प्रयागराज के बाघ्मबरी मठ के अंदर एक लाश मिली, वहां के महंत नरेंद्र गिरि की थी ।जिन्हें सपा सरकार में वाई श्रेणी की सुरक्षा की और राज्यमंत्री का दर्जा था और भाजपा सरकार में भी वाई श्रेणी की सुरक्षा यथावत थी फिर भी उनकी हत्या हुई कि आत्महत्या यह बात अभी तक पता नहीं चल पाई। मामला शिष्यों के बीच उलझा पड़ा हुआ है, आनंद गिरि जी उनके प्रिय शिष्य थे और पहले उत्तराधिकारी थे उनको गिरफ्तार किया जा चुका है प्रयागराज के बांध पर स्थित हनुमान मंदिर के पुजारी विद्या तिवारी को गिरफ्तार किया जा चुका है और उनके बेटे संदीप तिवारी तिवारी को समझ में नहीं आता कि हत्या या आत्महत्या पुलिस परेशान है मीडिया परेशान है लोग परेशान हैं। सबसे खास बात यह है कि उनकी छवि जो अच्छी नहीं थी उसे भी लेकर के लोग परेशान है लेकिन सबसे बड़ी बात है कि दोपहर तक सारा माहौल ठीक था और शिष्यों के साथ भोजन किया और उसके बाद कमरे में गए और 4ः00 बजे तक कहा कि आराम करेंगे उसके बाद उनके फांसी पर लटकाए जाने की बात कही जा रही है फांसी पर किसने लटकाया या खुद वह लटके या कैसे हुआ यह प्रकरण अभी तक सबकुछ समझ के बाहर है क्योंकि जब दरवाजा खोला गया तब पंखा चल रहा था जिस पंखे से उनके लटके होने की बात कही जा रही है। रस्सी काट कर शव को प्रशासन ने नीचे उतारा और तब तक उनकी मौत हो चुकी थी। कुछ लोगों का कहना है कि संपत्ति विवाद को लेकर के यह सब कुछ हुआ कुछ लोगों का मानना है कि एक वीडियो है जिसमें एक लड़की का मामला है जिसको लेकर के उन्हें ब्लैकमेल किया जा रहा था। इस चीज को लेकर वह काफी परेशान थे जिसके कारण वह आत्महत्या कर सकते हैं।
अब बात नरेंद्र गिरी की, उज्जैन कुंभ की बैठक में नरेंद्र गिरी पहली बार अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष बने थे 2019 में उन्होंने प्रयागराज में महाकुंभ कराया और अंतरराष्ट्रीय स्तर का जमावड़ा हुआ था । इसके बाद हरिद्वार कुंभ के बाद अखाड़ा परिषद को भंग करते हुए बाघमबारी गद्दी में 7 अखाड़ों की मौजूदगी में परिषद का चुनाव कराया गया जिसमें निर्मल अखाड़े के सचिव श्री मालवीय महंत बलवंत सिंह को अध्यक्ष और आनंद अखाड़े के श्री महंत शंकराचार्य सरस्वती को महामंत्री चुना गया लेकिन हरिद्वार महाकुंभ में परिषद के अध्यक्ष रहे श्री महंत ज्ञान दास और मंत्री हरि गिरि इस चुनाव को लगातार अवैध मानते रहे। बलवंत सिंह की अध्यक्षता वाली परिषद 13 में से 7 अखाड़ों की मौजूदगी के कारण अपने होने का दावा करती रही। 2010 में मठ बाघमबारी गद्दी में अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद का चुनाव चुनाव के प्रतिनिधियों ने भारतीय अखाड़ा परिषद की नई कार्यकारिणी का गठन किया महानिर्वाणी अखाड़े के अध्यक्ष अध्यक्ष और पंचायती अखाड़ा उदासीन के महामंत्री चुना गया प्रत्येक पदाधिकारी के नाम के प्रस्ताव किया लेकिन कई प्रयासों के बावजूद वर्ष 2013 के बाद प्रयाग महाकुंभ में भी इस पर आम सहमति नहीं बन सकी तकरीबन 5 वर्षों की लंबी कवायद के बाद 14 मार्च 2015 को उदासीन अखाड़े के उज्जैन स्थित आश्रम में हुई बैठक में पंचायती अखाड़ा श्री निरंजनी के सचिव अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद का अध्यक्ष चुना गया। बड़ा उदासीन अखाड़े के उनके नाम का प्रस्ताव रखा जिसका प्रकाश पुरी ने समर्थन किया जूना अखाड़ा के महंत गिरी ने दोबारा महामंत्री चुना गया बैठक में जूना अखाड़े के सचिव आदि मौजूद थे।वैसे देखा जाए तो बाघमबारी गद्दी मटन बिरयानी खाने व अकूत धन संपदा अपवादों का पुराना रिश्ता रहा था और अखाड़े के सैकड़ों बीघा जमीन बेचन,े सेवादारों और उनके परिजनों के नाम मकान जमीन खरीदने को लेकर अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष नरेंद्र गिरी के करीबी आनंद गिरि के बीच लंबे समय से संघर्ष चल रहा है । ऐसे ही विवादों को लेकर निरंजनी अखाड़े के मत में दो महंतों की संदिग्ध मौत पहले भी हो चुकी है अब नरेंद्र गिरी की मौत को लेकर संपत्ति विवाद हर किसी का ध्यान खींचने लगा है।
कुछ दिनों पहले बाघमबारी गद्दी मठ की 80 फीट चौड़ी और 120 फीट लंबी गौशाला की भूमि लीज निरस्त किए जाने का मामला सामने आया था नरेंद्र गिरी के नाम लिख दी गई थी। इस जमीन पर पेट्रोल पंप स्थापित किया जाना था।उन्होनें कुछ दिन बाद ही निरस्त करा दी । महंत नरेंद्र गिरि ने तर्क दिया था कि उस जमीन पर माल बना दिया जाएगा तो मटकी आमदनी बढ़ेगी जबकि आनंद गिरि का कहना था कि गुरु जी ने उस जमीन को बेचने के लिए करोड़ों रुपए की कर रहें है। इस जमीन को लेकर गुरु शिष्य के बीच घमासान इस कदर मचा कि आनंद गिरि को मठ से निष्कासित कर दिया गया इसके बाद आनंद गिरि भागकर ं हरिद्वार गये।ं आनंद गिरि की ओर से बनवाए जा रहे आश्रम को सील कर दिया गया उनके सुरक्षा कार्ड वापस ले लिए गए थे और इससे पहले भी ₹40 करोड की 7 बीघा जमीन को लेकर विवाद था और रायबरेली में खड़े किए जाने को लेकर विवाद है।
योगी आनंद गिरि उनके विरोध में खड़ा हो गया था आनंद का कहना है कि उन्होंने फोन करके उनको बड़ोदरा से बुलाया और इस मामले का पटाक्षेप हो गया था इसी मामले को लेकर के नरेंद्र गिरी की हत्या की आशंका या आत्महत्या प्रकरण को लेकर के जो है आनंद गिरि को इस मामले में फंसाया गया है लोगों का कहना है कि आंनद गिरी उनकी हर बात को मानते लेकिन इन सारे प्रकरणों में सबसे बड़ी बात यह है कि बलवीर बलवीर गिरी जो है वह कहां से आए और कहां से उत्तराधिकारी बन गए सभी के बीच विवादों का विषय है। इस पूरे मामले में एक प्रकरण और है जो सबसे गंभीर है वह है आत्महत्या के लिए लिखे गए सुसाइड नोट का जिसको पुलिस अभी तक समझ नहीं पाई यह भी कहा जा रहा है कि ब्लैक मेलिंग से आहत महंत जी कहां कहां तक सफाई दूंगा आज के बाद ही पता चल पाएगा कि आखिर वह क्या मामला था फिलहाल मामले को सीबीआई को दे दिया गया है हो सकता है आने वाले दिनों में कुछ नए मामले सामने आए लेकिन अब जबकि नरेंद्र गिरी का सव भूमि समाधि हो चुकी है उसके बाद भी जो है विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है जहां तक ब्लैकमेलिंग की बात है तो आनंद गिरि उन्हें एक महिला के साथ बने वीडियो को लेकर के ब्लैकमेल कर रहे थे तो यह बात उन्हें कहनी चाहिए थी लेकिन न कहने की क्या वजह रही उन्होंने आत्महत्या का रास्ता क्यों चुना यह बात अभी तक समझ में नहीं आई ।
महेंद्र गिरी जैसे व्यक्तित्व ने एक वीडियो ब्लैक मेलिंग के डर से या पुलिस कार्रवाई को जांच हत्या का रास्ता क्यों चुना इस पर सवाल खड़े हो गए पुलिस इसकी जांच कर रही है महंत नरेंद्र गिरि ने अपनी पूरी पीड़ा एक नोट में लिखी है लेकिन यह सवाल खड़ा होता है कि नरेंद्र गिरी व्यक्तित्व जिस तरह से था उस तरह से हार मानने वालों में से नहीं थे चाहे 2004 में इलाहाबाद के तत्कालीन आईजी आरएन सिंह का प्रकरण हो या फिर 2012 में विधायक महेश नारायण सिंह से हुआ विवाद हो आशीष गिरी की मौत के बाद उन पर सीधे आरोप लगाए गए थे लेकिन नरेंद्र गिरी कहीं वह हमेशा लड़ते रहे सवाल यही है कि एक झूठे और एटीट्यूड वीडियो के कारण उन्होंने खुदकुशी का इतना बड़ा निर्णय ले लिया पुलिस के जांच का कहा जा रहा है कि उनका शव मिला है उस कमरे में सोते नहीं थे कमरे से अटैच बाथरूम का रास्ता बाहर निकलने का भी रास्ता था इसलिए वह हमेशा उस कमरे से परहेज करते थे हमेशा कहा करते थे कि आनंद मुझे परेशान कर रहा आनंद मुझे परेशान कर रहा है लेकिन सच बात है कि उन्हें परेशान नहीं कर रहा है उनके रास्ते का रोड़ा था जिसको लेकर वह हमेशा परेशान रहते थे।
सबसे खास बात यह है कि नरेंद्र गिरी एक प्रभावशाली आदमी थे मुख्यमंत्री पुलिस प्रशासन जिला प्रशासन आदमी उनकी बहुत अच्छी पैठ थी साथ ही वह महात्माओं मेंं भी बहुत अच्छी दखल रखते थे उनकी छवि भले ही गुंडागर्दी किस्म की रही हो लेकिन इसके साथ-साथ वह व्यावहारिक रूप से भी सहज थे लोगों के साथ साथ हुआ अपने विद्यार्थियों को काफी महत्व देते थे कोई काम लेकर के जाए तो उस काम को कराने की कोशिश करते थे। लेन-देन की बात से इंकार नहीं किया जा सकता लेकिन काम होता था प्रयागराज की शान कहे जाने वाले नरेंद्र गिरी अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष हैं और अब अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष कहां से होगा या नहीं कहा जा सकता लेकिन प्रयागराज से नहीं होगा, यह बात तो है फिलहाल मामला सीबीआई के दायरे में है सीबीआई क्या निर्णय लेती है आने वाला समय बताएगा लेकिन अखाड़ा परिषद के और भी लोगों को जिन्होंने इन्हें अखाड़ा परिषद का अध्यक्ष बनाया आपने में आपके चिंतन करना चाहिए और ऐसे लोगों से बचना चाहिए जो गुंडा किस्म के हो और बाबा बन के आए हो नरेंद्र गिरी ने कुछ दिनों पहले एक बिल्डर को महामंडलेश्वर मनाया था और कहा जाता है उसमें कई करोड़ों रुपए लिए थे और जिस समय उसे महामंडलेश्वर बनाया जा रहा था वह शराब पी कर के बैठा हुआ था जिसके कारण उनकी काफी फजीहत हुई थी अब जिसे संभालने के लिए कहा जा रहा है वह भी इसी तरह एक महिला के मामले में फंसे हुए आचार्य महामंडलेश्वर व जिस तरह बने हैं वही जानते हैं लेकिन अगर उनको बनाया गया या अखाड़ा परिषद ने उनको नियुक्त किया तो आने वाले समय में एक बहुत बड़ी मुसीबत अखाड़ा परिषद के लिए आने वाली है इसका एकमात्र कारण यह है कि भूमाफिया शराब माफिया बिल्डिंग माफिया और अन्य कई माफिया गिरी में फंसने के बाद जो लोग बाबा बनते हैं वह हिंदुत्व की छवि को खराब करते हैं।