यह अत्यंत महत्वपूर्ण है ! 2022 की भारतीय जनगणना उसके अंतिम चरण में है। जनगणना अधिकारी डेटा इकट्ठा करने जल्द ही आपके घर आएंगे। तब,आपकी मातृभाषा हिंदी/गुजराती/मराठी आदि जो भी हो उसे ध्यान में लिए बगैर, आप मातृभाषा के अतिरिक्त और कितनी भाषा जानते है? पूंछने पर इस बार आप सनातनी हिन्दू होने के नाते कृपा करके *संस्कृत* जानते हो बताना ना भूलें।
आपकी जानने वाली भाषाओं में से एक *संस्कृत* अवश्य लिखवाएं। भले ही आप *संस्कृत* भाषा व्यवहार में रोज़ ना बोलते हों। इसके पीछे का तर्क यह है कि हम हर दिन अपनी प्रार्थना, मंत्रोच्चार, श्लोक, संपूर्ण धार्मिक विधियां निश्चित रूप से *संस्कृत* भाषा में ही बोलते हैं। इस तरह देवों की भाषा *संस्कृत* का शुभ – अशुभ कार्यों में करते ही हैं। तो इस बार आप *संस्कृत* भाषा भी जानते हो यह जनगणना करनेवाले अधिकारी के पत्रक में अवश्य लिखवाएं।
आखिरी जनगणना के हिसाब से *संस्कृत* बोलने वालों की संख्या समग्र भारतवर्ष में दो-दो हजार ही बताई गई थी। उसके विपरीत *अरबी* और *फारसी* बोलने वालों की संख्या इससे अनेक अनेक गुणा अधिक थी। इस तरह उनको भाषा के विकास हेतु फंड दिया जाता है। अगर इस बार *संस्कृत* बोलने-जानने वालों की संख्या कम हुई तो *संस्कृत* भाषा को लुप्त भाषाओं की सूची में जोड़ दिया जाएगा। ऐसी संभावना प्रबल हो गई है।
*संस्कृत* तो भारतवर्ष की सबसे प्राचीन, सुंदर, दिव्य, भाषा है, इस दैवीय भाषा *संस्कृत* को जीवित रखने की संपूर्ण जिम्मेदारी इस बार हम सबकी है।
अगर *संस्कृत* को हमारी छोटी सी लापरवाही के कारण जनगणना अधिकारी ने *लुप्त* भाषा में गिन लिया तो इस *संस्कृत* भाषा के प्रचार-प्रसार और विकास के लिए सरकार की तरफ से निश्चित रूप से कोई फंड नहीं मिलेगा। और फिर हम *संस्कृत* को हमेशा के लिए खो देंगें। इसलिए इस बार जनगणना पत्रक में सतर्क रहकर *संस्कृत* का नाम अवश्य जोड़ें।
आपके सम्मिलित प्रयासों के कारण ही *संस्कृत* को जीवंत रखा जा सकेगा। यह सर्वविदित है कि हम सनातनियों ने स्वयं अपना नुकसान कर लिया है, परंतु इस नुकसान को फायदे में जरुर बदला जा सकता है, अभी देर नहीं हुई है। लुप्त होने की कगार पर पहुँच चुकी हमारी अपनी *संस्कृत* भाषा को बचा लो।