महिलायें शिक्षित होती तो मालदा व पूर्णिया में बबाल न होता : संजय जोशी

malda-2यदि औरतें शिक्षित व सामथ्र्यवान होती तो मालदा व पूर्णिया में ऐसा नहीं होता , वहां जो दंगा हुआ या घटना हुई वह काल्पनिक नहीं थी, यह तो होना ही था। इस बीज का सूत्रपाद तब हुआ जब बांग्लादेश बना। मालदा की स्थित भी उसी तरह की है जैसी की कश्मीर की। मालदा और पूर्णिया कुछ खास अन्तर के पास का ही क्षेत्र है और इससे भी ज्यादा जो संवेदन शील है वह है फरक्का। फरक्का के बारे में लोग कम ही जानते हैं  या जानते हैं तो बस इतना कि वहां गंगा नदी पर एक बांध बना है, जो बांग्लादेश को पानी देने के लिये बना है। इससे ज्यादा कुछ नहीं । यहां जनजातियों का अंबार है और यही वह जनजाति है जो पूरे देश में मालदा लेबर के नाम से विख्यात है । किसी भी कंम्पनी का काम बिना इनके पूरे हो जाय, यह हो ही नहीं सकता। यह बात एक परिचर्चा के दौरान भाजपा नेता संजय विनायक जोशी ने प्रवक्ता डाट काम के सह संपादक अरूण पाण्डेय से कहीं।
उन्होने कहा कि देश बहुत आगे जा रहा है और आज हम देखें तो महिलायें जहां विज्ञान व टेक्नोलोजी के क्षेत्र में आगे हैं, वहीं देश को एक नयी राह दिखाने का काम भी कर रही हैं। चाहे वह बैंक हो, उघोग हो या फिर सेना व पुलिस का काम, वह पुरूषों के साथ कंधा से कंधा मिलाकर चल रही है। लेकिन अभी भी लगता है कि महिलाओं पर काम करने की आवश्यकता है। लेबर वर्ग एक ऐसा वर्ग है जो आज भी खानाबदोश जिन्दगी जी रहा है । उसके लिये हर सवेरा कुआ खोदने जैसा काम है। यहां महिलाओं का पति के साथ मिटटी गारे का काम करना, फिर घर के बच्चों को संभालना और खाना बनाकर देना, कपड़े धोना और परिवार की देखभाल करना, यह सभी कुछ औरतों के हिस्से में है। इसके बाद भी यह गारंटी नहीं है कि पति जीवन भर चलेगा या दूसरी शादी कर लेगा। सही मायने में देखा जाय तो उनका जीवन आदमियों की तुलना में ज्यादा कष्टप्रद है, लेकिन इस स्थिति में वह उनके साथ जीवन बिताने को तैयार है लेकिन आदमी है कि वह इस बात को मानता ही नहीं, ऐसा इसलिये हो रहा है कि शिक्षा नहीं है।  अगर शिक्षित होते तो अपने पत्नी के साथ जीवन बिताते न कि छोडकर भागते ।
संजय जोशी ने कहा कि मालदा की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। वहां औरतों को एक गुलाम की तरह रखा जाता है। उनसे कुछ भी पति करवा सकता है। पति द्वारा छोडे जाने के बाद मजदूर औरतें जीवनयापन करने के लिये कुछ भी करने व किसी के साथ रहने के लिये सहज तैयार हो जाती हैं। उन्हें यह नहीं पता होता कि वह हिन्दू है या मुसलमान, उन्हें सिर्फ पेट की आग दिखती है और जो मिटा दे वही सबकुछ हो जाता है। मालदा में यह उदाहरण के तौर पर कहा जा सकता है लेकिन फरक्का में तो दलित व जनजाति महिलाओं के साथ हमेशा से होता आया है और आगे भी होगा, क्योंकि किसी भी सरकार के पास इसका कोई विकल्प उसी तरह से नहीं है , जिस तरह से इन महिलाओं के पास कोई विकल्प नहीं हैं।
यही कारण है कि देश में वेश्यावृत्ति करने वाली महिलाओं में इनकी संख्या ज्यादा होती है क्योंकि रोटी के लिये यह जहां सबकुछ स्वीकार कर लेती है वहीं कुछ लोग इन्हें कुछ दिन साथ रखने के बाद बेच देते है।
संजय जोशी के अनुसार मालदा जिला पूरी तरह से बांग्लादेश से प्रभावित है। लोग बार्डर पार कर इस पार या उस पार काम के लिये जाते है यह उनकी दिनचर्या में शामिल है।कभी कोई वारदात नहीं होती जिससे यह चर्चा का विषय बन सके। लेकिन जिस तरह से मालदा व पूर्णिया में हुआ वह इस बात की ओर इंगित करता है कि यहां मुसलमानों की संख्या इतनी बढ गयी है कि वह शासन व सरकार को भी अब आंखे दिखा सकते है। इस पर विचार करना अब दोनों सरकारों के लिये जरूरी हो गया है। इसका मूल कारण यह है कि अगर इन्हें इसी तरह विस्तार करने दिया गया तो यह श्रीनगर बन जायेगा। फिर बात उसी तरह हो जायेगी जैसा कि पाकिस्तान के साथ हुई है । पूरे जिले में दलित महिलाओं का धर्मपरिवर्तन हो रहा है । रोटी के नाम पर उनका सभी तरह से शोषण किया जा रहा है। वहां की सरकार मौन है। क्यांे इस मुद्दे पर वहां की सरकारें मौन हो जाती है? इस पर कभी बहस नहीं होती और न ही कभी खबरें निकलती है।
संजय जोशी ने अपील की कि इस तरह की धटनायें भविष्य में न हो इसके लिये दलित महिलाओं का उत्पीडन न हो इसके लिये एक व्यापक कानून की जरूरत है, इसके साथ साथ महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने व शिक्षित करने की जरूरत है । मालदा ही नहीं देश के कई राज्यों में कदाचित यही स्थिति है जिसके कारण नक्सलवाद व आतंकवाद पनप रहा है। इन महिलाओं पर सरकार को तत्काल विचार कर उनके पुर्नवास के लिये कुछ करना चाहिये। ताकि पति द्वारा छोडी गयी महिलायें अपना जीवन यापन ससम्मान कर सके। उन्होने केन्द्र सरकार से अनुरोध किया कि महिलाओं के विकास को लेकर जब सरकार इतनी तेजी से कदम बढा रही है तो उन महिलाओं को भी मुख्य में लाने का प्रयास करना चाहिये जिसे लेबर या मालदा गैंग कहते है।

 

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