प्रयाग अर्ध कुंभ एवं वैभव प्रदर्शन


प्रयाग की पावन भूमि पर अर्ध कुंभ का आयोजन पूरे समाज के नैतिक, चारित्रिक, आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और धार्मिक उत्कर्ष हेतु चल रहा है।अनेक नामी गिरामी संतों के कैंप, (आवासीय परिसर) प्रवचन पंडाल, पूजा एवं अन्य परिसर अत्यंत विस्तृत, अत्याधुनिक सुख सुविधा के सभी सम्भव और उपलब्ध उपकरणों से संपन्न है। वैभव प्रदर्शन की होड़ इस अध्यात्मिक आयोजन की प्राचीन मान्यता एवं मानदंडों से व्यतिक्रम उत्पन्न करती है।”सत्यं वद धर्मम् चर”, “तने त्यक्तेन” या “मा भुञ्जीथा कश्चिदधनम्” के उपनिषदीय उद्घोष  के मान वर्धन की आशा क्षीर्ण ही है। हमारे संत अतीत में उत्कृष्ट मानदण्डों से भी श्रेष्ठ रहनी (जीवन शैली) का दर्शन श्रद्धालुओं को कराते रहे हैं।वे अपने ज्ञान, विज्ञान और चरित्र से समाज का मान वर्धन और मार्गदर्शन करते रहे हैं। 

संत हमारे समाज के उत्कृष्ट मार्गदर्शक, उपदेशक और उपदेशित  आचरण के श्रेष्ठ अनुकरण कर्ता स्वयं भी रहे हैं।  अपने आचरण के द्वारा वे समाज को उत्कृष्ट मार्गदर्शन सदैव देते रहे हैं।अर्ध कुंभ प्रवास के दौरान समाज की विकृतियों के संबंध में चर्चा के दौरान एक तपस्वी संत ने बताया कि ऋग्वेद के पुरुष सूक्त में ब्राह्मण को समाज का मुंह कहा गया है। मुंह (सिर) सारे शरीर का समुचित पोषण, मार्गदर्शन और संरक्षण करता है। उनके अनुसार ब्राह्मण समाज का उचित निर्देशन एवं मार्गदर्शन प्रकारांतर से पोषण ( भौतिक, नैतिक  एवं आध्यात्मिक) करने से च्युत हो गया। ब्राह्मण अपने श्रेष्ठ एवं आदर्श आचरण को छोड़कर पतित हो गया। इसीलिए समाज में सर्वत्र तीव्र पतन हुआ है। उनके अनुसार जिस दिन ब्राह्मण अपनी गरिमा, गौरव, आदर्श, और शास्त्रोक्त मानदंडों के अनुरूप अपनी रहनी (जीवन शैली) बना लेगा उस दिन ना केवल ब्राह्मण स्वयं अपितु समाज भी धीरे-धीरे सही दिशा में आ जाएगा। 

परंतु इतने दिन के कल्पवास के बाद अनेक विज्ञों से विचार-विमर्श के बाद मुझे ऐसा लगता है कि ब्राह्मण का भी मार्गदर्शन ऋषि, मुनि, वीतरागी, उत्कट वैरागी, हरि भक्त, तत्वज्ञानी संत ही करते रहे हैं। गड़बड़ी मेरी दृष्टि में एक स्तर और ऊपर अधिक हुई है। इसीलिए हमारे चिंतक, ऋषि, मुनि अनेक क्षुद्र वृत्तियों में लिप्त होकर समाज का उचित मार्गदर्शन नहीं कर पा रहे हैं।

समाज की विपुल धनराशि व्यय के पश्चात आयोजित होने वाले अर्ध कुंभ जैसे विशाल आयोजन का समाज के सभी वर्गों को अपेक्षित आध्यात्मिक, नैतिक, धार्मिक, शैक्षिक, चारित्रिक, उन्नयन और चिंतन की दिशा परिवर्तन में योगदान न्यून ही नजर आता है। यह आयोजन अपने मूल स्वरुप से मुझे तो भटका हुआ लग रहा है। यह आयोजन मेला, झमेला, तमाशा अधिक लग रहा है।जिसमें दर्शन (philosophy) के बजाय प्रदर्शन पर सारा जोर है। 

सामान्यतः अब इस आयोजन को पूरे देश के लिए एक उत्कृष्ट सांस्कृतिक , धार्मिक, आध्यात्मिक उन्नयन का मार्गदर्शक तो अनेक श्रेष्ठ संत ( जिनकी श्रेष्ठता का मापक भौतिक वैभव न होकर साधना,तप, वैराग्य और ज्ञान  है) भी नहीं मानते है।

सभी बड़े एवं संरक्षण प्राप्त गुरुओं के पंडाल अत्यंत वैभव पूर्ण तरीके से बनाए और सजाए गए हैं। धार्मिक पंडालों में आध्यात्मिक वैभव के साथ सांसारिक वैभव का प्रदर्शन एवं लक्ष्मी देवी की अद्भुत उपस्थिति का एहसास सामान्य रूप से भी ही हो जाता है। 

एक संत के पंडाल की यहां आए सभी लोगों में चर्चा है। पंडाल की संरचना इतनी वैभव पूर्ण और अद्भुत है कि इसकी लागत का अंदाजा सहज लगाया जाना असंभव ही है। फिर भी कुछ विज्ञ जन इस पंडाल को 16 करोड़, कुछ लोग 30 करोड़ की लागत से तैयार किया गया बताते हैं। जिज्ञासा वस मैंने भी उस पंडाल के कुछ अंश का दर्शन किया जो निश्चित रूप से माया नगरी के किसी बड़े बजट की पिक्चर का बड़ा सेट जैसा लगता है। कारीगरी अद्भुत है। जितनी प्रशंसा की जाए वह कम है। परंतु अध्यात्मिक, धार्मिक आयोजन में महालक्ष्मी की कृपा का प्रदर्शन अनायास ही अनेक प्रश्न उत्पन्न करता है। 

निश्चय ही आयोजकों को इन प्रश्नों से शायद ही कोई लेना-देना हो। शाही स्नान के दौरान त्यागी- विरागी महात्माओं की शोभा यात्रा का वैभव ही परंपरागत है। वही परंपरा मान्य भी है। संतों के पंडालों की चमक दमक मेले में आई गरीब, कमजोर और निरीह जनता के ज्ञान चक्षु आध्यात्मिक रूप से भले ना खोल पाए परंतु सांसारिक रूप से इसके वैभव से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकते हैं। शायद उन पर त्याग पूर्वक जीवन जीने के उपदेश भी अपेक्षित प्रभाव ना डाल पाएं। क्योंकि कानों के सुने की अपेक्षा आंखों की देखी का असर सामान्यतः अधिक पड़ता है।

One thought on “प्रयाग अर्ध कुंभ एवं वैभव प्रदर्शन

  1. शत प्रतिशत सत्य गुरुजी. समाज को मार्गदर्शन देने वाला मार्गदर्शक मंडल ही अपने मार्ग से भटक गया है

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