ब्रिटिशों ने देश को आजाद किया लेकिन दो टुकड़े करके। पाकिस्तान से हजारों निर्वासित हिंदू देश में आये। उनका रोष , पीड़, आंक्रंदन असह्य था। जगह जगह मुस्लिम आतताई दंगे कर रहे थे। स्वतंत्रता प्राप्ति के साथ ही स्वयं को स्वतंत्र मान लेनेवाली 562 रियासतें थीं। भारत का नक्शा ब्रिटिश शासन में खींचा गया था, उसकी 40 प्रतिशत भूमि इन 562 देशी राजाओं के पास थी। यदि उन 562 रियासतों को उनकी सीमाएं मिटाकर स्वतंत्र भारत का एक हिस्सा नहीं बना दिया गया होता तो स्वतंत्रता प्राप्ति एक उपहास ही था। देशी रियासतों के साथ मंत्रणा करके इस समस्या को सुलझाने के लिए ही रियासती मंत्रालय की रचना की गयी और सरदार पटेल ने उस कार्य को बखूबी निभाया।
15 अगस्त 1947 के दिन हम जिसे अखंड हिन्दुस्थान कहते थे, वह देश दो भूखंडो में विभाजित हो गया। भारत और पाकिस्तान। भारत जो स्वतंत्र हुआ उसके सामने अनेक कठिन समस्यायें मुंह बाये खड़ी थी। स्वतंत्र कही जाने वाली 562 रियासतें थी, वे भारत के साथ , पाकिस्तान के साथ या स्वतंत्र देश इस नाते से अस्तित्व बनाये रखने के लिए स्वतंत्र थीं। पाकिस्तान का निर्माण लाखों लोगों के कत्ले और पलायन के साथ हुआ। इंदौर , उज्जैन के बीच बड़प्पन की अद्भुत खींचतान थी। त्रावड़कोर एवं कोचीन के राजा के बीच बोल-चाल का भी संबंध नहीं था। जामनगर के निजाम साहब जिन्ना के साथ स्वतंत्र अस्तित्व बनाए रखने को राजी थे। भोपाल, हैदराबाद, जूनागढ़ स्वतंत्र होना चाहते थे। करोड़ों निर्वासित लोग भारत में चारों ओर फैल गए थे और साम्प्रदायिक दंगां ने देश को ज्वालायुक्त कर दिया था। इन सबको देश के साथ कुशलता से मिलाने का बहुत बड़ा कार्य सरदार पटेल जी ने किया।
कश्मीर विषयक प्रश्न पर श्री नेहरू और पटेल के विचारों में भिन्नता थी। कश्मीर मसले पर संयुक्त राष्ट्र को मध्यस्थ बनाने के सवाल पर पटेल नेहरू का कड़ा विरोध किया था तथा कश्मीर में जनमत संग्रह तथा इस मुद्दे को श्री नेहरू द्वारा संयुक्त राष्ट्र संघ में ले जाने पर वे बेहद क्षुब्ध थे। सरदार पटेल काश्मीर समस्या को सरदर्द मानते हुए इसे भारत और पाकिस्तान के बीच द्विपक्षीय आधार पर मामले को निपटाना चाहते थे। इस मसले पर विदेशी हस्तक्षेप के वे खिलाफ थे। इसलिए इस कश्मीर के विषय को पंडित नेहरू ने स्वयं अपने अधिकार में लिया हुआ था। जिसका खामियाजा देश आज भी भुगत रहा है।
1950 में ही गोवा की स्वतंत्रता के संबंध में चली दो घंटे की कैबिनेट बैठक में लम्बी वार्ता सुनने के पश्चात सरदार पटेल ने केवल इतना कहा, ’’क्या हम गोवा जायंगे, केवल दो घंटे की बात है।’ नेहरू इससे बड़े नाराज हुए थे। यदि पटेल की बात मानी गयी होती तो 1961 तक गोवा, दीव, दमण, सेल्वास की स्वतंत्रता की प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ती।
लक्षदीप समूह को भारत के साथ मिलाने में भी पटेल की महत्वपूर्ण भूमिका थी। इस क्षेत्र के लोग देश की मुख्यधारा से कटे हुए थे और उन्हें भारत की आजादी की जानकारी कई दिनों बाद मिली। पटेल को लगता था कि मुस्लिम बहुल होने के कारण इस पर पाकिस्तान दावा कर सकता है। इसलिए ऐसी किसी भी स्थिति को टालने के लिए पटेल ने लक्ष्यद्वीप में राष्ट्रीय ध्वज फहराने के लिए भारतीय नौसेना का एक जहाज भेजा। इसके कुछ घंटों बाद ही पाकिस्तानी नौसेना के जहाज के जहाज लक्षद्वीप के पास मंडराते देखे गए लेकिन वहां भारत का झंडा लहराते देख उन्हें वापस कराची लौटना पड़ा।
हैदराबाद की रियासत के विलीनीकरण को लेकर सरदार पटेल ने सैनिक कार्यवाही की इस कार्यवाही के पक्ष में पंडित नेहरू नहीं थे जबकि सरदार पटेल कार्यवाही जल्दी होने के पक्ष में थे।
जूनागढ़ का विलय
जूनागढ़ में सरदार पटेल ने सैनिक कार्यवाही की वहां का नवाब विमान से पाकिस्तान भाग गया। जूनागढ़ के दीवान ने भारत में जूनागढ़ के विलय की घोषणा की। राजकोट स्थित भारत सरकार के प्रादेशिक आयुक्त ने दिल्ली यह जानकारी दी। तुरंत प्रधानमंत्री श्री नेहरू ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के लिए संदेश लिखा कि भारत सरकार जूनागढ़ की प्रजा से जनमत प्राप्त कर लेगी और इसके बारे में यदि पाकिस्तान चाहेगा तो मंत्रणा भी करेंगे। सरदार पटेल के स्वीय सेवक ने जब सरदार को यह जानकारी आधी रात को दी कि प्रधानमंत्री ने पाकिस्तान को जूनागढ़ के बारे में ऐसा तार भेजा है तो सरदार ने कहा इतना धन्यवाद देना चाहिए कि संयुक्त राष्ट्र नहीं ले गये। जूनागढ़ के कारोबार की समुचित व्यवस्था करने हेतु चार दिन बाद 13 नवम्बर 1947 को सरदार जूनागढ़ के दौरे पर गये। बहाउद्दीन कॉलेज के विशाल मैदान में एकत्र हजारों लोगों से उन्होंने कहा कि- ’’भारत सरकार आपकी इच्छा को अंतिम मानती है। मैं आपसे पूछ रहा हूँ कि आपको भारत के साथ रहना है या पाकिस्तान के साथ? ’’ खचाखच भरे मैदान में हजारों हाथ ऊपर उठे और चारों दिशाओं लबालब भर देनेवाला घोष उठा – ’’हिन्दुस्थान, हिन्दुस्थान।’’
सम्राट अशोक जो कि प्रतापी और बड़े साम्राज्य के राजा माने जाते रहे उनके शासन का क्षेत्रफल लगभग पचास लाख वर्ग किलोमीटर था। गुप्त साम्राज्य का अधिकतम क्षेत्रफल पैंतीस लाख वर्ग किलोमीटर रहा आज वल्लभभाई पटेल के प्रयासों के कारण जो भूभाग आज भारत कहलाता है उसका कुल क्षेत्रफल बत्तीस लाख सत्तासी हजार दो सौ चौसइ वर्ग किलोमीटर है। उनके प्रयासों के कारण ही पौने दस लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल को साढ़े पांच सौ से अधिक देशी राज्यों के भारतीय संघ के उक्त उल्लिखत आंकड़े में विलय किया जा सका वह भी अल्पावधि में कुशल रणनीति, दृढ़निश्चय और स्पष्ट विचार के साथ।
यदि हैदराबाद , काश्मीर और एक दो छोटी रियासतों को छोड़ दे ंतो सरदार पटेल के नेतृत्व में हुयी विलय प्रक्रिया का मार्ग सौहार्द-सहयोग -समझौते और समन्वय का रहा। इसलिए वह विश्वभर के लिए अनुकरणीय आदर्शमय बना। उन्होंने शक्ति आधारित या हिंसाजन्य कूटनीति या कार्यपद्धति को नहीं अपनाया। उनकी कार्यपद्धति का मूलाधार में सर्वसमावेशक या हिन्दुत्वयुक्त भारतीय दृष्टिकोण था।
प्रिवी पर्स
राजे रजवाड़े सदियों से राज्यों पर अधिकार मांगते थे। उनकी आर्थिक व्यवस्था बरकारार रहे , उनमें अन्याय की भावना न आवें इसलिए राज्यों की वार्षिक आमदनी पर आधारित प्रिवी पर्स की रकम राजाओं के लिए अलग-अलग रूप से निश्चित की गयी। श्री जवाहरलाल नेहरू ने देश स्वंतत्रता के बाद ही घोषणा की थी कि राजा या जमींदारों का कोई अस्तित्व नहीं रहेगा, उनको कोई अलग आर्थिक सहायता नहीं दी जायेगी। इससे अनेक राजाओं के मन में उस समय क्षोभ और संशय पैदा हो गया। आखिरकार सरदार पटेल ने प्रधानमंत्री को समझाकर फिर शुरू किया। उस समय यह रकम करीब 5.5 करोड़ रूपये सालाना होती थी और 5 लाख वर्गमील के क्षेत्र के विभिन्न राजाओं के लिए सोची थी। इन रियासतों के कोष एवं सालाना आमदनी का हिसाब लगाएं तो वह रकम काफी मामूली थी। तब सरदार ने सोचा कि प्रिवी पर्स यह व्यवहार न रहे तो राजाओं के देश में विलय के त्याग के स्वीकार -स्वरूप दी जानेवाली दक्षिणा है। और इसलिए उसे एक सौदे के रूप में नहीं बल्कि पवित्र कर्तव्य के रूप में इसे संविधान में ही शामिल कर देना चाहिए। आनेवाली कोई सरकार अपनी सुविधानुसार प्रिवीपर्स में रद्दोबदल करके वचनभ्रष्ट न हो जाए, इसलिए सरदार ने प्रिवीपर्स चुकता करने विषयक मुद्दा संविधान में शामिल करवा दिया। परंतु सरदार जिसे ’सौजन्य’ एवं हमारा पवित्र कर्तव्य मानते थे उस प्रिवीपर्स को जवाहरलाल जी की पुत्री श्रीमती इंदिरागांधी ने 25 वर्ष बाद समाप्त कर दिया। मैली राजनीति, तत्कालीन तुच्छ लाभ हेतु सरदार की सोच के साथ उनकी मृत्यु के पश्चात् भी खिलवाड़ किया गया।
सुन्दर व सारगर्भित लेख। पूर्णतया तथ्यपरक।