पत्राचार व दूरस्थ शिक्षा से देश का पतन

जब कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में कपिल सिब्बल मानव संसाधन व विकास मंत्री बने तो इस शिक्षा का व्यवसायिककरण किया गया और तब से शिक्षा के नाम पर लूट होने लगी । पत्राचार से सार्टिफिकेट के नाम पर कागज के चंद टुकटे लाखों में बांटे गये और वह उन लोगों ने बांटे जिनके पास एक कमरे में आफिस व कक्षायें थी। इसी तरह दूरस्थ शिक्षा के नाम पर सिक्कम मनिपाल यूनिवर्सिटी व पंजाब टेक्निकल यूनिवर्सिटी ने बीसीए, बीबीए , एमसीए , एमबीए व बीटेक तथा एमटेक की डिग्री बिना पढाये लाखों में दी। सबसे खास बात यह रही कि इन यूनिवर्सिटीयों के द्वारा वस्तुनिष्ठ सवाल आन लाइन पूछे गयेे और औपचारिकता पूरी करने के बाद , डिग्री थमा दी गयी। कारण साफ था कि ज्यादा से ज्यादा सार्टिफिकेट बेंच कर रूपये कमाने हैं। लेकिन देश केा इससे बडा नुकसान हुआ और उससे भी बडा नुकसान उन छात्रों का हुआ जो इस शिक्षा को प्राप्त करने के परिश्रम कर रहे थे।

इस शिक्षा से देश के विकास की बात करें तो उपरोक्त डिग्री उन लोगो के पास आ गयी जिन्होने कभी कालेज का मुंह देखा ही नही। इस तरह की डिग्री का प्रयोग उन लोगो के लिये रामबाण सा रहा जो नौकरी में थे वह चाहे प्राइवेट हो या सरकारी । उन्होंने योग्यता न होने के बाबजूद प्रमोशन लिया और पगार बढवा लिये लेकिन काम न तो तब उन्हें आता था और न अब आता है। इस समय आईसो का दौर चल रहा है और हर कम्पनी को अपने यहां योग्य लोगों को दिखाने के लिये आदमी की जरूरत हैं। इस तरह के लोगों ने अपने यहां इस तरह के लोगों को काम पर रखकर अपनी गुणवता कागज पर सिद्ध की और आईसो का साटिफिकेट ले लिया ताकि ज्यादा से ज्याद काम हथिया सके। वैसे यह विभाग रिश्वत लेकर भी सार्टिफिकेट देता है किन्तु कागज तो जरूरी होते है इसलिये आसानी से कुछ ले देकर सार्टिफिकेट दे देता हैं। इस तरह के लोगो ंमें एक खास बात यह भी है कि किसी भी वेतनमान पर काम करते है क्योंकि काम इन्हें सीखना पडता है और कहा जाता है कि चंद रूपये में बीटेक मिल जाता है तो दूसरे को कौन रखे।जबकि योग्यता यहां देश की सडकों पर खाक छानती है।बाद में जब मेहनत के बाद और नियमित पढाई करने के बाद नौकरी अच्छे प्रतिशत होने के बाद नही मिलती तो यह आंतकी या नक्सली बन जाते है।

पत्राचार की शिक्षा एक काम और करती है जिन लडके लडकियों की शादी नही होती उन्हें यह हाईस्कूल व इंटर , कभी कभी बीए, एमए का प्रमाणपत्र भी दिलवा देती है ऐसे मामलों में फोटो किसी और की होती है और नाम किसी और का होता है । केन्दीय बोर्ड में पैमाने बदल गये है लेकिन राज्य बोर्ड में अभी भी मामला यही है ताकि बंदरबाट होती रहे। ऐसे लोग शिक्षा के नाम पर शून्य होते है और पैसे के बल पर डिग्री हासिल कर लेते है। देश की बेरोजगारी बढाने में यह सबसे आगे है। शिक्षा बदनाम हो रही है और यह मौज ले रहें है।अब तक की सरकारों ने इस पर कोई ध्यान नही दिया और यह काम आज भी बदस्तूर जारी हैं।वर्तमान सरकार में केन्द्रीय मंत्री रही स्मृति ईरानी ने कुछ सुधार का प्रयास किया था लेकिन केन्द्रीय विद्यालयों का कूपन बेचने वाले नेताओं ने उन्हें आगे चलने नही दिया । जो काम वह करना चाहती थी जिससे शिक्षा का विकास होता और इन कार्यक्रमों पर रोक लगती ,उस पर विराम लग जाता, सबसे खास बात यह कि अंतिम व्यक्ति तक शिक्षा पहुंचती।

फिलहाल अभी जो हालात है वह कमाने वाले ही है , स्नातक शिक्षा का कार्यकाल बढाने का फैसला ,पैसा कमाने के लिये था , भला जो शिक्षा दो साल में पूरी हो जाती थी शिक्षक तीन साल में दूने पगार पर क्यों नही पढा पा रहें है यह समझ के बाहर है । टेक्निकल शिक्षा चार साल की क्यों है, इस बात पर विचार करना चाहिये, अमीरजादो के लिये दिक्कत नही है लेकिन दिहाडी वाले कभी यह सपना देख पायेगें, यह अजीब सा लगता हैं।कुछ हद तक मान भी लिया जाय कि नियमित विद्यार्थी चार सालों में कुछ हासिल कर लेगें लेकिन दूरस्थ व पत्राचार वाले चार साल में क्या करेगें सिवाय पैसे देकर डिग्री लेने के और भ्रष्टाचार फैलाने के । सरकार को सोचना चाहिये कि शिक्षा का स्तर इतना घटिया क्यों है कि हर आदमी के पास डिग्री है और वह अपनी शिक्षा को कोस रहा हैं। ऐसे लोगो को डिग्री देती ही क्यों है जिन्हें ककहरा नही आता। ऐसे लोगों को डिग्री क्यों देती है जो किये तो एमबीए है लेकिन उसका पूर्ण नाम भी नही जानते और पगार लाखों में ले रहें है क्या यह देश के साथ धोखा नही है। सरकार इन लोगों की पहचान क्यों नही करती ।

इसका भी एक कारण है , हर नेता ने अपना स्कूल खोल रखा है और उससे उसका कालाधन सफेद होता है ।हर साल वह एक नये स्कूल का मालिक बन जाता है। उत्तर प्रदेश के मुखिया मुलायम सिंह यादव का बीएड कालेज है और उसके परिवार के लोग ही उसमें शिक्षा काम देखते है । पगार भी सरकार से लेते है। बाहुबली विधायकों व सांसदों ने अपने क्षेत्र के स्कूलों की प्रबंधकी कब्जा कर रखी है । यह उनकी आय का एक लम्बा स्रोत है।सबसे बड़ी बात की इस तरह का स्कूल खोलने के लिये शिक्षित होने की जरूरत नही है।इंजिनियरिंग का ज्ञान न हो लेकिन इंजीनियरिंग कालेज खोल सकता हैं । डाक्टर की पढाई न की हो लेकिन मेडिकल कालेज खोल सकता है। टेक्निकल ज्ञान न हो लेकिन तकनीक का ज्ञान बांट सकता है। ऐसा हमारे संविधान में है। नयी सरकार को चाहिये कि इस पर पुनः विचार करे और नया कानून बनाये जिससे इस तरह की गतिविधियों पर रोक लग सके।पत्राचार व दूरस्थ शिक्षा को तो तत्काल बंद कर , जिन्हें इस डिग्री का फायदा पहुंचा है उनका योग्यता परीक्षण कराये और देश को विकास के पथ पर ले जाये।

देश को दूरस्थ शिक्षा व पत्राचार ने दिया क्या ? अब समय है कि इस पर विचार किया जाय और समीक्षा की जाय कि देश का कितना ढन इस संस्थानों में काला हुआ । जिन लोगों ने शिक्षा ली उन्हें क्या वाकई शिक्षा मिली या धर्माथ व मदरसों के नाम पर रूपये का दान कर चले आये। स्थिती साफ है आज इस डिग्री को प्राप्त करने वाले तेजी से प्रमोशन लिये और आये बढ गये , उनके पगार भी तीन गुना तक बढ गये लेकिन देश केा क्या मिला ?

One thought on “पत्राचार व दूरस्थ शिक्षा से देश का पतन

  1. जय श्री राम
    मा.संजयजी.
    मै दाहोद गुजरात से हु vhp से जुडा हुवा
    कई सालो से आपके विचारों का चिंतन करता हु

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