बाल अपराध भारत में अपने चरम पर पहुंच गया है और सरकार द्वारा बनाये गये अब तक के सभी नियम खोखले साबित हो रहें है। चाहे वह बाल सुधार गृह हो या फिर कोई भी अन्य कानून बच्चों के अदंर अच्छी भावना भरने में असफल रहा है। वास्तव में देखा जाय तो बच्चों द्वारा समाज विरोधी काम व कानून के विरोध में किये गये कार्य आते है लेकिन आजकल जो अपराध हो रहे है उन पर ज्यादातर मामलों में कानून बना ही नही है और न ही अभी तक कानून बनाने की उजहमत किसी ने उठानी चाही। आजकल जो अपराध चलन में है वह है इंटरनेट पर पोर्न फिल्मों को देखने व उसके करने का , जिसपर सरकार मौन है।
समाजशास्त्री सेथना के अनुसार बाल अपराध में एक विशेष स्थान पर उस समय लागू कानून द्वारा निर्धारित एक निश्चित आयु के बालकों या युवकों द्वारा किये गये अनुचित कार्य सम्मलित होते है। जबकि गेलिन के अनुसार बाल अपराधी एक ऐसा व्यक्ति है जो ऐसे कार्य का अपराधी है जिसको वह समूह जिसमें अपने विश्वासों को किन्यान्व्रित करने की शक्ति है समाज के लिये हानिकारक समझता है इसलिये ऐसा करना मना है। दोनों ने माना कि बाल अपराध निश्चित आयु से कम के बच्चों द्वारा किया जाने वाला कार्य है जो समाज विरोधी है , यह धारणा भिन्न भिन्न समाजों में तथा समयों के अनुसार परिवर्तित होती रहती है। भारत में जो बाल अपराध पाये जाते है वह मुख्यतः तीन तरह के है । सात वर्ष से कम के उम्र में हुए अपराध को बाहर रखा गया है जबकि 16 वर्ष की उम्र तक को बाल अपराधी व 21 वर्ष तक को किशोर अपराधी माना गया है। कुछ दिनों पहले बाल अपराधी की उम्र में सुधार हुआ है और उसे 14 वर्ष तक कर दिया गया है लेकिन किशोर अपराधी की परिभाषा वही है।
यह कहना गलत होगा कि भारत में बाल अपराधों को रोकने के लिये या उनके सुधार के लिये काम नही हुआ , लेकिन वह कारगर क्यों नही हुए इस बात को लेकर मतभेद सदैव से रहे है।दो भागों में यह काम किया गया जिसमें पहला कानूनी था तथा दूसरा सुधारात्मक संस्थायें थी । दोनों ही अपने अपने क्षेत्र में सदैव विवादास्पद रहें है। कानूनी प्रकिया में शिल्प शिक्षार्थी अधिनियम जो कि 1850 में बनी , उसमें आवारा व निर्धन बच्चों में हुनर भरने का काम था लेकिन आजादी के बाद भी यह कानून बदल नही सका और आज भी ठंडे बस्ते में है कोई काम नही हो रहा है।बाल सुधार अधिनियम 1987 में बना जिसमें बाल अपराधी को जेल न भेजकर सुधार गृह में रखने की व्यवस्था की गयी लेकिन आये दिन भाग रहे बाल अपराधियों ने वहां की व्यवस्था पर सवालिया निशान खडे कर दिये। बोस्टर्न स्कूल अधिनियम जिसके तहत अनेक राज्यों में स्कूल 21 वर्ष तक के अपराधियों के लिये खोले गये , जिसमें अपराधियों को अनुशासन व नैतिक प्रभावों के बीच रखे जाने की बात की गयी लेकिन वह भी सफल नही हुए , आज तक कोई भी अपराधी अधिकारी नही बन पायां। इसके अलावा प्रोबेसन अधिनियम जिसके तहत किसी अधिकारी के अंडर में उसे रखने की बात कही गयी थी । आज हर बाल अपराधी का परिवार यही चाहता है कि इस अधिनियम के तहत ही उसके बेटे पर कारवाई हो।बाल न्यायालय को बाल कल्याण परिषद का दर्जा सभी राज्यों में दे दिया गया है और 1960 में बने इस नियम को अब सभी राज्य अपने अपने हिसाब से चला रहें है।
ऐसा नही है कि बाल अपराधी को दंडित किया जाता है उन्हें बेहतर नागरिक बनने का मौका भी कानूनी तौर पर दिया जाता है जैसे बाल सुधार गृह जहां सामान्य शिक्षा , शारीरिक शिक्षा , नैतिक शिक्षा के साथ साथ औधौगिक शिक्षा भी दी जाती है साथ ही अपराध के स्वरूप् में बताया जाता है लेकिन यह यदा कदा जगहों पर ही है।बोस्टर्न स्कूलों में मनोरंजन की व्यवस्था केवल अलग है।सुधारालय या रिमाण्ड गृह में अपराध की विवेचना के अलावा सभी पक्षों की जानकारी दी जाती है जिससे अपराधी दुबारा अपराध न करे। प्रमाणित विघालय में अपराधी को निश्चित समय के लिये रखा जाता है और सद्भाव के कारण उसे दंड से पहले मुक्त किया जाता है।इसके अलावा उपेक्षित बालको के लिये अलग संस्थायें है जो कि लावारिस बच्चों को सही शिक्षा देती है और समाज में रहने लायक बनाती है।सरकार द्वारा की गयी यह नीतियां सभी जगहों पर विघमान है लेकिन बाल अपराध की छवि से अपराधी मुक्त नही हो रहा है और न ही मुख्य घारा में वापस लौट रहा है। इस पर सरकार को गहन अध्ययन करना चाहिये।
यह भी कहना गलत नही होगा कि बाल अपराध के लिये समाज ही उत्तर दायी है , जब अपराधी किसी संस्था में जाता है तो वहां काम करने वाले कर्मचारी उसके साथ अपराधी जैसा ही व्यवहार करते है जिसके कारण अपराध की प्रवृत्ति कम होने के बजाय बढती है , इसके अधिक उम्र के अपराधियों का कम उम्र के अपराधियों का उत्पीडन भी एक कारण है जो कि उसे अपराधी बनने के लिये विवश कर देता है ।बेशक सरकार की नीतियां अच्छी है जो भारत को अन्य देशों से अलग करती है किन्तु उन नीतियों पर क्रियान्वन कितना होता है यह आने वाले समय बता रहा है जिस पर विचार की जरूरत है और संशोधन की भी।