केरल की भयानक बाढ़ के कारण हुई क्षति से मुझे गहरा दुखः हुआ है। विगत एक शताव्दी में आयी इस भीषण बाढ़ से 440 लोगों की जान गयी और लगभग 8 लाख लोग बेघर हुये है.
राज्य का प्रत्येक सैक्टर चाहे वह पर्यटन, स्वास्थ्य, सड़क, कृषि, बिजली, पानी क्यों न हो, बाढ़ से प्रभावित हुआ है। एक अनुमान के अनुसार क्षतिग्रस्त शहरों को पुनः स्थापित करने में 20 हजार करोड़ रू0 की लागत आयेगी।
केरल मे हुये नुकसान की बात करने से पूर्व समस्या को समझना होगा आज पूरे विश्व में शहरी क्षेत्रों में बाढ़ की समस्या आम हो रही है।पिछले दशक में अमेरिका, ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया, चीन आदि देशों के शहरों में उत्पन्न हुई बाढ़ की गम्भीर स्थिति हम देख चुके है। इस बाढ़ के कारणों को पुनः एक बार दोहराना चाहता हूं-
निचले क्षेत्रों में अनियोजित विकास, शहर की नालियों में कूड़े का एकत्र होना तथा जलवायु परिवर्तन के कारण हो रही भारी बारिश से नगरीय क्षेत्रों में जलभराव होने से बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो रही है। भारत में लगभग प्रत्येक नगर जलभराव के कारण बाढ़ की दृष्टि से संवेदनशील है। अधिकांश शहर जनसंख्या के हिसाब से उच्च स्तर पर पहुंच चुके है। जिस कारण निचले क्षेत्रों और नदी के किनारों पर भी मानव आबादी वस चुकी है। साथ ही आंधी-तूफान और भारी बारिश होना आम बात हो गयी है। इसलिये जब भी कम समय में किसी क्षेत्र में भारी बारिश होती है तो वहां पर जलभराव एंव बाढ़ आने की स्थिति पैदा हो जाती है।
भारत में बाढ़ आना कोई नई बात नही है। बाढ़ आने की समस्या से हमारे शहर काफी पहले से जूझ रहे हैं-
जुलाई 2005 में भारत की आर्थिक राजधानी मुम्बई में आयी बाढ़ से वहां का आमजन-जीवन ठप हो गया था। भारी बारिश से मुम्बई महानगर में जलभराव हो गया था जिसके लिये मुम्बई महानगर पूर्व से तैयार नही था। वर्ष 2005 की बाढ़ में 1094 लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। जिस कारण प्रमुख उपनगरों के प्रभावित होने के साथ-साथ लगभग 30 घण्टे तक ट्रेन, बस, हवाई सेवा प्रभावित हुई और 02 दिन में लगभग 550 करोड़रू0 की आर्थिक क्षति हुई।
इसके लगभग एक दशक बाद वर्ष 2015-2016 में चेनई, गुरूग्राम, बेंगलूरू तथा हैदराबाद में उक्त घटना की पुनरावृत्ति हो चुकी है। गत दशक में कोलकत्ता, श्रीनगर, सूरत में भी यही स्थिति उत्पन्न हो चुकी है। आप महसूस करेगें कि आज देश का कोई कोना प्राकृतिक आपदाओं की दृष्टि से सुरक्षित नही है। इसका मुख्य कारण अनियोजित विकास एंव बढ़ता शहरीकरण है। ऐसी स्थिति में प्राकृतिक आपदा भारत में कभी भी, कहीं भी आ सकती है।
इस त्रासदी को पीछे छोड़कर हमे आगे बढ़ना चाहिए तथा तत्काल अपना हाथ आगे बढ़ाकर बाढ़ से बेघर हुये लोगों की मदद के लिये आगे आना चाहिए। राज्य सरकार का मानना है कि केरल के पुनः निर्माण में 02 वर्ष लग जायेगें। 02 वर्षो का समय आज काफी लम्बा प्रतीत होता है, लेकिन राज्य के पुर्ननिर्माण में लिया गया, प्रत्येक कदम वहां के जन-जीवन को सामान्य बनाने में सहायक होगा।
इस क्रम में पहली प्राथमिकता प्रभावितों को शुद्ध पेयजल एंव मेडिकल सुविधा उपलब्ध कराना होनी चाहिए। अतः राज्य के स्वास्थ्य विभाग को किसी महामारी के फैलने से पूर्व दिन-रात एक कर प्रभावितो को मेडिकल सुविधा उपलब्ध करायी जाये। राज्य के क्षतिग्रस्त इंफ्रास्ट्रक्चर को पटरी पर लाना अगला मुख्य कदम होगा जिसके लिये अथक प्रयास एंव समस्त विभागों से सहयोग की आवश्यकता पड़ेगी।
मैं पुनः याद दिलाना चाहगा कि राज्य के पुर्ननिर्माण का कार्य अत्यन्त कठिनहै, परन्तु कोई भी चीज इच्छाशक्ति से बड़ी नही हो सकती है। मुझे पूर्ण विश्वास है कि इस त्रासदी से निपटने के लिये तथा राज्य के जन-जीवन को सामान्य बनाने में प्रत्येक व्यक्ति को सहयोग करना होगा। हमे केरल की जनता को यह विश्वास दिलाना होगा कि इस कार्य में वह अकेले नही है, अपितु सम्पूर्ण भारत की जनता की शुभकामनाये उनकेसाथ है। परन्तु केरल को प्रार्थना/शुभकामनाओं से अधिक कुछ चाहिए। अतः यह आवश्यक है कि हम सब एक साथ होकर अपना योगदान देने के लिये आगे आऐं। मदद बड़ी अथवा छोटी नही होती है, यद्यपि समय पर दी गयी मदद केरल के लोगों के जन-जीवन को सामान्य बनाने में मददगार होगी।