उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव को लेकर सियासी दलों के बीच शह-मात का खेल जारी है। सूबे में इस बार बीजेपी ही नहीं बल्कि सपा से लेकर बसपा और कांग्रेस तक मुस्लिम बहुल लोकसभा सीटों पर मुस्लिम प्रत्याशी को उतारने से बच रहे हैं।मुस्लिमों की जगह हिंदू कार्ड खेल रही है।
यूपी में मुस्लिम आबादी भले ही 20 फीसदी हो, लेकिन पश्चिमी यूपी में 26 से 50 फीसदी तक है।मुस्लिम वोटर 26 लोकसभा सीटों पर अहम भूमिका अदा करते हैं, जिसमें ज्यादातर सीटें पश्चिमी यूपी और रुहेलखंड क्षेत्र की हैं। यूपी के मेरठ, बिजनौर, मुजफ्फरनगर, मुरादाबाद, कैराना, संभल, बरेली, बदायूं, गाजीपुर, श्रावस्ती, गोंडा, आजमगढ, फिरोजाबाद, लखनऊ, लखीमपुर खीरी, धौहरारा (शाहाबाद), बागपत, प्रतापगढ़, सीतापुर, देवरिया, डुमरियागंज, सुल्तानपुर, संत कबीर नगर, उन्नाव, रामपुर और सीतापुर लोकसभा सीट पर मुस्लिम समुदाय के नेता चुनाव लड़ते रहे हैं। इन सीटों पर कभी न कभी मुस्लिम समुदाय के सांसद रहे हैं हालांकि, इस बार राजनीतिक दल मुस्लिम समुदाय के प्रत्याशी को उतारने से बच रहे हैं, जिसमें कई सीटों तो ऐसी हैं, जहां पर 37 से 40 फीसदी तक मुस्लिम है।
मेरठ लोकसभा सीट पर बीजेपी ने अरुण गोविल को उतारा है तो सपा ने भानू प्रताप सिंह और बसपा ने देववृत त्यागी को उतारा है. इस तरह तीनों प्रमुख पार्टियों से हिंदू कैंडिडेट है जबकि इससे पहले सपा और बसपा मुस्लिम कैंडिडेट उतारते रहे हैं. मुस्लिम सांसद भी रहे हैं और 2019 में बसपा के याकूब कुरैशी बहुत मामूली वोट से हार गए थे. यहां पर 37 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम वोटर है, उसके बाद भी किसी भी राजनीतिक दल ने मुस्लिम प्रत्याशी पर दांव नहीं खेला।इसीतरह बिजनौर लोकसभा सीट पर 40 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम मतदाता हैं, लेकिन किसी भी दल ने इस बार किसी मुसलमान को टिकट नहीं दिया है। सपा ने दीपक सैनी, आरएलडी ने चंदन चौहान और बसपा ने चौधरी बिजेंद्र सिंह को कैंडिडेट बनाया है। 2019 चुनाव में कांग्रेस से नसीमुद्दीन सिद्दीकी और 2014 में सपा से शाहनवाज राणा और आरएलडी से शाहिद सिद्दीकी चुनाव लड़े थे।अब्दुल लतीफ गांधी यहां से सांसद रह चुके हैं।मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट पर बीजेपी ने संजीव बालियान, सपा ने हरेंद्र मलिक और बसपा ने दारा सिंह प्रजापति को प्रत्याशी बनाया है. इस तरह से तीनों ही प्रमुख पार्टियों में से किसी ने भी मुस्लिम को टिकट नहीं दिया जबकि यहां पर करीब 34 फीसदी मुस्लिम वोटर्स हैं।
बागपत सीट पर सभी दलों ने हिंदू प्रत्याशी उतारे हैं, जिसमें बसपा से प्रवीण बंसल, आरएलडी ने राजकुमार सांगवान और सपा ने मनोज चौधरी चुनाव मैदान में है में करीब 26 फीसदी मुस्लिम है। इसके बाद भी किसी भी दल ने मुस्लिम पर दांव नहीं खेला।बरेली लोकसभा सीट पर 30 फीसदी के करीब मुस्लिम मतदाता है. बीजेपी ने छत्रपाल गंगवार, सपा ने प्रवीण ऐरन को उम्मीदवार बनाया है। खीरी सीट पर बसपा और बीजेपी ने मुस्लिम के बजाय हिंदू प्रत्याशी पर दांव खेला है. 2009 में जफर अली नकवी सांसद रह चुके हैं।फर्रुखा बाद लोकसभा सीट पर तीन बार मुस्लिम सांसद रहे चुके हैं। कांग्रेस के दिग्गज नेता सलमान खुर्शीद दो बार सांसद रहे हैं और उससे पहले उनके पिता जीते हैं। इसके बावजूद किसी भी दल ने किसी मुस्लिम को टिकट नहीं दिया।
श्रावस्ती लोकसभा सीट पर करीब 40 फीसदी के करीब मुस्लिम वोटर हैं, लेकिन किसी भी दल ने कोई टिकट नहीं दिया।श्रावस्ती सीट पहले बलरामपुर के नाम से जानी जाती है, जहां से रिजवान जहीर और फसीउर्रहमान सांसद रह चुके हैं। आजमगढ़ लोकसभा सीट पर मुस्लिम समुदाय 27 फीसदी है और यहां से अकबर अहमद डंपी दो बार सांसद रहे हैं।इस बार सपा और बीजेपी दोनों ने यादव कैंडिडेट दिए हैं। फिरोजाबाद, लखनऊ, धौहरारा (शाहाबाद), प्रतापगढ़, सीतापुर और देवरिया सहित डुमरियागंज व सुल्तानपुर सीट पर मुस्लिम चुनाव लड़ते रहे हैं, लेकिन इस बार कोई दल मुस्लिम चेहरे पर दांव खेलने से बच रहे है।
उत्तर प्रदेश की सियासत में मुस्लिम वोटर सात लोकसभा सीट पर 40 फीसदी से भी ज्यादा है. इन्हीं सात में से छह जगह पर मुस्लिम सांसद 2019 में चुने गए थे।2014 में एक भी मुस्लिम सांसद नहीं चुना गया था।आजादी के बाद पहली बार यह था, जब कोई मुस्लिम चुनाव नहीं जीत सका है।मुस्लिम मतदाता लंबे समय तक उत्तर प्रदेश में किंगमेकर की भूमिका अदा करते रहे हैं, लेकिन वक्त के साथ सियासत ने ऐसी करवट ली कि राजनीति अल्पसंख्यक से हटकर बहुसंख्यक समुदाय के इर्द-गिर्द सिमट गई। यही वजह है कि बसपा से लेकर कांग्रेस और सपा तक किसी मुस्लिम कैंडिडेट पर दांव खेलने से बच रही है।