यह लेख लिखते समय मुझे अपने देश के सैनिकों, देशवासियों और स्वयं अपनी व्यथा को स्पष्ट करने के लिए उन कटु शब्दों का प्रयोग उचित करना उन शब्दों का ही अपमान लगता है जो सम्भवतः उनके लिए आभूषण का ही कार्य करें। मुझे पीड़ा है कि मेरे भारत देश में ऐसे नेता अब तक अस्तित्व में कैसे बने रहे? देश की स्वतन्त्रता का सम्पूर्ण श्रेय लेने वाली देश की तत्कालीन और वर्तमान राष्ट्रीय दल देश की अस्मिता के साथ केवल इसलिए खेलने को तत्पर है कि इतिहास में प्रथम बार ऐसा प्रतिशोध लिया गया जिससे हमारे पड़ोसी देश के राजनीतिज्ञों के साथ-साथ उनके सेनाध्यक्ष के मस्तक पर भी स्वेदबिन्दु झलक रहे हैं। उनकी भाव-भंगिमा इस आघात को पचा नहीं पा रही है कि भारत की वर्तमान सरकार ने अपने बलिदानी शहीदों का प्रतिशोध इतनी शीघ्रता से लिया जिसकी उन्होंने आशा भी नहीं की थी। विश्व के अनेक अग्रणी देश उरी के प्राणघातक हमले की घोर भर्त्सना कर रहे हैं लेकिन पाकिस्तान के स्वर में अपनी ताल बैठाने वाले हमारे देश के कुछ स्वाभिमानी नेता अपने-अपने साज सजाने में लगे हुए हैं। हमारे इन आदरणीय नेताओं को लज्जा और अपमान के सम्भवतः कुछ अन्य पर्याय मिल गये हैं जिसकी छाया में वे शुतुरमुर्ग की भाँति रेत में सिर गड़ा कर स्वयं को सुरक्षित अनुभव कर रहे हैं। दुखद आश्चर्य होता है कि देश की सेना का डीजीएमओ स्वयं बयान दे रहा है कि हमने अपना सर्जिकल आपरेशन सफलतापूर्वक पूरा किया है और हमारे देश के इन जनप्रतिनिधियों को उस पर सन्देह हो रहा है। वे कह रहे हैं कि पाकिस्तान कह रहा है कि हमारे यहाँ कोई सर्जिकल आपरेशन नहीं हुआ और उसके बयान पर हमारे इन प्रबुद्ध और उससे भी विस्मयकारी तथ्य यह कि देश की सर्वोच्च सेवा के अधिकारी जो स्वराज का नारा लेकर राजनीतिज्ञ बने हैं वह भी पाकिस्तान की बातों पर विश्वास करके भारतीय सेना (उनके शब्दों में अस्पष्ट रूप से भाजपा और स्पष्ट शब्दों में सरकार) से अपनी कार्यवाही का प्रमाण माँग रहे हैं। उन्हें इतना भी ध्यान नहीं कि जब उनकी सरकारें थीं और पाकिस्तान को उसकी करतूतों के सुबूत सम्भवतः उन्हीं लोगों ने सौंपे होंगे तो क्या पाकिस्तान ने उसे स्वीकार कर लिया? क्या वे इसकी गारण्टी देंगे कि इस कार्यवाही का सम्पूर्ण प्रमाण प्रस्तुत करने पर यदि वे सन्तुष्ट होते हैं तो वे पाकिस्तान से यह बयान दिलवा सकेंगे कि हाँ भारत ने सर्जिकल स्ट्राइक की है? क्या मुम्बई हमलों के प्रमाण अपर्याप्त थे? भारतीय विमान के अपहरण का कारण बने मसूद अजहर के आतंकवादी होने के प्रमाण अपर्याप्त थे? क्या उन्होंने इसके विषय में कभी सरकार से प्रमाण माँगे कि जो प्रमाण पाकिस्तान को दिये गये वे सत्य हैं? और यह कि क्या वे प्रमाण तथ्यहीन थे क्योंकि पाकिस्तान ऐसा कह रहा है? क्या उन्हें इस पर विश्वास नहीं है कि पाकिस्तान की भूमि से ही पठानकोट और उड़ी हमलों को अंजाम दिया गया? यदि विश्वास है तो अपने प्रिय लगने वाले पाकिस्तान को उन्होंने समझाने का प्रयत्न किया?
यदि उपर्युक्त प्रश्नों का उत्तर हमारे ये प्रतिभाशाली नेता ढूंढ सकें तो एकान्त में बैठकर सोचें की कहीं उन्होंने कुछ लोगों को सन्तुष्ट करने के लिए ऐसा बयान तो नहीं दिया जिसमें देश की अस्मिता दाँव पर लग गयी है? साथ ही इस प्रश्न का भी उत्तर ढूंढें कि क्या कहीं वर्तमान भाजपा सरकार सत्तासीन है और वह ऐसे ठोस और कूटनीतिक कदम उठाने का साहस कर रही है जो हमारे सैनिकों और देशवासियों की चिरप्रतीक्षित अभिलाषा थी? हमारे सैनिकों ने इतने वर्षों से भारत माता का जो अपमान सहा उसका प्रतिशोध लेने की उत्कट अभिलाषा को वर्तमान सरकार ने अनुभव किया, उनके भीतर सुलग रही चिनगारी जो उनका अवसाद बनकर उन्हें अपनी ही दृष्टि में हीन बना रही थी उस घोर कष्ट से मुक्त करने का एक प्रयास किया। आप सरकार की प्रशंसा न करें, कोई आवश्यकता नहीं। आप भाजपा की राष्ट्रभक्ति की प्रशंसा न करें हमें कोई आपत्ति नहीं। आप राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शुचिता के गौरव से प्रफुल्लित न हों हमें कोई आश्चर्य नहीं। किन्तु मेरा इन बुद्धिजीवियों से मात्र इतना निवेदन है कि भारत माता और उनके बलिदानी सपूतों की निन्दा करना अपनी जन्मभूमि के प्रति ऐसी कृतघ्नता है जिसके लिए कोई भी देशवासी उन्हें क्षमा करने के लिए अपने कई जीवन का समय माँग सकता है।