कांग्रेस : सत्ता लोलुप बूढ़ों का झुंड

राजनैतिक हठधर्मी अशोक गहलोत के सामने नतमस्तक नज़र आते कांग्रेस आलाकमान की उपेक्षा और वादाखिलाफी से लगातार अपमानित होते सचिन पायलेट के सब्र का प्याला आखिरकार छलक ही गया…और उन्होंने “प्रगतिशील कांग्रेस” के नाम से अलग पार्टी बनाने की तैयारी कर ली…? इस प्रकार कांग्रेसका एक और विभाजन हो गया, यह बात नई नहीं है सचिन पायलट के पिता राजेश पायलट ने भी अपनी एक कांग्रेस बनाई थी लेकिन उसके बाद वह कांग्रेस में शामिल हो गए थे । वैसा ही सचिन पायलट ने भी किया हुआ, पुन: कांग्रेस में आ गए।

कांग्रेस और भाजपा के यही सबसे बड़ा फर्क है..भाजपा ने आडवाणी से लेकर मुरली मनोहर जोशी जैसे जनाधार वाले नेताओं को भी घर बैठा कर , अनजाने चेहरों को सत्ता के शीर्ष पर बैठा कर जहां संगठन की ताकत दिखाई है। वहीं कांग्रेस आलाकमान अपने सत्ता लोलुप बुज़ुर्ग नेताओं के सामने हमेशा असहाय और मजबूर नज़र आया है फिर चाहे वो राजस्थान में केंद्रीय पर्यवेक्षक के रूप में खरगे और अजय माकन को बेरंग लौटना हो या मध्य प्रदेश में कमलनाथ दिग्गी राजा की जुगलबंदी से सिंधिया को पार्टी से बगावत की हद तक अपमानित करने का मामला..कांग्रेस आलाकमान पूरी तरह पंगु ही साबित हुआ है..। हालत यह है कि जो लोग प्राय: मृत हो चुके हैं वह भी पार्टी में अपना रुतबा दिखाने को बेचैन है कपिल सिब्बल,पी चिदंबरम, अजय माकन जैसे लोग कांग्रेस की नैया पार करने का ठेका ले रहे हैं।

राजस्थान और मध्य प्रदेश की बात अगर अलग कर दें तो दक्षिण भारत में भी कई बार कांग्रेस के टूटने की स्थितियां सामने आई हैं कर्नाटक सरकार अभी ताजा-ताजा बनी है लेकिन उसके भी टूटने के आसार दिख रहे हैं। मुसलमानों ने उपमुख्यमंत्री का पद और पांच मंत्री पद मांगे थे और कांग्रेस सरकार ने इसमें से कुछ नहीं दिया। डी कुमार शिव कुमार को उपमुख्यमंत्री बना दिया जिससे माहौल और गरमा गया। इसी तरह

छत्तीसगढ़ में भी ढाई _ढाई साल के फार्मूले की वादाखिलाफी…और कर्नाटक में भी सत्ता शिखर की खींचतान आज नहीं तो कल राजस्थान जैसे ही हालात पैदा करेगी…।कुल मिला कर कांग्रेस मरते दम तक सत्ता की मलाई खाने के लिए लालायित बूढ़ों का एक झुंड बन गई है, जिसका कोई आलाकमान नहीं है…।

यह बुजुर्ग कांग्रेसी कितने ताकतवर हैं यह सिंधिया, सचिन यह डी के शिवकुमार जैसे लोग कितने कमज़ोर …सवाल यह नहीं है..सवाल आलाकमान का आदेश है…जिसे कोई बुजुर्ग कांग्रेसी मानने को तैयार नहीं…।बहरहाल…सचिन पायलट का यह राजनैतिक फैसला उनके लिए कितना फायदेमंद या नुकसान देह सिद्ध होगा यह आने वाला वक्त बताएगा..लेकिन कांग्रेस के लिए यह निश्चित नुकसान का सबब बनेगा…। जैसा कि मध्य प्रदेश अन्य राज्यों में हुआ है। पंजाब में हुआ है हरियाणा में हुआ है दिल्ली में हुआ है लेकिन फिर भी कांग्रेस की आंख नहीं खुल रही उत्तर प्रदेश में जो चल रहा है वह देश देख ही रहा कई अन्य जगह है जहां उनकी सरकारी नहीं अब समझने वाली बात यह है की पार्टी अध्यक्ष क्या करते हैं और उनके कार्य करने की औकात क्या है।

एक और मामला आजकल गंभीरता से कांग्रेस में चल रहा है उत्तर प्रदेश में जब से अजय राय को अध्यक्ष बनाया है तब से नई-नई चीज सामने आ रही है राहुल गांधी को पुणे अमेठी से लड़ाई जाने की तैयारी है इसी तरह सोनिया गांधी को फिर से लड़ने की तैयारी है एक नाम और आ रहा है प्रियंका गांधी का जिन्हें फूलपुर संसदीय सीट से लड़ने की तैयारी है किस सीट पर जवाहरलाल नेहरू तीन बार जीते थे जो कि प्रियंका गांधी के रिश्तेदार थे उसके बाद विजय लक्ष्मी पंडित वह बीपी सिंह जीते जो कि कांग्रेस के प्रत्याशी थे अब प्रियंका गांधी इस पर गांव लगाएंगे क्योंकि यह उनके घर की परंपरागत सीट है और लगभग कई वर्षों से इस पर उनका वर्चस्व रहा है गौरतलब हो कि इसी सीट पर नीतीश कुमार ने भी अपना दावा ठोका है।

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