही 46 पाकिस्तानी एजेंटों को भारत में गिरफ्तार किया गया। वर्ष 2015 में 27 नवम्बर को मोहम्मद ऐजाज उर्फ मोहम्मद कलाम को मेरठ कैंट रेलवे स्टेशन से, 29 नवम्बर को इरशाद अन्सारी और उसका पुत्र अशफाक अंसारी तथा उसके रिश्तेदार जहांगीर को कोलकाता से, बीएसएफ के हेडकांस्टेबल अब्दुल रशीद को जम्मू-कश्मीर से तथा जम्मू के राजौरी जिले के एक विद्यालय के लाइब्रेरियन कैफेतुल्लाह खान को जम्मू-कश्मीर से, 2 दिसम्बर को कोलकाता पुलिस की एसटीएफ ने कोलकाता के ब्रेबोर्न रोड स्थित क्षेत्रीय पासपोर्ट कार्यालय के निकट से एक पाकिस्तानी जासूस को, 4 दिसम्बर को सेना के एक हवलदार मुनव्वर अहमद मीर को, 26 नवम्बर से 6 दिसम्बर के बीच पाँच व्यक्तियों को पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी से, 28 दिसम्बर को वायुसेना में कार्यरत रंजीत केके को पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई के लिए कार्य करने और खुफिया सूचनाएँ पहुँचाने के आरोप में गिरफ्तार किया गया। अक्टूबर 2016 में बोधराज नाम के एक पाकिस्तानी जासूस को सांबा सेक्टर से गिरफ्तार किया गया।

पाकिस्तान की ओर से भारत में अशान्ति फैलाने के प्रयास भिन्न-भिन्न तरीकों से किये जाते रहे हैं। इसमें केवल पाकिस्तान के नागरिक ही नहीं बल्कि जेहाद के नाम पर भारतीय सैन्यबलों के कर्मचारियों को भी प्रलोभन देकर उनसे जासूसी करवाने के प्रयास किये गये हैं। ये जासूस आईएसआई को विविध प्रकार की खुफिया जानकारी देकर भारत में बम विस्फोट, सैनिकों के अड्डों पर आक्रमण और निरीह जनता का निर्मम संहार करने की पृष्ठभूमि तैयार करते हैं।

अपने प्रत्येक प्रयासों को निरन्तर असफल होता हुआ देखकर पाकिस्तान अमानवीय कृत्यों पर उतारू हो गया है। यद्यपि हमारे वीर जवान अब इनके समस्त अभियान नेस्तनाबूद करते जा रहे हैं किन्तु हमारी सरकार को अब और अधिक सतर्क होने और इनसे सख्ती से निपटने की आवश्यकता है। हमारे सैनिकों के बीच में छिपे उन राष्ट्रद्रोहियों की तलाश का भी अभियान तेज करना होगा जिनके कारण हमारे सैनिकों के प्राण संकट में पड़ जाते हैं। देश में पाकिस्तान के लिए काम करने वाले ऐसे जासूस भी हैं जिन्होंने अवैध ढंग से भारत की नागरिकता ले ली है और वे पिछले अनेक वर्षों से यहां इस प्रकार रह रहे हैं जैसे आम भारतीय रहते हैं। उनकी पहचान के लिए भी कोई ठोस उपाय करने होंगे और उन्हें कोई अप्रिय घटना घटित होने से पूर्व ही निष्क्रिय करना होगा। इसके साथ ही साथ हमारे सुयोग्य प्रतिपक्षी नेताओं को भी आतंकवादियों के विरुद्ध सरकार द्वारा उठाये जा रहे कदमों पर अनावश्यक प्रश्नचिह्न खड़े करने की प्रवृत्ति का त्याग करना होगा तभी हम वास्तव में आतंक के विरुद्ध सार्थक संघर्ष में सफल हो पायेंगे। उन्हें इसका ध्यान रखना होगा कि वे यदि इन प्रयासों की सराहना न कर पायें तो उन्हें अपनी बौद्धिक क्षमता प्रदर्शित करने के अनेक अन्य प्रसंग उपलब्ध हो जायेंगे और उनकी प्रतिभा पर कोई प्रश्नचिह्न नहीं खड़ा करेगा, किन्तु अपनी बौद्धिकता का प्रदर्शन करने के लिए उन दुर्दान्त आतंकवादियों के प्रति सहानुभूति न प्रदर्शित करें।

हमें खतरा मात्र इन शरीरधारी जासूसों से ही नहीं है बल्कि हमारी सुरक्षा व्यवस्था में कम्प्यूटर के माध्यम से सेंध लगाने वाले पाकिस्तानी साइबर हैकरों से भी है। हमारे सुरक्षा तन्त्र में इन पाकिस्तानी हैकरों के निरन्तर आक्रमण हो रहे हैं। चीन भी भारत के सुरक्षा तन्त्र में अपने हैकरों की सहायता से आक्रमण करता रहा है। अतः हमें अपनी साइबर सुरक्षा के लिए भी एक सक्षम टीम तैयार करने की आवश्यकता है ताकि हम अपने शत्रुओं द्वारा किये गये प्रत्येक साइबर हमलों का उचित प्रत्युत्तर दे सकें।

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