प्रचंड से प्रचंड उम्मीद

prachandदक्षिण एशियाई भूपरिवेष्टित हिमालयी देश नेपाल। संसार का सबसे ऊँची 14 हिम श्रृंखलाओं में से 8 नेपाल में है जिसमें संसार का सर्वोच्च शिखर एवरेस्ट भी एक है।
बौद्ध पंथ निर्माता सिद्धार्थ गौतम का जन्म नेपाल के लुम्बिनी में हुआ था। नेपाल की संस्कृति भारत एवं तिब्बत से मिलती जुलती है। नेपाली सामाजिक जीवन की मान्यता, विश्वास और संस्कृति हिन्दू भावना में आधारित धार्मिक सहिष्णुता और जातिगत सहिष्णुता का आपस में अन्योन्याश्रित संबंध है। नेपाल की अपनी मौलिक संस्कृति है। रामायण की सीता का जन्म नेपाल के जनकपूर में हुआ था। ये नगर प्राचीन काल में मिथिला की राजधानी माना जाता था। पशुपतिनाथ मंदिर नेपाल का सभी हिन्दू शिवभक्तों की आस्था का केन्द्र है। नेपाल को देवताओं का घर भी कहा जाता है।
भारत और नेपाल के बीच रिश्ते सांस्कृतिक तथा भावात्मक हैं। हिमालय की गोद में बसा यह नेपाल प्राचीन काल से ही भारत के साथ आध्यात्मिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक बंधनों से जुड़ा हुआ है। पहले नेपाल में राजशाही थी। 21वीं शताब्दी में यह विश्व मानचित्र पर एक धर्मनिरपेक्ष व लोकतंत्रात्मक गणराज्य में अवतरित हुआ।
गत माह के 15 सित. से 18 सित. के बीच नेपाल के नवनिर्वाचित प्रधानमंत्री श्री पुष्प कमल दहल प्रचंड भारत के चार दिवसीय दौरे पर आये थे। वे आनेवाले 9 माह तक प्रधानमंत्री रहेंगे पश्चात नेपाली काँग्रेस दल का प्रधानमंत्री होगा।
फिलहाल गत कई वर्षों से नेपाल राजनैतिक अस्थिरता के दौर से गुजर रहा है। कोई भी सरकार एक साल से अधिक नहीं रही 4 अगस्त 16 को माओवादी नेता पुष्पकमल दहल उर्फ प्रचंड नेपाल के प्रधानमंत्री बने उसके पूर्व 9 माह चली श्री ओली की सरकार 24 जुलाई 16 को अल्पमत में आयी थी।
भारत के प्रधानमंत्री मोदी ने प्रचंड को ’’नेपाल में शांति की प्रेरक शक्ति’’ करार दिया। प्रचंड ने माओवादी विचारधारा अपनाकर कुछ दशक पूर्व नेपाल में राजशाही व्यवस्था उखाड़ फेकने के लिए हिंसा का रास्ता अपनाया था। भारत के प्रधानमंत्री ने विश्वास व्यक्त किया कि प्रचंड के नेतृत्व में नेपाल अपने विविध समाज के सभी वर्गों की आकाक्षाएँ पूरी करते हुए समावेशी बातचीत के जरिए सफलतापूर्वक संविधान को लागू कर सकेगा।
पिछले समय जब आठ वर्ष पूर्व श्री पुष्प कमल जी प्रधानमंत्री बने तब पहली बार चीन दौरे पर गये थे चीन के साथ उस समय अनेक समझौते किये थे और अपना झुकाव चीन की ओर प्रदर्शित किया था। उसी समय उन्होंने 1950 की ’’नेपाल-भारत शांति एवं मैत्रीं संधि ’’ सहित विभिन्न संधियों एवं समझौतों की समीक्षा की मांग की थी। 2008 -2009 में 9 माह के लिए प्रचंड प्रधानमंत्री बने थे। ये कालखंड उनका विवादस्पद कार्यकाल रहा था। साधारणतः भारत-नेपाल सबंधो को देखकर परपंरागत रूप से नेपाल के प्रधानमंत्री विदेश दौरे पर जाने के लिए सर्वप्रथम भारत में आते रहे हैं। और प्रचंड ने चीन का रूख किया था। प्रचंड के कार्यकाल के दौरान कोसी में आयी बाढ़ से मची तबाही के दौरान वहाँ के बाढ़ प्रभावित लोगों की अनदेखी की गयी। देश के सेनापति और पशुपति नाथ मंदिर के प्रमुख पुजारी के पद पर अपनी विचारधारा के व्यक्ति को बिठाने के प्रयत्नों से भी विवाद हुआ था।
उन्होने उस समय चीन के साथ किये रेल समझौते में अंदर तक रेल लाईन बिछाने का करार किया, जिसमें नेपाल में स्थित भगवान बुद्व की जन्मस्थली लुंबिनी तक रेल लाईन डालना शामिल है। लेकिन इस बार वे प्रधानमंत्री बनने के बाद चीन जाने कि बजाय भारत आये। इससे आशा करनी चाहिए कि वे भारत के संबधों को महत्व देते हैं। वैचारिक दृष्टि से नेपाली काँग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टी आफ नेपाल (माआवोदी सेंटर ) – सी पी एन (एम सी ) भिन्नता रखते हैं।
नेपाल में 2015 में नया संविधान लागू होने की चर्चा के बाद भारत नेपाल दोनों देशों के बीच तनाव के चलते परस्पर संबंधों में ठहराव आ गया था।
जब नेपाल के प्रधानमंत्री के. पी. शर्मा ओली थे। संविधान निर्माण में प्रस्तावित -प्रावधानों के खिलाफ मधेसियों ने आंदोलन किया नाकेबंदी के कारण जब अनाज पेट्रोल का संकट उत्पन्न हुआ तो तत्कालिन प्रधानमंत्री ओली ने चीन की ओर रूख किया, चीन से सहायता मांगी। चीन ने अनुदान के रूप में 1000 मीट्रिक टन ईंधन की आपूर्ति करने की सहमति जतायी। इसी समय ओली ने चीन के साथ समझौते किए जिसमें सड़क और रेल यातायात साधनों की बाबत भी समझौतों पर हस्ताक्षर किए गये। इस कड़ी में तिब्बत क्षेत्र में सात नए व्यापारिक मार्ग खोले गए ताकि स्थानीय स्तर पर सीमा व्यापार सुगम हो सके। इस मुद्दे पर मधेसी प्रदर्शनकारियों से बातचीत नहीं करने के कारण नेपाल में श्री ओली की आलोचना की गयी। कुछ लोगों का यह भी कहना था कि घरेलू आंदोलनरत मुद्दे का उन्होंने अंतर्राष्ट्रीयकरण किया। कुछ लोगों ने ओली का समर्थन भी किया कि वे भारत के सामने उठ खड़े हुए।
मधेसी आंदोलन में नाकेबंदी हुयी जिससे रोजमर्रा की वस्तुओं की किल्लत हुयी। उस समय तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री के. पी. शर्मा ओली ने सारा दोष भारत पर मढ़ के वहाँ भारत विरोधी हवा को बढ़ावा दिय। ओली के प्रधानमंत्री कार्यकाल के दौरान भारत नेपाल में कड़वाहट आयी थी। नेपाल की राष्ट्रपति श्रीमती विद्या देवी भंडारी ने उस समय भारत दौरा भी रद्द किया था तथा भारत में नेपाली राजदूत दीपकुमार उपाध्याय की वापसी से भारत नेपाल संबधों में और भी गिरावट आयी थी ।
बाद में स्वयं प्रधानमंत्री ओली ने फरवरी 2016 में छः दिन भारत यात्रा कर मतभेद दूर करने का प्रयास किया था। लेकिन उनके वक्तव्य हमेशा भारत विरोधी टिप्पणी करनेवाले थे।
भारत तो हमेशा से नेपाल को एक पड़ोसी से ज्यादा अपने सहयोगी बंधु की तरह देखता है। प्रधानमंत्री श्री मोदी और प्रचंड के बीच दिल्ली स्थित हैदराबाद हाउस में समझौते हुए। भारत ने नेपाल की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने में हरस्ंाभव मदद करने का वचन दिया है। नेपाल को एक अरब डाॅलर की आर्थिक मदद देना, तराई परियोजना के तहत सड़क मार्ग बनाना और पावर ट्रांसमिशन लाईन बिछाना इसमें शामिल है। दोनों देशों के बीच हुए समझौते में भारत ने नेपाल के भूकंप पीड़ित इलाकों में तीन लाख घर बनाकर देने का वादा किया है। भारत ने पहले दो लाख घर बनाकर देने का वादा किया था लेकिन वह योजना गति नहीं पकड़ पायी थी जिसका कारण श्री ओली का अपनाया गया भारत विरोधी रवैया था। श्री प्रचंड के साथ समझौते पर दस्तखत करते समय भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने कहा कि नेपाल में भारत की मदद से जो भी परियोजनायें लगायी जायेंगी उन्हें भारत निर्धारित समय सीमा में पूरा करेगा।
मधेसी और तराई में बसे जनजातीय संविधान में अपनी भौगोलिक, जनसांख्यिकीय और सामाजिक दृष्टिकोण से उचित सहभाग चाहते हैं। साथ ही वे अपेक्षा रखते हैं कि उनकी समस्या में भारत उन्हें मदद करे। पिछले वर्ष स्वीकृत संविधान में मधेसियों और तराइयों के साथ अन्याय हुआ जिससे उनके वजूद और राजनीतिक सहभागिता दोनों को खतरा है यह नेपाल को समझना होगा। श्री ओली ने इस बात को नजरअंदाज ही नहीं किया बल्कि अड़ियल रूख भी अपनाया था।
भारत ने यह बात बार बार दोहरायी है कि हर तरह का फैसला नेपाल की जनता एवं वहां की निर्वाचित सरकार को ही करना है। प्रचंड ने शीघ्र ही मधेसियों और जनजातियों के साथ बातचीत का आश्वासन दिया है। लेकिन देखना होगा कि इसमें देरी न हो अन्यथा समस्या फिर विकराल रूप धारण करेगी। दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों ने उच्चस्तरीय बातचीत समय समय पर जारी रखने पर सहमति जताई है जो उचित है क्योंकि विश्वास, सौहार्द, अपनत्व के संबंधों की गति कुछ सालों में अवरूद्ध हुयी है या कहें तो इसमें कमी आयी है वो बहाल करनी होगी।
इसमें भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी बधाई के पात्र हैं क्योंकि सरकार के कूटनीतिक प्रयास की यह सफलता है कि प्रचंड के प्रथम कार्यकाल और दूसरे कार्यकाल में भारत के प्रति नजरिए में बदलाव आया है।
प्रधानमंत्री श्री मोदी की 2014 की नेपाल यात्रा और नेपाल में भूकंप के बाद भारत की सक्रिय और यथासंभव मदद ने नेपाल में एक नये भारत नेपाल संबंध प्रस्थापित किए हैं।
भारत और नेपाल के संबध पहले से ही भावनात्मक रहे थे। 1955 में नेपाल संयुक्त राष्ट्र का सदस्य बना उसको सदस्य बनाने में भारत की महत्वपूर्ण भूमिका थी। दोनों देश गुटनिरपेक्ष आंदोलन संयुक्त राष्ट्र संघ समूह -77 के सदस्य भी हैं।
नेपाल प्रधानमंत्री प्रचंड से पच्चीस सूत्री संयुक्त बयान पर हस्ताक्षर हुए। भारत दोनों देशों के बीच पाँच नई रेल परियोजनाएँ भी बिछायेगा। भारत ने भी चीनी चुनौती को स्वीकार करते हुए प्रचंड की भारत यात्रा के दौरान रेल संपर्क बढाने के लिए जयनगर से जनकपूर और जोगबनी से विराटनगर परियोजनाओं में तेजी लाने पर सहमति जताई है, बढ़नी से काठमांडो और कुशीनगर से कपिलवस्तु सहित एक अन्य रेल परियोजना शुरू करने पर भी सहमति बनी। यह बात अच्छा संकेत है। नेपाल में चीन के बढते प्रभाव को कम करने के लिए भारत ने कमर कसली है।
इस अवसर पर प्रधानमंत्री मोदी ने सदियों पुराने सांस्कृतिक, राजनीतिक, भौगोलिक रिश्तों को याद दिलाते हुए हरसंभव मदद का आश्वासन दिया है। प्रचंड ने नेपाल के विकास में भारत की भूमिका की सराहना की। भारत के प्रधानमंत्री ने कहा है नजदीकी पड़ोसी और दोस्ताना देश होने नाते नेपाल की स्थिरता समृद्धि और शांति हमारा साझा उद्वेश्य है। इस पर प्रचंड ने कहा कि हमारे मन में भारत के प्रति सद्भावना के सिवाय और कुछ नहीं है । और दोनों देश के भविष्य आपस में जुड़े हंै।
नेपाल की अर्थव्यवस्था काफी हद तक भारत पर निर्भर है। भारत में लगभग पचास लाख नेपाली नागरिक काम करते हैं। जहाँ से वे नेपाल में अपने परिवारों को अपनी आमदनी का हिस्सा भेजते हंै। नेपाल का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार भारत ही है। भारत नेपाल को औद्योगीकरण में भी सहयोग कर रहा है। वर्तमान में भारत नेपाल आर्थीक कार्यक्रम के तहत छोटी -बड़ी लगभग चार सौ परियोजनाएँ चल रही हैं।
प्रचंड ने स्पष्ट कर दिया है कि वे भारत के खिलाफ आतंकी गतिविधियों के लिए किसी को अपनी जमीन का इस्तेमाल नहीं करने देगें। उरी सैन्य अड्डे पर पाकिस्तानी आतंकवादियों ने जो हमला किया उसके पश्चात प्रस्तावित पाकिस्तान स्थित सार्क देशों की परिषद रद्द करने के भारत के कूटनीतिक कार्य को नेपाल का दिया समर्थन भारत नेपाल आतंकवाद विरोधी अभियान में प्रशंसनीय पहल रही है।
प्रधानमंत्री श्री मोदी ने जो कहा कि भारत नेपाल में चलनेवाली परियोजनाएं समय बद्ध तरीके से पूरा करेगा, यह चीनी वर्चस्व को देखते हुए आवश्यक भी है। भारत के लिए नेपाल सामरिक, रणनीतिक, जैव-विवधता, उर्जा, सुरक्षा व व्यापार की दृष्टि से महत्पूर्ण देश है।
अगले माह राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी नेपाल जायेंगे नेपाल के राष्ट्रपति भी आने वाले समय में भारत दौरे पर आयेंगे ये दो संभावित यात्राएँ भी दोनों देशों के रिश्तों को और उँचाई प्रदान करेंगी ।
फिलहाल प्रचंड के सामने प्रचंड चुनौतियाँ है- संविधान लागू करने में मधेसियों के प्रश्नों का निराकरण करना, माओवादी लड़ाकुओं को मुख्य धारा में लाने के संदर्भ में उनके उपर चलनेवाले अभियोगों का निपटारा, नये संविधान को लागू करना, नेपाल की खस्ता आर्थीक हालत को संवारना, भूकंप पीड़ित लोगों के पुनर्वास में चलने वाले ढीले कार्य को क्रियान्वित करना मुख्य हैं।
नेपाली काँग्रेस और प्रचंड के बीच समझौते में प्रचंड का कार्यकाल केवल मात्र 9 माह का रहेगा बाद नेपाली काँग्रेस के श्री शेर बहादुर देउबा प्रधानमंत्री बनेंगे।

नेपाल में चुनाव 2017 के अंत में होने वाले हैं। के.पी. ओली का कार्यकाल नेपाल को एकता में जोड़ने के बजाय विभाजन करनेवाल रहा। चीन के प्रधानमंत्री सी जिनपिंग अक्टूबर में नेपाल जा रहे हैं।
नेपाल और भारत दो देश हैं लेकिन संस्कृति से एक हैं। रोटी बेटी का संबध रहा है दोनों के बीच परंतु गत कुछ सालों से नेपाल में भारत के बारे में कड़वाहट और खटास पैदा करने की योजनाबद्व कोशिशें चल रही हैं। पाकिस्तान अपने मदरसों द्वारा, पेप के नेटवर्क द्वारा, ड्रग्स व नकली नोंटो द्वारा, नेपाल की ओर से भारत में घुसने का प्रयास हमेशा करता आया है। पश्चिमी देशों ने छहव के नेटवर्क के माध्यम से भारत विरोधी जहर घोलने का काम बखूबी किया है। माओवादी आंदोलनों को पीछे से चीन ने संचालित किया। चीन ने भी काफी प्रयत्नों से नेपाल में भागीदारी कर भारत विरोधी स्वर मजबूत किये है।
बढ़ता धर्मांतरण
पाश्चात्य देश तथा इस्लामिक देशों ने नेपाल में जाल बिछाकर बड़े पैमाने पर धर्मातांरण की गतिविधियों को अंजाम दिया है। विशेष कर हिन्दू, बौद्व इलाकों में ये अपनी योजना को क्रियान्वित कर रहे हैं। एक जानकारी के अनुसार करीब 30000, विभिन्न छळव् के माध्यम से ये कार्य चल रहा है।
भारत से दी जानेवाली सहायता का सही रूप से क्रियान्वित, उसका विश्लेषण और नियंत्रण होने की आवश्यकता है।
वर्तमान में श्री प्रचंड के दौरे का भारत नेपाल संबंधो को पुनः जीवित करने का सार्थक प्रयास अभिनंदनीय है।

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