पारस्परिक कलुष की होली जलाकर राष्ट्रप्रेम के गुलाल उड़ायें

होली का यह पर्व अनेक दृष्टियों से विशिष्ट है। पंजाब, गोआ, उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड और मणिपुर राज्यों की विधानसभा चुनावों के परिणाम होली के पूर्व ही घोषित हो जाने हैं। नयी व्यवस्थाओं से युक्त सरकारों का गठन होगा। यद्यपि इसी बीच लखनऊ में आतंकवादी सैफुल्ला की उपस्थिति सामाजिक व्यवस्थाओं पर प्रश्नचिह्न आरोपित करने वाली है। इस सन्दर्भ में अभी तक अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता को दर्शाने वाली महापुरुषों की सूक्तियों का रसपान करने का अवसर नहीं प्राप्त हुआ है। राष्ट्रहित से समझौता करने वाले महापुरुषों को अपनी खोखली सहिष्णुता की परिभाषा का शायद अब भी अनुभव नहीं हुआ होगा। हमारे सैनिकों पर घात लगाकर पीछे से आक्रमण करने वाले जिन देशद्रोहियों को काल-कवलित किया गया उनके समर्थन में अपनी सम्पूर्ण शक्ति से आवाज बुलन्द करने वाले लोगों को अब यह समझ लेना चाहिए कि उनके इन्हीं प्रश्रय का लाभ उठाकर वे आतंकवादी अब हमारे बीच तक पहुँच चुके हैं। सराहनीय है हमारे देश का गुप्तचर विभाग एवं हमारे आतंकरोधी दस्ते जिनकी तत्परता से एक वीभत्स दुर्घटना होते-होते रह गयी। और यदि यह आतंकवादी अपने लक्ष्य में सफल हो जाता तो हमारी यह होली गुलाल और रंग के स्थान पर मानव रक्त से खेली जाती।

जो भी हो, विधानसभा चुनावों के पश्चात सरकार जो भी बने, उसे राष्ट्रहित के विषयों पर गम्भीर होना ही होगा। वैयक्तिक स्वार्थों से ऊपर उठकर देश के विकास और प्रगति पर ध्यान केन्द्रित करना अपरिहार्य है। देश को जाति-पाँति, धर्म, सम्प्रदाय, क्षेत्रवाद से ऊपर उठाकर देश के समस्त नागरिकों के साथ समानता का व्यवहार करने वाले उपायों पर चिन्तन करना होगा। आज हमारा देश विश्व की तीव्रतम वृद्धिकारी अर्थव्यवस्था के पथ पर अग्रसर है। विश्व के समस्त विकसित देश आज भारत की की इस प्रगति और उसकी बढ़ती शक्ति से प्रभावित हैं और भारत की प्रशंसा कर रहे हैं। उन्हें भारत से मित्रता की प्रबल आकांक्षा है। दूसरे शब्दों में कहें तो उन्हें भारत वैश्विक अर्थव्यवस्था के एक नये उभरते हुए केन्द्र के रूप में दिखाई दे रहा है। अतः राज्य सरकारों को भी देश के सर्वांगीण विकास और प्रगति के लिए केन्द्र सरकार से उचित समन्वय स्थापित करना होगा। केन्द्र सरकार की राष्ट्रहित की नीतियों के साथ अनुरूपता लानी होगी। स्वार्थों से परे होकर केन्द्र सरकार के साथ मिलकर राष्ट्रविरोधी तत्वों की मुखर आलोचना करनी होगी।

नीतियों की आलोचना करने के स्थान पर उसकी समालोचना की प्रवृत्ति विकसित करना सभी राजनीतिक दलों का उद्देश्य होना चाहिए। हम देश को प्रतिभावान, सकारात्मक सोच रखने वाले और प्रगतिशील राजनेता प्रदान कर सकें तो हमारे लोकतन्त्र को स्थायित्व मिलेगा। राजनीतिक दलों को पुनर्विचार करना होगा कि यह उनका दायित्व है कि मात्र चुनाव में विजयी होना ही लक्ष्य न बनायें, उन्हें यह सोचना होगा कि वे अपने दल में अपराधियों, भ्रष्टाचारियों, बलात्कारियों और समाजविरोधी कृत्यों में संलग्न लोगों को स्थान न दें। प्रत्येक राजनीतिक दल अपने क्रियाकलापों में शुचिता और पारदर्शिता लाने का प्रयास करें जो केवल शाब्दिक नहीं अपितु साकार दिखाई पड़े। अपनी आवश्यकतानुसार आतंकवाद, भ्रष्टाचार और राष्ट्रद्रोह को विभिन्न रूपों में परिभाषित न करें क्योंकि देश की जनता अब पर्याप्त जागरूक हो चुकी है और उसे इन तथ्यों का ज्ञान हो चुका है। जो लोग इन कुत्सित कृत्यों को अपनी-अपनी शैली में उचित ठहराने का प्रयास करेंगे उससे देश दिशाहीनता की स्थिति में पहुँचेगा और इससे जनसामान्य का ही नहीं अपितु राजनीतिक दलों का अस्तित्व भी खतरे में पड़ेगा।

आइए, होली के इस महापर्व पर हम समस्त प्रकार के पारस्परिक कलुषों को राष्ट्रप्रेम की ज्वाला रूपी होलिका में दहन करने के लिए कृतसंकल्प हों। अब हम विभिन्न जाति, धर्म, सम्प्रदाय, क्षेत्र और सांस्कृतिक विविधता रूपी बहुरंगी भारतीयता के गुलाल से सम्पूर्ण भारत को एक ही रंग में आवेष्टित कर दें ताकि सम्पूर्ण भारत इन विविधों रंगों में रंगकर एकाकार प्रतीत हो और कहीं भी किसी भी हृदय में वैमनस्य, प्रतिकार और प्रतिशोध का भाव शेष न रह जाये।

One thought on “पारस्परिक कलुष की होली जलाकर राष्ट्रप्रेम के गुलाल उड़ायें

  1. संजयभाई, आप पर्दे के पीछे रह कर भी जनता के भले के लिए बहुत कुछ कर सकते हैं. ऐसी ढेरों सामान्य समस्याएँ हैं, कि जनता को जिनका सरकारी कार्यालयों में आज भी सामना करना पड़ रहा है. बावज़ूद इसके कि प्रधानमंत्री के स्तर पर आज का प्रशासन जनता की समस्याओं को ले कर बेहद ही गंभीर दिखाई देता है, इस कार्य का 130 करोड़ के देश में मात्र प्रधानमंत्री कार्यालय से क्रियान्वित किया जाना लगभग असंभव-सा है. तथा प्रधानमंत्री के मातहत कार्य करने वाले अधिकतर मंत्रालयों एवं भाजपा के अनेकों-अनेक सांसदों में वो उत्साह या संवेदनशीलता कदापि दिखाई नहीं देती, कि जो अपने ‘कोज़ी-स्पेस’/ आरामदेह जीवन के बाहर निकल कर जनता के भले के लिए कोई भी विशेष प्रयास करने के लिए आवश्यक हो. आपको चाहिए, कि पंद्रह-बीस सांसदों को पार्टी की अनुमति लेते हुए जनता की ज्वलंत दैनिक अडचनों पर कार्य करने तथा मोदी सरकार की सुशासन वाली नीतियों में और अधिक ऊर्जा भरने के लिए तैयार करने का भगीरथ प्रयास करें.

    उदाहरण स्वरूप, आइडेंटिटी तथा ऐड्रेस प्रूफ़ जैसे अनेकों ऐसे दस्तावेज़ हैं, कि जो विभिन्न सरकारी या निजी संस्थानों द्वारा विभिन्न फ़ॉर्मैट्स में ज़ारी किए जाते रहे हैं. आवश्यकता है, सरकारी एवं निजी संस्थानों (बैंकिंग सेक्टर को शामिल करते हुए) में उपयोग में आने वाले ऐसे विभिन्न दस्तावेज़ों में एक सामान्य मापदंड अपनाए जाने की, ताकि हर नए कार्य के लिए एक नया दस्तावेज़ बनवाने के पीछे सामान्य आदमी को भागना न पड़े. साथ ही पान कार्ड, आधार कार्ड एवं इलेक्शन आईडी कार्ड जैसे दस्तावेज़ों में होने वाले सरकारी ढीलेपन में भी ख़ासा सुधार किए जाने की आवश्यकता है. अक्सर पहले तो सरकारी विभाग गलतियों से भरे हुए दस्तावेज़ों को ही ज़ारी किया करते हैं, फ़िर उन गलतियों को सुधारने में ही अपना एक बड़ा वक्त और ज़ाया करते हैं. इन विभागों के तौर तरीकों में थोड़े से प्रयत्नों के द्वारा भी ढेरों ‘मैन-ऑवर्स’ एवं सरकारी राशि का संचय किया जा सकता है. तथा साथ ही जनता के द्वारा झेली जाने वाली मुश्किलों से भी उसको आसानी से निज़ात दिलाई जा सकती है.

    और ये तो एक छोटा-सा ही नमूना है. ऐसी और न जाने कितनी ही जनता के जीवन में आने वाली विभिन्न सामान्य दुविधाओं का निराकरण थोड़ी-सी राजनीतिक सूझ-बूझ के द्वारा किया जा सकता है. बस इसके लिए आवश्यकता है बिना थके सक्रियता से कार्य करने वाले थोड़े से राजनीतिक चिंतकों एवं सेवकों मात्र की.

Leave a Reply