धार्मिक शिक्षा पर सरकारी नियंत्रण जरूरी

सरकार को शिक्षा पर नियंत्रण रखना चाहिये और सभी पंथों का सम्मान हो इस पर विचार करना चाहिये ताकि स्वस्थ व खुशहाल देश का निर्माण हो सके। यह तभी संभव है जब हम धार्मिक शिक्षा सरकार की निगरानी में दे और ऐसा माहौल पैदा करें जिसमें कि सबकुछ सभी को पता हो कोई किसी को मूर्ख न बता सके।

सर्वप्रथम बात करते है शास्त्री व आचार्य की , साधु समाज में ऐसे तमाम लोग है जो कि शास्त्र की विधिवत शिक्षा प्राप्त किये हुए नही है और उनके अनुयायियों की संख्या बहुत ज्यादा है , अंध विश्वास के चलते उनके मानने वाले उनकी बातों को शास्त्र की बातें मानकर उसपर अमल करने लगते है और नतीजा यह होता है कि वह अपने पंथ से विमुख हो जाते है वह वो करने लगते है जो शास्त्र में होता ही नही, उसका तर्क भी अलग देते है जिसका शास्त्र से कुछ लेना देना नही होता। ऐसे लोग देश को  गुमराह कर रहें है। उस पर रोक  लगनी चाहिये ।

वास्तव में शास्त्री या आचार्य की उपाधि घारण करने के लिये सरकारी स्तर पर काम होना चाहिये और शिक्षा भी सही मिलना चाहिये।सिर्फ मान्यता देकर काम नही होता उसमें धुसकर देश का ध्यान रखते हुए योजना बनानी चाहिये जिससे सभी लाभान्वित हो सके और सरकार को यह पता हो कि आखिर वहां हो क्या रहा है और पढाने के बाद विधार्थी क्या करेगा।इसी तरह मदरसों का भी सरकारी करण होना चाहिये और उसमें क्या पढाना है यह सरकार तय करे और उसकी परीक्षा भी सरकार ले, पुरूषों व स्त्रीयों के लिये अलग अलग शिक्षा केन्द्रों का निर्माण हो और दोनों पुरूष व स्त्री अपने ज्ञान को अपने द्वारा वितरित करे। ईसाईयों जैनियों , बौद्ध भिक्षुओं , सिखों के लिये भी ऐसी ही व्यवस्था की जाय और सरकार का नियंत्रण हो।

इसका सबसे बडा कारण यह है कि हमारे धार्मिक शिक्षण संस्थान किस तरह का गुरू पैदा कर रहें है यह सरकार के संज्ञान में है ही नही , हर शिक्षक अपने अपने ढंग से घार्मिक शिक्षा देकर विभ्रांतियों  को जन्म देने में लगा है और कोशिश कर रहा है कि उसके तर्क को ही आधार मानकर धर्म की व्याख्या की जाय । यह समाज के लिये खराब तो है ही ,साथ ही सेना में भी गलत संदेश फैला रहा है और नये माहौल को जन्म दे रहा है क्योंकि वहां भी आचार्य की जरूरत है मौलाना की जरूरत है इसी तरह हर धर्म के पुजा स्थल के लिये आचार्य की जरूरत है जिनका ज्ञान परिपक्क हो।लेकिन इसके कारण आज ऐसा माहौल बनता जा रहा है कि लोग बिना कुछ पढे ही आचार्य की उपाधि लेकर सेना जैसे सम्मानित संस्थान में काम कर द्वेष फैला रहें है इस पर रोक लगाना जरूरी है।समाज को व देश को बचाना जरूरी है।

सरकार इस काम को करने के लिये धर्म से जुुडे लोगों को बुला सकती है और कमेटी बनाकर एक मसौदा तैयार कर सकती है जिसमें हर धर्म से जुडी बातों को सार्वजनिक कर उसे हाईस्कूल तक अनिवार्य विषय के रूप् में शामिल किया जा सके और हर देश वासियों को यह बताया जा सके कि कम से कम किन बातों को मानकर वह अपने धर्मावलम्बि होने का परिचय दे सकते है।इसके अलावा इस तरह के शिक्षा केन्द्रों को अपने द्वारा अधिगृहीत कर सकते है और अपनी निगरानी में इस काम को अंजाम दे सकते है वह चाहे किसी भी महजब से ताल्लुक रखता हो।

सेना में धर्म के पालन के लिये हर मजहब पुजारी रखने की व्यवस्था है और रखा भी जाता है लेकिन वह पुजारी है भी या नही इस सत्यता की जांच के लिये किसी भी तरह की कमेटी नही है कारण साफ है कि जिन्हें चयनित करना है वह खुद इस विघा को नही जानते ।आज जो देश का माहौल है वह ऐसा है कि धर्म के नाम पर धार्मिक शिक्षा न लेकर जेहाद और हिन्दुत्व जैसी विघा दे रहें है , माहौल खराब हो इससे पहले हमें अपने को सचेत कर लेना चाहिये और इस शिक्षा केन्द्रों का सरकारी करण कर लेना चाहिये ताकि यह देश में धार्मिक उन्माद न फैला सके और सुरक्षा पर आंच न आये।

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