अंदमान जेल की ओर

1910 में नासिक कलेक्टर कर्नल जैक्सन की हत्या का आरोप श्री अनंत कान्हेरे पर लगा और हत्या के लिए हथियार भेजने के लिए गिरफ्तार किया गया श्री विनायक सावरकर जी को। उन्हें इंग्लैंड में गिरफ्तार किया गया और कानूनी कार्यवाही हेतु पानी के जहाज से भारत भेजने की व्यवस्था की । इस यात्रा के दौरान फ्रांस के मार्सेाली बंदरगाह पर सावरकर पानी के जहाज से समुद्र में कूद गये और तैरकर तट पर पहुंचे। वह फ्रांस में राजनीतिक शरण चाहते थे लेकिन अपनी इच्छित जगह पहुंचने से पूर्व ही उनका पीछा कर रहे अंग्रेज सिपाहियों ने उन्हें पुनः गिरफ्तार कर लिया। भारत लाने के बाद उन्हें पुणे की यरवडा जेल में रखकर उन पर मुकद्मा चला और उन्हें दोहरे काले पानी की सजा सुनाई गयी। सजा सुनकर सावरकर हंस पड़े । सजा सुनाने वाले जज ने जब उनसे हंसने का कारण पूछा तो उन्होंने कहा कि तब तक आपका शासन रहेगा क्या?
24 दिसम्बर 1910 को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गयी और 04 जुलाई 1911 को अंदमान में तनहाई का प्रारंभ हुआ। कक्ष क्रं. 7 में एकांतवास, खड़ी बेड़ी, दंडाबेड़ी, तिरछी बेड़ी, कोल्हू चलाना ऐसी महाभयानक यातना में 10 साल की कैद बिताई।
कारावास में रहते हुए उन्होंने मतांतरण रोका, शिक्षा का प्रचार किया। उन्होंने 60 प्रतिशत कैदियों को साक्षर किया पहले यह प्रमाण 1 प्रतिशत था। उन्होंने जेल में पत्थर की दीवार पर बबूल के कांटों से न सिर्फ दो महाकाव्य लिखे बल्कि उन्हें वहां से छूटने वाले कैदियों को कंठस्थ करवाकर बाहर भी भिजवाए। ये महाकाव्य प्रकाशित भी हुए। जेल में रहते हुए और फिर बाहर आकर उन्होंने कई और भी ग्रंथ भी लिखे।
सावरकर का पूरा परिवार स्वतंत्रता समर में था। उनके भाई गणेश सावरकर भी उसी सेल्यूलर जेल में बंद थे जहां सावरकर कैद थे और दोनों की मुलाकात भी नहीं होती थी आजादी की लड़ाई के दौनान उनकी और उनके भाई की पत्नियां गर्भवती स्त्री का रूपधर के पेट में बम बांधकर एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाने का काम करती थीें।
गांधी हत्या के बाद जब सावरकर परिवार सहित अनेक परिवारों पर कहर टूटा तो आजाद भारत की पहली माॅब लिंचिंग में जान गंवाने वाले सावरकर के भाई नारायण सावरकर ही थे।
वह पहले भारतीय थे जिन पर हेग के अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में मुकद्मा चला।

  • भगत सिंह सावरकर के प्रशंसक थे और सुभाषचंद्र बोस भी सावरकर के प्रति असीम श्रद्धा रखते थे एवं स्वतंत्रता प्राप्ति की उनकी रणनीति से सहमत थे।
  • उनके बड़े बंधु बाबाराव सावरकर अंदमान जेल में थे। उन्हें पता चला कि उनके छोटे भाई भी वहां हैं। उन्होंने श्री विनायकराव को पत्थर में बंाधकर चिट्ठी भेजी ’’ मैं अंदमान में आया इसकी मुझे क्षति नहीं है, क्योंकि मुझे लगता था कि तू है- सब देख लेगा लेकिन अभी अपने पीछे अपने अंगीकृत कार्य का क्या होगा?’’
    मातृभूमि को दासता से छुड़ाने के अलावा कोई भी विचार इनको स्पश्र नहीं करता था। यह इस चिट्ठी से पता चलता है।
    अंदमान में 10 वर्ष की कड़ी सजा के बाद सेल्यूलर जेल से छोड़े जाने के बाद भी उन्हें और उनके भाई को पहले महाराष्ट्र की रत्नागिरी जेल मे कैद रखा गया, फिर इस निर्देश के साथ उन्हें रिहा किया गया कि वहां के जिलाधिकारी से पूछे बिना रत्नागिरी से बाहर नहीं जा सकेंगे। इसलिए रत्नागिरी में रहते हुए उन्होंने अपने समय का सदुपयोग किया।
    अंदमान जेल से बाहर आने के पश्चात
    विनायक सावरकर अंदमान से रत्नागिरी आये और 15 दिनों के अंदर रत्नागिरी में हिन्दू महासभा की शाखा शुरू हुयी।
    1937 तक रत्नागिरी में स्थानबद्धता में रहते हुए उन्होंने अनेक कार्य किए।
    ऽ स्कूल प्रारंभ किए।
    ऽ जातीयता/विषमता नष्ट करने हेतु सामूहिक भोजन, हलदी कुमकुम समारंभ करवाये।
    ऽ सारे समाज को लेकर होली खेलना, सत्यनारायण पूजा में सभी जातीयों को शामिल करना एवं झुणका – भाकर केन्द्र ।
    ऽ व्यायामशाला खोलना।
    ऽ अस्पृश्यों के साथ लेकर विट्ठल भगवान के मंदिर में प्रवेश करना।
    ऽ स्वदेशी वस्त्रों के लिए अभियान चलाना।
    ऽ दारूबंदी के जनजागरण करना।
    ऽ भाषाशुद्धि और लिपि सुधार आंदोलन भी चलाये।
    ऽ कालगणना युधिष्ठिर काल से प्रारंभ होनी चाहिए ऐसा उन्होंने आग्रही प्रतिपादन किया।
    ऽ सभी जातियों के लिए उन्होंने प्रतित पावन मंदिर की स्थापना 21 फरवरी 1931 को किया।
    सुधारक सावरकर जी ने सप्तबंदी श्रृंखला तोड़ी आना हिंदू समाज सात बंधनों से जकड़ा हुआ था । सावरकर जी ने समाजहित में निम्न सात बंधन तोड़े –
  1. रोटी बंदी – चातुर्वण्य व्यवस्था में नीचे समझेजाने वाले जाति के बंधुओं के यहां खाना नहीं।
  2. स्पर्शबंदी – अस्पृश्यों को छूना नहीं।
  3. वेदोक्तबंदी – ब्राह्मणों के अलावा अन्यों को वेद बोलने का अधिकार नहीं।
  4. बेटीबंदी – अपनी जाति के अलावा अन्य जाति बिरादरी की लड़की का ब्याह करना नहीं।
  5. शुद्धबंदी – मनके विरूद्ध अन्य धर्म में गये व्यक्तियों को शुद्ध करके हिन्दूधर्म में लाना।
  6. व्यवसाय बंदी – अस्पृश्यों को प्रतिष्ठित व्यवसाय करने को बंदी थी।
  7. सिंधुबंदी – समुद्र पर्यटन से धर्म डूबता है यह भ्रामक कल्पना तोड़ने का कार्य किया।
    द्वितीय महायुद्ध चल रहा था। देश में ब्रिटिश साम्राज्य के विरोध में असंतोष पनप रहा था। मार्च 1942 में स्ट्रफोर्ड क्रिप्स भारत आये। सावरकर जी के आदेशानुसार 10 मई 1942 को संपूर्ण भारत में पाकिस्तान विरोधी दिवस मनाया गया और कांग्रेसी नेताओं की दुर्बलता पर खेद प्रकट किया गया।
    देश की स्वतंत्रता के पश्चात् जब पत्रकारों ने पूछा , तब उन्होंने कहा – ’ हमें स्वराज्य की प्राप्ति हुयी है, परन्तु वह खण्डित है इसका दुःख है। यह खण्डित राज्य हम पर थोपा गया है, इसका मुझे दुःख है। शिवाजी का राज्य बहुत छोटा था। राज्य की सीमायें नदी , पहाड़ों से या सन्धिपत्रों से निर्धारित नहीं होती हैं। वे देश के नवयुवकों के शौर्य, धैर्य, त्याग एवं पराक्रम से निर्धारित होती हैं। आने वाली पीढ़ियँा यदि अपना कर्तव्य निभायेंगी तो हो सकता है कि हमारे देश की सीमायें काबुल, कांधार को भी लांघकर बहुत दूर तक पहुंचेंगी।
    स्वतंत्रता पश्चात
    नाथूराम गोडसे ने म. गांधी पर गोली चलाकर उनकी हत्या की। वास्तव में गांधी जी का हत्यारा उसी समय, उसी स्थान पर पिस्तौल सहित पकड़ा गया था, परन्तु यह कहा गया कि इसके पीछे बड़ा भारी षडयंत्र है। हजारों लोगों के घर पर हमले हुए, घर जलाये गये, सैकड़ों लोगों को मार डाला। हजारों को बंदी बनाया गया।
    4 फरवरी 1949 को सावरकर को बन्दी बनाया गया और 10 फरवरी 1949 को न्यायाधीश ने उन्हें निर्दोष घोषित किया। स्वतंत्रता बाद 1950 में दिल्ली में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री श्री लियाकत हिन्दुस्थान आये। पं. नेहरू और लियाकत वार्ता हुयी। उस समय गडबड़ी न हो इसलिए कांग्रेसी की नेहरू सरकार ने सावरकर जी को 4 अप्रेल 1950 को गिरफ्तार किया उन्हें बेलगांव कारागार में रखा गया। उच्च न्यायालय में याचिका दायर करने के बाद 13 जुलाई 1950 को उनकी रिहाई हुयी।
    कांग्रेस ने और पं. नेहरू ने हिन्दुत्ववादी व्यक्ति, संस्था, संगठनों को बदनाम किया, स्वा. सावरकर को म. गांधी की हत्या का अभियुक्त बनाया, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ पर प्रतिबंध लगाये आज भी नेहरू खानदान का यह सिलसिला जारी है।
    स्वातंत्र्यवीर विनायक दामोदर सावरकर का असामान्य व्चक्तित्व, प्रखर बुद्धिमत्ता, जाज्वल्य देशप्रेम, इतिहासकार, लेखक, चिंतक, कवि, वक्ता, समाजसुधारक, महान क्रांतिकारी, विज्ञाननिष्ठ हिन्दुत्ववादी ऐसे विविध गुणसंपदायुक्त व्यक्ति की निंदा करना याने सूरजपर थूकने जैसा ही है।
    संदर्भहीन बातों और अफवाहों के आधारपर आलोचना करनेवाले कांग्रेसी यह समझ ले कि त्याग, अदम्य पराक्रम, साहस और उनके भारतीय दृष्टिकोण का महत्व कम नहीं हो सकता।

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