गाय के रोम रोम में है दिव्य तत्व

हमारे शास्त्रों में गौ, गंगा, गीता और गायत्री का महत्वपूर्ण स्थान है। प्राचीन आर्यों ने गाय को ‘मातवे रक्षति’ अर्थात गाय माता हमारी रक्षा करें और सभी इच्छाओं की पूर्ति करें कहकर महत्वपूर्ण स्थान दिया है। भगवान श्री कृष्ण ने इस आदर्श को अपने जीवन में अपनाकर हमें गाय की सेवा करने की प्रेरणा दी।

 भारतीय परम्परा में गाय को विशेष दर्जा दिया गया है।उसे कामधेनु अर्थात सभी कामनाएं पूरी करने वाली और माँ की तरह माना जाता है।

 हिंदू के लिए गाय का नाम आते ही एक स्वरूप उभरता है मां का, धर्म का, देश का, परमात्मा का परंतु आर्थिक विडंबना के चलते हिंदू अकेली श्रद्धा के रूप में अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेता है। सिर्फ मंदिरों में मूर्ति के लिए माला प्रसाद व अन्य उपहार देकर लौकिक पारलौकिक लाभ प्राप्त करना चाहता है। गाय को रोटी खिला कर, गाय के लिए कुछ दान देकर, गौशाला, गौ सेवक, को दान करके पुण्य प्राप्ति की कामना करता है। उस समय वह यह भूल जाता है कि गौ – मां जीवंत प्राणी है जिसकी जीवन की आवश्यकताएं हैं । यह क्रम लगातार चलते हुए वह उस मां के स्थान पर दान दया की अधिकारी मानकर श्रद्धा करता है परंतु मां को उसका आर्थिक अधिकार देने के लिए तत्पर नहीं होता है ।

हम अगर मां को श्रद्धा एवं धर्म के अतिरिक्त प्रथमतः जीवंत रूप में व्यावहारिक आर्थिक अवलंबन खोज कर उसे मूर्त रूप दें तभी देसी गउ की विरासत बचेगी। अपने आर्थिक उपादेयता प्राप्त करने संबंधी अपने जन जीवन में कल्चर बनाने की आवश्यकता है। इस कल्चर द्वारा देशी गोवंश की आज की एवं भविष्य की पीढ़ियों के लिए अनुपम योगदान होगा।

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