सावरकर अपने जीवनकाल में गांधी जी से तीन बार मिले। यह सत्य है कि सावरकर और गांधी जी की स्वराज्य प्राप्ति का रास्ता भिन्न था लेकिन इन मतभेदों के कारण सावरकर को लांक्षित करने का कोई मतलब नहीं है। इसे निम्न बिंदुओं से समझा जा सकता है-
- सावरकर बंधुओं के व्यक्तित्व के पहलुओं से प्रभावित होने वालों और उन्हें ’वीर’ कहने और मानने वालों में गांधी भी थे। महात्मा गांधी और विनायक सावरकर के भाई नारायण सावरकर का बहुत पुराना संबंध रहा।
- जब गणेश और विनायक सावरकर बंधुओं की गिरफ्तारी हुयी और आजीवन कालापानी की सजा हुयी, तो उन्हें बचाने के लिए सबसे पहले आने वालों में म. गांधी ही थे।
- सावरकर बंधुओं की कालापानी की सजा को 10 साल हुए थे। 1920 में जब गांधी जी के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन चल रहा था तो अनेक राजनैतिक नेताओं की रिहाई की बातें चल रही थीं तो म. गांधी ने भी सावरकर जी की रिहाई के लिए गंभीरता से प्रयत्न किए। सावरकर जी के भाई डाॅ. नारायण सावरकर को 25 जनवरी 1920 को लाहौर से लिखे अपने पत्र में म.गांधी ने कहा कि विनायक सावरकर एक संक्षिप्त याचिका तैयार करे ताकि यह बिल्कुल स्पष्ट रूप से उभर आये कि आपके भाई साहब ने जो अपराध किया था, उसका स्वरूप बिल्कुल राजनैतिक था और आगे कहा कि मैं अपने ढंग से इस मामले में उठा रहा हूँ। सावरकर बंधुओं की प्रतिभा का उपयोग जन कल्याण में होना चाहिए। म. गांधी का यह पत्र ’सावरकर ब्रदर्श’ शीर्षक के तहत यंग इंडिया के दिनांक 26 मई 1920 के अंक में प्रकाशित भी हुआ था।
सावरकर जी की अंदमान से रिहाई के लिए सुरेन्द्रनाथ बनर्जी के प्रयत्न
मुंबई के होतीलाल वर्मा अंदमान जेल में बंद लोगों को मिलने गये थे वहां के कैदियों पर होने वाले अत्याचारों से वह काफी व्यथित हुए। उन्होंने अंदमान स्थित जेल में होने वाले जुल्म का वर्णन करते हुए एक खत कलकत्ता स्थित कांग्रेस नेता श्री सुरेन्द्रनाथ बनर्जी को दिया। उसके पश्चात श्री सुरेन्द्रनाथ बनर्जी ने अखबार, जाहिर सभा, से 75 हजार हस्ताक्षरों वाला एक निवेदन प्रस्ताव अंग्रेज सरकार को दिया । इससे वातावरण गरम हुआ। जांच कमीशन ने अंदमान में मुलाकात की एवं ब्रिटिश शासन ने कदम पीछे लेते हुए अलग अलग समय पर राजबंदी अंदमान से वापस भेजना और अंदमान जेल को बंद करने की योजना बनाई।
श्री विनायक दामोदर सावरकर की बिना शर्त रिहाई के लिए म. गांधी , सरदार विट्ठल भाई पटेल और लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने भी 1920 में अंग्रेज सरकार को पत्र लिखा।
सवरकर जी ने अंदमान जेल से बाहर आने हेतु माफी मंागी इस नीर क्षीर विवके से देखना होगा कि माफी मांग करके जेल से बाहर आये तो क्या कर रहे थे? क्या अंग्रेजों के समर्थन में घूम रहे थे?
सावरकर जी का जीवन
ऽ कुशाग्र बुद्धिमत्ता के धनी थे। स्कूल में प्रवेश पाने के लिए पहली , दूसरी कक्षा की पढ़ाई घर में कर तीसरी कक्षा में प्रवेश लिया।
ऽ कालेज में पढ़ते समय 7 अक्टू. 1905 विजयादशमी के दिन विदेशी वस्त्रों की होली जलाई। इस कार्यक्रम में लोकमान्य तिलक उपस्थित थे। इस कार्यक्रम के कारण काॅलेज प्रबंधन ने उनको 10 रू. का अर्थदंड एवं छात्रावास से निकाला दे दिया।
ऽ पढ़ाई हेतु इंग्लैंड जाने के पूर्व 1896 में सावरकर जी ने ’अभिनव भारत’ नामक संस्था की स्थापना की।
ऽ उन्होंने इंग्लैंड में शाम जी कृष्ण वर्मा द्वारा स्थापित इंडिया हाउस को अपनी क्रांति साधना का केन्द्र बनाया। और मातृभूमि की स्वाधीनता हेतु नौजवानों का संगठन खड़ा किया।
ऽ सावरकर जी ने लंदन में पहली बार सशस्त्र क्रांतिकारी आंदोलन संगठित कर सक्रिय किया। लंदन में उन्होंने भारतीय छात्रों को एकत्रित यिा और राष्ट्रवाद का अलख जगाया।
ऽ जो आज हमारा राष्ट्रीय ध्वज है, उसको बनाने में मैडम काॅमा और सावरकर जी का योगदान है।
ऽ विदेश की धरती पर 2 मई 1908 को लंदन पहली बार शिवाजी जयंती मनाई गयी।
ऽ सावरकर जी को भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में क्रांतीकारी के आलोक में ही समझा जा सकता है। उन्हें समझने के लिए आवश्यक है कि सबसे पहले उनकी किताब ’ 1857, भारत का स्वातंत्र्य समर ’ का अध्ययन किया जाय। यह दुनिया की पहली ऐसी पुस्तक होगी जो प्रकाशित होने से पूर्व ही प्रतिबंधित की गयी थी। यह पुस्तक उन्होंने अपने अध्ययन के दौरान इंग्लैंड में लिखी थी। यह पुस्तक सावरकर जी की डेढ़ वर्ष की शोध साधना का प्रतिफल थी।
इंग्लैंड में 1857 की 50वीं सालगिरह 1906 में मनाई गयी। ब्रिटिश सरकार ने इस कार्यक्रम पर अंकुश लगाने का भरशक प्रयत्न किया परन्तु सावरकर के वाक्चातुर्य के कारण वे इसे रोक नहीं पाये।
1857 के महासमर की जिसे अंग्रेज ’गदर’ या ’लूट’ बताकर बदनाम करते आ रहे थे। सावरकर जी और शामजी कृष्ण वर्मा ने 10 मई 1907 को लंदन में एक भव्य कार्यक्रम का आयोजन कर भारत में अंग्रजों की क्रूरता की पोल खोल दी थी। सावरकर जी की मांग थी कि वंदेमातरम् यह राष्ट्रगीत हो और इस देश का नाम भारत हो।