रामचरितमानस पर विवाद क्यों?

दरअसल आजकल लोग घनघोर जातिवाद के चलते चौपाई और श्लोकों के गलत अर्थ निकालने लगे हैं।उसके संदर्भ को काटकर वे उसके भाव को नहीं पकड़ते हैं बल्कि गलत व्याख्या करते हैं। कुछ दलों में कुछ नेता आ गए हैं जिन्होंने उसकी अस्मिता पर सवाल उठाएं है।

ब्राह्मणों द्वारा संचालित प्राचीन काल के गुरुकुल में हर जाति और संप्रदाय का व्यक्ति पढ़कर उच्च बनता था।वेदों को लिखने वाले ब्राह्मण नहीं थे।वाल्मीकि रामायण किसी ब्राह्मण ने नहीं लिखी।महाभारत और पुराण लिखने वाले वेद व्यास जी निषाद कन्या माता सत्यवती के पुत्र थे। श्री रामचरितमानस हिंदुओं के लिए सिर्फ धार्मिक ग्रंथ ही नहीं अपितु जीवनदर्शन है और संस्कारों से जुड़ा हुआ है।मानस कोई पुस्तक नहीं अपितु मनुष्य के चरित्र निर्माण का जीता जागता विश्वविद्यालय है और लोगों के कार्य,व्यवहार में इसे स्पष्ट देखा जा सकता है।जब रामायण में प्रभु श्री राम के बारे में पढ़ते हैं और जो वर्तमान समाज में भगवान श्री राम को जातीय,राजनीति के आधार पर बांटते है तो दोनों में जमीन आसमान का अन्तर है।

श्रीराम जैसा कोई नहीं वह सबका हित चाहते थे।भरत के लिए आदर्श भाई,हनुमान के लिए स्वामी,प्रजा के लिए नीति-कुशल व न्यायप्रिय राजा, सुग्रीव व केवट के परम मित्र और आदर्श सेना को साथ लेकर चलने वाले व्यक्तित्व के रूप में भगवान श्रीराम को पहचाना जाता है। उनके इन्हीं गुणों के कारण उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम के नाम से पूजा जाता है।आज यदि हम अपने अंदर झांक कर देखे कि क्या हमारे अंदर उनके जैसा एक गुण भी मौजूद है? नहीं, तो फिर हम उन्हें सिर्फ राजनीतिक मनसा को पूरा करने के लिए उनके नाम पर राजनीति क्यों करें?

हमारे प्रभु श्रीराम त्याग के प्रतिमूर्ति हैं क्या कोई अपना सर्व निछावर कर के दूसरो के हित चाहेगा?दुनिया मे ऐसा कोई इंसान नही जो उनकी जगह ले सके। इसलिये घिनौनी मनसा लेकर राजनीति करना बंद करें।।राम किसी विशेष जाति के लिए नहीं बने जो उन्हें निर्मल मन से भजता है,राम को वही प्रिय है। 

श्री रामचरित मानस पर विचार करने पर आप पाएंगे कि जो महाकवि अपने काव्य में कई उदात्त चरित्रों को गढ़ता है उसके मन में भला क्षुद्र विचार कैसे आ सकते हैं?जो अपने नायक को भीलों को गले लगाना,शबरी के जूठे बेर खाना ही नहीं, तिरस्कृत स्त्री अहिल्या को सम्मान दिलाने जैसे प्रसंग लिखता है,वह तुलसीदास शूद्रों और स्त्री के विरोधी शब्दों को कैसे लिख सकता है? जिसने खुद तत्कालीन ब्राह्मण समाज का बहिष्कार किया और भाषाई स्तर पर विद्रोह किया वह सिर्फ ब्राह्मणों का ऐसा समर्थक कैसे हो सकता है। उनकी मंशा तो सभी के प्रति स्नेह और सद्भाव की ही रही होगी।श्री रामचरितमानस केवल एक महाकाव्य ही नहीं भारतीय समाज के द्वारा सर्वाधिक पढ़ा जाने वाला ग्रंथ भी है और आप किसी अनपढ़ व्यक्ति के मुंह से भी मानस की चौपाइयां सुन सकते हैं।कहने का तात्पर्य यह कि भारतीय जनमानस से रामचरितमानस को निकाला नहीं जा सकता। 

घर में उनकी उपस्थिति मात्र से शुभ संयोग बने रहते हैं।हर आस्तिक और नास्तिक सनातनी के घर में श्रीरामचरितमानस और श्रीमद् भागवत गीता होनी ही चाहिए।आस्था के लिए पढ़ें या ज्ञान ग्रहण करने के लिए।अपने अपने उपयोग हो सकते हैं। व्यवहार कुशलता,प्रबंधन, रणनीति,आपत्तिकाल में सूझबूझ से काम लेना,सामाजिक आचरण, धन प्रबंधन आदि बहुत कुछ सीखा जा सकता है हमारे इन महान ग्रंथों से।रही बात इन पवित्र ग्रंथों को लेकर मुख से मल विसर्जन करने वालों की तो उन्हें बिल्कुल महत्व मत दीजिए।ये अपने माता पिता की पूजनीयता पर भी प्रश्न उठा सकते हैं।ऐसे लोग कुतर्क कर सकते हैं कि माता पिता ने तो अपने वैवाहिक संबंध का निर्वाह किया,उन्हें पूजना क्यों और उनका चरण स्पर्श क्यों? जिस कालखंड में ग्रंथ रचे गए तब कैसे शब्द,भाषा शैली,जाति व्यवस्था प्रचलित थी इसका ज्ञान है क्या किसी को है? हम तो वो लोग हैं जो रावण से भी ज्ञान ग्रहण करने में हिचकते नहीं। 

श्रीरामचरितमानस भारत की परंपराओं ‌का‌ निचोड़ ‌है। श्रीरामचरित मानस स्वयं ‌मे भारत है।  ‌‌यह देश,आज श्रीराम चरित मानस को‌ नहीं समझ पा‌ रहा है। शबरी,भील,‌केवट,अहिल्या,को नहीं समझ पा रहा है।नहीं समझ पा रहा है कि जिन्हें हम वानरों और रीछों की‌ सेना कहते हैं,वो इस देश की आदिवासी परंपरा रही है।जिन्हें हम वंचित मान बैठे हैं,वो ही तो भगवान श्री राम जी की लड़ाई के असली योद्धा, असली नायक रहे ‌हैं। मानस स्वयं में सार है।हर दोहा, छंद,और चौपाई इस राष्ट्र की अनुपम, अतुल्य,सर्व समाहित जीवंत परंपरा का द्योतक ‌है। मानस का अपमान स्वयं ‌मे भारत का‌ अपमान ‌है।इससे बड़ा राष्ट्रद्रोह हो ही नहीं सकता है।सकल सनातनी समाज,सरकार,जन-जन को‌ उठना होगा।अपनी कापुरुषता, अपनी नपुंसकता छोड़,छुद्र राजनीतिक स्वार्थ,हानि-लाभ  त्याग,आग की तरह धधकना होगा।श्री रामचरित मानस की लाज न रख पाने वाला समाज, धर्म,सरकार और हम,कल अपनी मां,अपनी बहन,अपनी बेटी, अपनी आत्मा का भी सम्मान खो देंगे।

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