क्या मुस्लिम समाज में औरतें किसी की बहन बेटी व मां नही होती या फिर पुरूष इंसान नही होता। अगर एसा है तो भारत में तो क्या विश्व के किसी भी मुल्क में यह संभव नही है। अपने पर बीतने के बाद भी कुरीतियों को मानने की विवशता भारत में नही हो सकती । इसे खत्म करने की जरूरत इसलिये भी है कि गलती से निकलने वाला तलाक और पुनः अपनी पत्नी को प्राप्त करने की इच्छा के बीच हलाला इंसान को ताउम्र इसलिये परेशान करता रहता है कि उसकी बीबी उसके अलावा किसी और के साथ हमबिस्तर होकर पुनः उसे मिली है। यह सजा हो सकती है लेकिन बीबी का क्या कसूर जो पति की गलती के कारण भुगतती है।
वैसे यह मामला सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है और वह कहती है कि अगर कुरान में शरीयत के अंदर तीन तलाक या हलाला लिखा है तो उसमें वह कुछ नही कर सकता , इस पर अब सवाल उठने लगा है । बात यही खत्म हो जाती तो ठीक था लेकिन अब नया सवाल यह आता है कि क्या सुप्रीम कोर्ट सिर्फ कुरान को मानेगा , गीता ,बाइबिल व गुरूग्रन्थ साहब को नही? सवाल यह भी है कि क्या यह ग्रंथ देश से बढ़कर है जिसे मानने की बाध्यता हो? भारतीय महिलाओं से बढकर है जिसके कारण उनका दमन व वेश्यावृत्ति होने दिया जाय। समान कानून हर भारतीय महिला के लिये नही है।तलाक व जीने के नियम समान क्यूँ सवाल यह भी है कश्मीर में मुस्लिम के मरने पर दहाड मारकर रोने वाला तथाकथित मानवाधिकार वाले क्यों चुप है? क्या महिलाअेां के लिये भारत में बने मूल अधिकार गौण है?
गौरतलब हो कि विश्व के दो तिहाई मुस्लिम देशों में तलाक व हलाला को शरीयत का हिस्सा मानने से रोक दिया गया है और वहां मुस्लिम कानून में भी औरतें खुश है । जहां यह कानून सख्ती से लागू किया गया वहां उसका विरोध किया गया और अब भारत व चीन जो कि विश्व के कम्रशः पहले व दूसरे जनसंख्या वाले देश है वहां विरोध हो रहा है।चीन ने कई मस्जिदें तोड दी , अजान में बजने वाले स्पीकर पर रोक लगा दी , बुर्का बंद कर दिया और एक कानून समान रूप् से देश में बना दिया लेकिन भारत अभी भी शांति पूर्वक राह खोज रहा है इसलिये मुसलमानों को चाहिये कि अपनी विचार धारा में परिवर्तन लाये और अपनी बहनों व महिलाओं को सुरक्षा प्रदान करें। देश की मुख्यघारा में शामिल हो ।
सरकार को चाहिये कि वह अपने ऐजेंडे में इसे शामिल करे और मुस्लिम महिलाओं को सुरक्षा प्रदान करे।साथ ही जो इससे प्रभावित है उसे मुख्य धारा में लाने के लिये स्टार्टअप इंडिया में वरीयता दे, स्किल बनाये और काम दिलाये ताकि वह अपने आश्रितों का भरण पोषण कर सके।उनके बच्चों के लिये मुफ्त शिक्षा और भोजन की व्यवस्था सुचारू रूप् से करे और स्वास्थ्य सेवायें प्रदान करे लेकिन यह तभी करे जब तीन तलाक पर पूर्णतया प्रतिबंध हो और हलाला को विस्मृत कर दिया जाय , साथ ही महिलाओं के लिये समान कानून बनाया जाय जो अन्य धर्माे के लिये है। नही तो इस तरह का लाभ लेने के लिये शरीयत में तलाक देना लाजिमी बता दिया जायेगा ताकि ज्यादा से ज्यादा सरकारी लाभ लिया जा सके।
केन्द्र सरकार को तीन तलाक वाले मामले पर जागरूकता अभियान चलाना चाहिये और हलाला का रिवाज खत्म करना चाहिये , बातचीत न हो तो जबरदस्ती इस पर रोक लगानी चाहिये । इस काम के पक्ष में कुछ मुसलमान है लेकिन देश का दो तिहाई मुसलमान इसके खिलाफ है , युवा वर्ग तो कतई नही चाहता कि यह रिवाज अब आगे चले और इसके लिये वह कुछ भी करने को तैयार है कुछ बुजुर्ग मुसलमान है जो कि हवसी है और धार्मिक जामा पहन कर इसे बढाना चाहते है उनके खिलाफ कारवाई की आवश्यकता है ।सुप्रीम कोर्ट से कुछ नही होता सरकार को पूर्ण बहुमत है वह कानून बना सकती है और उसे अमल में लाने के लिये सुप्रीम कोर्ट को मजबूर कर सकती है।वह यह क्यों नही समझती कि मुस्लिम महिलाओं के वोट से भी सरकारें बनती है ।