कांग्रेस द्वारा बने सिस्टम में खोट है

 भारत के आजाद होने से पहले और बाद में जो कांग्रेस के लोग थे, वह अंग्रेजों के साथ रहने के कारण उनके ही रंग में ढल गये थे जिसके कारण सत्तर साल तक भारत को उसी गुलाम मानसिकता में जीना पडा, जिसके हम आदी नही थे। सरकारी तंत्र पूरी तरह से लूट घसोट में मस्त था या यूं कह लीजिये कि ऐसे लोग अंग्रेजो की भांति, आम जनता का खून, उन लोगो से चूसवा रहे थे, जो कि देश के सरकारी पदो पर बैठे हुए है। आप समझ ही गये होगें कि हम किन लोगो की बात कर रहें है। जी हां आईएएस और पीसीएस देश के दो शीर्ष पद, जिन्हें देश को आगे ले जाने व लोगों की दिक्कतों को दूर करने के लिये नामित किया जाता है।उन्होने जमकर भरतीयों का काले अंग्रेज बनकर शोषण किया।  इसी श्रंखला में आने वाले अन्य अधिकारी भी इससे अछूते नही है , वह उनसे कंघा से कधा मिलाकर चलें और आज भी चल रहें है।

इस तंत्र की व्यवस्था में दोष की बात की जाय तो ग्रामीण स्तर पर एसडीएम एक अधिकारी होता है जो पीसीएस रैंक का होता है।उसका काम तहसील की व्यवस्था केा चलाना होता है लेकिन उसके नीचे ही सारे गलत काम होते है। पटवारी पैसे लेकर किसी की जमीन पर किसी का नाम अंकित कर देता है। तहसीलदार किसी को रिश्वत लेकर पट्टा कर देता है और नायब किसी की पैमाइश में गडबडी कर सकता हैं।अमीन पैसे लेकर किसी को छोड सकते है या भगा सकते है। यही वह जगह है जहां से हमारे देश की शुरूआत होती है। इसमें अब कांग्रेस के कल्चर की बात करें तो इस सभी लोगों की शिकायत एसडीएम से की जाय और इनके खिलाफ सभी सबूत सही पाये जाय तो एसडीएम इनके खिलाफ कारवाई नही करता बल्कि ठीक कराकर, उसे अगली गलती करने के लिये छोड देता हैं। यही वह कारण भी है जिसके कारण मुकद्मों की भरमार इस देश के कोर्ट में है अगर यह सजा देने का काम किये होते तो कम से कम तहसील व कमीशनरी में मुकद्मा न होते ।

इस तहसील से जुडे सभी सरकारी अधिकारी एक ही काम करते है सरकारी कागजात को बर्बाद करना। इस तंत्र में अपना हक पाने के लिये कभी दस साल, बारह साल या बीस साल भी लग जाता है कभी कभी पीढी बीत जाती है । कारण यह है कि एसडीएम अधिकारी है वह क्षेत्र में रहता है और कोर्ट में बैठने का समय ही नही मिलता और जब आर्डर का समय आता है तब उसका तबादला हो जाता है या विपक्ष जमीन बेच कर भाग जाता है। जिससे मामला नये सिरे से शुरू हो जाता है। इसके बाद अपील होती है जिसमें सहायक आयुक्त या अपर आयुक्त की कोर्ट है।इनका भी हाल उनके जैसा ही है मुकदमा आदमी यहां से भी जीत गया तो फाइल बोर्ड में चली जाती है जहांसे जाकर लाना पडता है । लाना पडता है का मतलब आसानी से समझा जा सकता है इसके बाद भी दो तीन साल उसके अनुपालन में लग जाते है । यदि मुकदमा हार गया तो कई साल बर्बाद हो जाते हैं। आर्डर में भी लेन देन होना यहां सार्वजनिक है इसलिये कोई कुछ कहे इससे पहले अमीरजादों के काम हो जाते हैं।यदि एसडीएम की जगह एक सिविल जज यहां बैठता और रोज कोर्ट होती तो जनपद न्यायालयों में इतने मामले नही होते।लेकिन इस काम पर किसी सरकार ने ध्यान नही दिया।

अब बात करते है राजकीय आस्थान की और चकबंदी की , जिले की यह दोनों चीजें जिलाधिकारी के अधीन आती है जिसे एक चकबदी अधिकारी व एडीएम रैंक का अधिकारी देखता हैं, और दोनों ही सही होगी, इस बात की गारंटी वह दोनों अधिकारी नही ले सकते।जिले के पूरे राजकीय आस्थान पर भू माफियों का कब्जा है और यह इस विभाग की मर्जी से ही होता हैं। चकबंदी में पैसे बोलते है चकरोट या आम रास्ता कब्जा करने वालों को छोडकर किसी के खेत से एक आदमी के लिये आम रास्ता निकाल देना इस विभाग की कारगुजारियों में शामिल हैं। पट्टा के लिये आर्डर करना भी इन्ही काम है तालाब आदि को पाटकर उसपर कालोनी बनाना इसी विभाग का काम हैं। यह है सत्तर साल का कांग्रेसी कल्चर जिसमें आम भारतीय इन काले अंग्रेजों के आगे पिसता चला आ रहा है।और सरकार मौन बैठी रही ।

पुलिस विभाग की बात करे तो दस प्रतिशत मामलों में ही वह सही अपराधी पकड पाती है बाकी सारे अपराधी गरीब ही बनाये जाते है। साल के अंत में होने वाले इनकाउंटर में 95 प्रतिशत गरीब रिक्शा वाले या आम राहगीर होते है जिन्हे दो वक्त की रोटी के लिये बाहर निकलना पडता है। ऐसा नही है कि यह सही काम नही करना चाहते लेकिन अगर सही काम करेगें तो अपराध कम हो जायेगा और उपरी कमाई का जरिया समाप्त हो जायेगा, इसलिये काम नही करते फंसाने व लडाने में विश्वास रखते है। यह एक प्रदेश का हाल नही है बल्कि हर प्रदेश के हर जिले इस भ्रष्ट आचरण से पीडित है लेकिन एक सुनियोजित गैंग जो सरकार के संरक्षण में चल रहा है उसका विरोध करने की हिम्मत कोई नही कर पा रहें है।केन्द्र सरकार को अब इन्ही से दो चार होना है।जितनी जल्दी हो जाय उतना अच्छा है।

वैसे केन्द्र सरकार ने अभी लोगों के उम्मीदों को दस प्रतिशत राहत दी है और लोगो की उम्मीदे बढती जा रही है। इस सिस्टम नाम के शब्द से क्या नयी सरकार निजात दिला पायेगी , इस बात पर आज सारे तरफ शोर गुल है। लेकिन दबे मन से यह बात भी कही जा रही है कि पहले कार्यकाल में सारी दिक्कतें दूर नही हो सकती, इसलिये एक मौका और देने को तैयार है। रोटी कपडा और मकान की समस्या से यह सरकार उन्हें उबार जरूर सकती है। रूकावटें भी है लेकिन उसके बाबजूद केन्द्र सरकार ने एलपीजी गैस , जनधन योजना , डिजटल इंडिया, मेक इन इंडिया जैसे कम्पेन शुरू किया और सफलता भी हाथ लगी है।नोट बंदी से जनता खुश है और यही कारण है की केन्द्र की सरकार को अपार जनसमर्थन मिल रहा हैं। इस दौरान शिक्षा ,नौकरी में व्यापक गडबडी और तंत्र में छिपे गद्दारों को एवं देश के खिलाफ बोलने वाले गद्दारों को भी चिन्हित किया जा रहा है और तो अच्छा ही है। उन लोगों की भी तलाश हो रही है जो विदेशी लोगों से मिलकर भारत को तोडने की साजिश अब तक कर रहें है। यदि इस कार्यकाल में यह सरकार इतना भी काम कर लेती है तो आजादी के बाद के बीस सालों की भरपाई हम कर लेगें।आने वाले कुछ महीनों में केन्द्र सरकार की कोशिश हो सकती है कि वह विश्व को बताये कि भारत गरीब नही है और गरीब की नयी परिभाषा निकल कर सामने आये। जैसा कि जनधन खाते व बीपीएल के खाते आधार कार्ड से लिंक होने के बाद बता रहे हैं।आने वाले ढाई साल बतायेगें कि हमने गरीबी आन रिकार्ड कितने प्रतिशत तक दूर की है और अंतिम व्यक्ति की वार्षिक आय कितनी है।इसपर पूरे तथ्यों के साथ कुछ बोल सकेगें।

केन्द्र सरकार का प्रयास है कि गरीब की परिभाषा पूरी हो जाय और उसके बाद वास्तविक गरीबों को मुख्य धारा में लाने की कवायद की जाय, जिससे पूरा विपक्ष तिलमिला गया है और देश को गुमराह कर रहा है लेकिन अब ऐसा नही होगा इस बात को भारत की जनता ने ठान लिया है इसलिये अब गद्दारों को देश छोडकर जाना ही पडेगा।पूरे विश्व को भी पता चलेगा कि भारत गरीब मुल्क नही सोने की चिडिया है।

Leave a Reply